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________________ श्री श्वेतांबर जैन तीथं दा. : भाग-२ __ आज पास में ४ कि.मी. जनक गांव है वहाँ शालवक्ष का वन है। वह मूल जांभृक गांव है। अनेक तीर्थमालाओं में इस कल्याणभूमि का वर्णन है। यहाँ वि. सं. १९३० में जीर्णोद्धार होने का लेख है। गिरीडीह स्टेशन से बराकर गांव १२ कि.मी. है। गिरीडीह मधुवन सम्मेदशिखर मार्ग पर गांव है। गिरीडिह से बस, टेक्सी मिलती है। मधुवन १८ कि.मी. होता है। धर्मशाला है। पो. बंदर कुमी जि. गिरीडिह (बिहार) (१) श्री ऋजुवालुका (वरकार) तीर्थ मूलनायक : श्री महावीर स्वामी केवलज्ञान पादुका तथा नदी में से मिले हुए श्री । महावीर स्वामी नदी किनारे छोटी सुंदर धर्मशाला है। और उसके पीछे भाग में श्री वीर भगवान का भव्य और अलौकिक सुंदर मंदिर है। यह तीर्थ बरकार गांव में है। पास में बरकार नदी है। यह नदी पूर्वकाल में ऋजुवालुका नदी कहलाती थी। जांभृक गांव के पास में श्यामक किसान के खेत में शालवृक्ष के नीचे वैशाख सुद १० को भगवान महावीर को केवलज्ञान हुआ था। यह केवलज्ञान कल्याणक भूमि है। । २. श्री भागलपुर तीर्थ Do० मूलनायक श्री वासुपूज्य स्वामी श्री भागलपुर जैन मंदिरजी आगे के भाग में श्री वासुपूज्य स्वामी का शिखरबंधी जिनालय है। कसोटी के पत्थर में खुदी प्राचीन चरण पादुकाएँ हैं यह मिथिला नगरी में लाकर यहाँ पधराई है। मंदिर के बाहर छत्री में श्री स्थूल भद्रजी की पादुकाएँ हैं । बाबु की धर्मशाला है। भगवान महावीर ने यहाँ ६ चातुर्मास किए थे। (२) श्री भागलपुर तीर्थ मूलनायक श्री वासुपूज्य स्वामी रेल्वे स्टेशन तथा जिले का गांव है। चंपापुरी जाते हए यह स्टेशन आता है। यहाँ भव्य मंदिर तथा धर्मशाला है। गंगा किनारे बसा हुआ शहर है। इस्टर्न रेल्वे का बड़ा जंक्शन है। सुजागंज लता में बाबु धनपतसिंहजी द्वारा बंधी हई बगीचावाली विशाल जैन धर्मशाला की 00000000000
SR No.002431
Book TitleShwetambar Jain Tirth Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year2000
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size75 MB
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