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________________ ३४४ विसुद्धिमग्गो ते, आवुसो, इमस्मि सासने पतिट्ठा" ति? "आम, भन्ते, सोतापन्नो अहं" ति। "तेन हावुसो, उपरिमग्गत्थाय मा वायाम अकासि, खीणासवो तया उपवदितो" ति। सो तं खमापेसि। तेनस्स तं कम्मं पाकतिकं अहोसि। तस्मा यो अञ्जो पि अरियं उपवदति, तेन गन्त्वा सचे अत्तना वुडतरो होति, उक्कटिकं निसीदित्वा "अहं आयस्मन्तं इदं चिदं च अवचं, तं में खमाही" ति खमापेतब्बो। सचे नवकतरो होति, वन्दित्वा उक्कुटिकं निसीदित्वा अञ्जलिं पग्गहेत्वा “अहं, भन्ते, तुम्हे इदं चिदं च अवचं, तं मे खमथा" ति खमापेतब्बो। सचे दिसापकन्तो होति, सयं वा गन्त्वा सद्धिविहारिकादिके वा पेसेत्वा खमापेतब्बो। सचे च नापि गन्तुं, न पेसेतुं सक्का होति, ये तस्मि विहारे भिक्ख वस्सन्ति, तेसं सन्तिकं गन्त्वा-सचे नवकतरा होन्ति उकुटिकं निसीदित्वा, सचे वुड्डतरा, वुड्डे वुत्तनयेनेव पटिपज्जित्वा, "अहं, भन्ते, असुकं नाम आयस्मन्तं इदं चिदं च अवचं, खमतु मे सो आयस्मा" ति वत्वा खमापेतब्बं । सम्मुखा अखमन्ते पि एतदेव कत्तब्बं । सचे एकचारिकभिक्खु होति, नेवस्स वसनट्ठानं, न गतट्ठानं पञ्चायति, एकस्स पण्डितस्स भिक्खुनो सन्तिकं गन्त्वा "अहं, भन्ते, असुकं नाम आयस्मन्तं इदं चिदं च अवचं, तं मे अनुस्सरतो विप्पटिसारो होति, किं करोमी?" ति वत्तब् । सो वक्खति-"तुम्हे मा किया।" स्थविर ने ग्राम में चारिका करने के बाद विहार में लौटकर तरुण भिक्षु से कहा"आयुष्मन्, तुम्हारी इस शासन में क्या प्रतिष्ठा है?" "हाँ, भन्ते, मैं स्रोतआपन्न हूँ।" तब तो, आयुष्मन्, ऊपरी मार्गों के लिये प्रयास मत करो; तुमने क्षीणास्रव को बुरा-भला कहा है।" उसने उनसे क्षमा माँगी। इससे उसका कर्म पहले जैसा ही हो गया। अत: यदि कोई अन्य भी ऐसा हो जिसने (किसी) आर्य को अपशब्द कहा हो, तो उसे जाकर, यदि वह स्वयं बड़ा हो तो उकड़ बैठकर "मैंने आयुष्मान् को ऐसा-ऐसा अपशब्द कहा, इसके लिये मुझे क्षमा करें"-यों क्षमा करा लेना चाहिये। यदि (वह स्वयं) छोटा हो, तो प्रणाम करके उकड़ बैठकर एवं हाथ जोड़कर-"भन्ते! मैंने आपको ऐसा ऐसा अपशब्द कहा, कृपया मुझे क्षमा करें"-यों क्षमा करा लेना चाहिये। यदि (जिसे अपशब्द कहा था वह), बाहर गया हो, तो स्वयं जाकर या विहार में अपने साथ रहने वाले किसी को भेजकर क्षमा करना चाहिये। किन्तु यदि न तो (स्वयं) जा सके एव न (किसी को) भेज सके, तो जो भिक्षु उस विहार में रहते हों, उनके पास जाकर, यदि छोटे हैं तो उकड़ बैठकर एवं यदि अपने से बड़े हों तो वृद्धों के लिये बतलाये गये प्रकार से अभिवादन करते हुए-"भन्ते, मैंने अमुक नाम के आयुष्मान् को ऐसा ऐसा अपशब्द कहा। वह आयुष्मान् मुझे क्षमा करें"-यों कहकर क्षमा करा लेना चाहिये। सामने जाने में असमर्थ होने पर भी ऐसा ही करना चाहिये। ___ यदि अकेले विचरण करने वाला भिक्षु हो जिसके न तो रहने के तथा न ही जाने के स्थान का पता चलता हो, तो किसी पण्डित भिक्षु के पास जाकर यों कहना चाहिये-"भन्ते, मैंने अमुक नाम वाले आयुष्मान् को ऐसा ऐसा अपशब्द कहा। उसे स्मरण करके मुझे पश्चात्ताप हो रहा है, क्या करूँ?" वह कहेगा-"आप चिन्ता न करें, स्थविर आपको क्षमा कर रहे हैं।
SR No.002429
Book TitleVisuddhimaggo Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDwarikadas Shastri, Tapasya Upadhyay
PublisherBauddh Bharti
Publication Year2002
Total Pages386
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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