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________________ श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग - २ - - - - - - - - - - - - - PRE कबाबम श्री महावीर स्वामी मंदिर आज सकल दिन उग्यो हो, श्री सम्मेतशिखर गिरिभेटीयो रे; कांई जाग्या पुण्य अंकुर, भूल अनादिनी भांगी हो; अब जागी समकित वासना रे, काई प्रगट्यो आनंद पूर आज.॥११। विषम पहाड नी झाडी हो, नदी आडी ओलंघी घणी रे; कांई ओलंध्या बहु देश, श्री गिरिराजने निरखी हो; मन हरखी दुःखडां विसर्या रे, कांई प्रगट्यो भाव विशेष आज. वीसे टुंके भगते हो, वली वीसे जिनपति रे, में भेट्या धरी बहु भाव, शामला पासजी हो; तव घुज्या मोहादिक रिपुरे, अतीरथ भव जल नाव।आज.॥३॥ तीरथ सेवा मेवा हो, मुज हेवो लेवा ने घjरे, ते पूरण पाम्यो आज, व्रण भुवन ठकुराई हो, मुज आई सघली हाथमा रे, कांई सिध्या सधलां काज |आज.॥४॥ आश पास मुज पूरे हो, दुःख चूरे शामलीयो सदा रे; त्रेवीसमो जिनराज, ओ प्रभुना पदपद्म सुखसद्म, मुज मन मोहीयुं रे; कवि रूपविजय कहे आज ||आज.॥५॥ समेतशिखरना जातरा नित्य करीये, नित्य करीयेरे, नित्य करीये, नित्य करीये तो दुरित नीहरीये, तरीये संसार ।। समेत.॥१॥ शिववधू वरवा आवीया मन रंगे, वीश जिनवर अति उछरंगे, गिरि चढिया चढते रंगे, करवा निजकाज समेत.शा अजितादि वीश जिनेश्वरा वीश टूके, की, अणसण किरिया न चूके, ध्यान शुक्ल हृदयथी न मूके, पाया पद निरवाण||समेत.॥ शिवसुख भोगी ते थया जिनराया, भांगे आदि अनंत कहाया; पर पुद्गल संग छोडाया, धन्य-G धन्य जिनराय समेत.॥४॥ तारण तीरथ तेहथी ते कहीये, नित्य तेहनी छायामां रहीये तो सुखिया थईओ, बीजं शरणन कोय ॥समेत.।।५।। ओगणीसें बासठ माघनी वदि जाणो, चतुर्दशी श्रेष्ठ वखाणो; हमे भेट्यो तीरथनो राणो, रंगे गुरुवार समेत.।।६।। उत्तम तीरथ जातरा जे करशे, वली जिन आज्ञा शिर धरशे; कहे वीरजय ते वरशे, मंगल शिवमाल, समेत.॥७॥ BORROTEELETEERCIENCETECTET
SR No.002431
Book TitleShwetambar Jain Tirth Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year2000
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size75 MB
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