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बिहार विभाग
१२. श्री समेतशिखरजी महातीर्थ
मूलनायक श्री पार्श्वनाथजी (जलमंदिर)
यह तीर्थ मधुवन के पास समुद्र तल से ४४७९ फीट उंचा सम्मेदशिखर पहाड पर है। इस पहाड़ को पारसनाथ हिल भी कहते हैं। मुंबई वी. टी. से सीधे पारसनाथ स्टेशन उतरकर वहाँ से बस में १ घंटे का रास्ता है ।
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पूर्व काल से यह तीर्थ है और बीती बीबीसी के कितने ही तीर्थंकर यहाँ से मोक्ष को प्राप्त हुए हैं। वर्तमान चौबीसी के बीस तीर्थंकर यहाँ मोक्ष को प्राप्त हुए हैं। बाकी चार में ऋषभदेवजी अष्टापद में उपर, श्री वासुपूज्य स्वामी चंपापुरी में, श्री नेमिनाथ गिरनार, श्री महावीर स्वामी जी पावापुरी तीर्थ में निर्वाण को प्राप्त हुए हैं।
सम्मेदशिखर पर बीस तीर्थकरों के बाद मुनि भी बहुत संख्या में निर्वाण को प्राप्त हुए हैं।
श्री पादलिप्त सू. म. श्री बप्पभट्ट सू. म. आकाशगामिनी विद्या द्वारा यहां यात्रा करने आते थे, नवीं सदी में श्री प्रद्युम्न सू. म. सात बार यात्रा करने आए और उपदेश देकर जीर्णोद्धार कराया था। तेरहवीं सदी में श्री देवेन्द्र सू. म. रचित बंदारुवृत्ति में यहां के जिनमंदिर तथा प्रतिमा का उल्लेख है। कुंभारीयाजी के
श्री गौतम स्वामी टौंक पादुका
शिलालेख में शरण देव के पुत्र वीरचंद ने श्री परमानंद सू. म. के द्वारा प्रतिष्ठा १३४५ में कराने का लेख है ।
चंपापुरी के पास अकबरपुर गांव के मानसिंहजी के मंत्री नानु ने यहां जिनमंदिर बनवाया वह १६५९ के ज्ञान कीर्तिके यशोधर चरित्र में है।
सं. १६७० में आगरा से ओसवाल श्री कुंरपाल तथा सोनपास लोढा संघ लाए तब उद्धार कराया ऐसा सम्मेदशिखर रास (श्री जयकीर्ति) में है। अनेक तीर्थमालाएं श्री सौभाग्यविजयजी, पं. जयविजयजी श्री हंससोमविजयगणि, श्री विजयसागरजी ने रची है। उसमें इस तीर्थ का वर्णन है ।
सं. १६४९ में बादशाह अकबर ने यह तीर्थ जगद्गुरु श्री हीरविजय सू. म. को भेंट दिया था। यह फरमान सेठ श्री आणंदजी कल्याणजी पेड़ी के पास है।
सं. १७७० में उपर जाने के लिए तीन रास्ते थे । १ पश्चिम से आने वाले यात्रिओं पटना नवादा खडग्दिहा होकर तथा दक्षिण पूर्व में से आए तो मानपुर, जयपुर, नवागढ़, पालगंज होकर तथा तीसरा मधुवन होकर रास्ता है।
२४ जिन पाटुका
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