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________________ विसुद्धिमग्गो भविस्सती" ति आदिना नयेनं मनसिकारो पवत्तेतब्बो | एवं पवत्तेन्तो हि योनिसो पवत्तेति । उपायेन पवत्तेती ति अत्थो । एवं पवत्तयतो येव - हि एकच्चस्स नीवरणानि विक्खम्भन्ति, मरणारस्मणा सति सण्ठाति, उपचारप्पत्तमेव कम्मट्ठानं होति । ५. यस्स पन एत्तावता न होति, तेन वधकपच्चुपट्टानतो, सम्पत्तिविपत्तितो', उपसंहरणतो, कायबहुसाधारणतो, आयुदुब्बलतो' - अनिमित्ततो', अद्धानपरिच्छेदतो", खणपरित्ततो' ति इमेहि अट्ठहाकारेहि मरणं अनुस्सरितब्बं । तत्थ वधकपच्चुपट्ठानतो ति । वधकस्स विय पच्चुपट्ठानतो । यथा हि 'इमस्स सीसं छिन्दिस्सामी' ति असिं गहेत्वा गीवाय चारयमानो वधको पच्चुपट्ठितो व होति, एवं मरणं पि पच्चुपट्ठितमेवा ति अनुस्सरितब्बं । कस्मा ? सह जातिया आगततो, जीवितहरणतो च । ५२ मारे गये या (स्वयं) मरे सत्त्वों को देखकर, पूर्व में सम्पत्तिशाली मृतकों के मरण का आवर्जन कर, “स्मृति और संवेग के साथ मरण होगा" आदि प्रकार से चिन्तन करना चाहिए। ऐसा करते हुए ही वह उचित ढंग से (चिन्तन) करता है, अर्थात् उपाय के साथ करता है । ऐसा करने पर ही किसी किसी के नीवरण शान्त हो जाते हैं, मरण-विषयक स्मृति स्थिर हो जाती है और कर्मस्थान ( = ध्यान का विषय ) उपचार को ही प्राप्त करता है। ५. किन्तु जिसका कर्मस्थान, इतना करने पर भी (उपचारप्राप्त) न हो, उसे इन आठ प्रकार से मरण का अनुस्मरण करना चाहिये - १. वधिक प्रत्युपस्थान से (वधिक मानो पास खड़ा होइस रूप में), २. सम्पत्ति की विपत्ति से ( आरोग्य आदि सम्पत्तियों के समान जीवित सम्पत्ति के नष्ट हो जाने के रूप में), ३. उपसंहरण से ( दूसरों का मरण देखकर अपने मरण से तुलना के रूप में), ४. काय के जनसाधारण होने से (काय सबका समान है - इस रूप में), ५. आयु की दुर्बलता से (जीवन कभी भी नष्ट हो सकता है, इस रूप में), ६. अनिमित्त से ( मरण का कोई . निश्चित कारण न होने से ), ७. अद्धानपरिच्छेद से (काल सीमित है, इस रूप में), और ८. क्षण के परिमित होने से (जीवन-क्षण के सीमित होने से ) । उनमें, वधकपच्चुपट्ठानतो - वधिक के समान पास में ही होने से। जैसे 'इसका सिर काहूँगा' ऐसा (सोच) तलवार लेकर गरदन पर चलाता हुआ वधिक पास ही उपस्थित हो, वैसे ही 'मृत्यु भी पास ही उपस्थित है' - ऐसा अनुस्मरण करना चाहिये। क्यों ? क्योंकि (व्यक्ति की १. वधकपच्युपट्ठानतो ति । घातकस्स विय पति पति उपट्ठानतो आसन्नभावतो । २. सम्पत्तिविपत्तितो ति । आरोग्यादिसम्पत्तीनं विय जीवितसम्पत्तिया विपज्जनतो । ३. उपसंहरणतो ति । परेसं मरणं दस्सेत्वा अत्तनो मरणस्स उपनयनतो । ४. काय बहुसाधारणतो ति । सरीरस्स बहूनं साधारणभावतो । 1 ५. आयुदुब्बलतो ति । सरीरस्स आयुसो बहूनं साधारणभावतो । ६. अनिमित्ततो ति । मरणस्स ववत्थितनिमित्ताभावतो । ७. अद्धानपरिच्छेदतो ति । कालस्स परिच्छन्नभावतो । ८. खणपरित्ततो ति । जीवितक्खणस्स इत्तरभावतो । 1
SR No.002429
Book TitleVisuddhimaggo Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDwarikadas Shastri, Tapasya Upadhyay
PublisherBauddh Bharti
Publication Year2002
Total Pages386
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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