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________________ द्विविधनिस २८५. सन्निट्ठापनवसेन अधिट्ठानं ति लद्धनामेन एकेनेव अभिज्ञाञाणेन अधिद्वाती ति एवमेत्थ अथो दट्ठब्बो । १२. यं पन वुत्तं-यथा आयस्मा चूळपन्थको ति । तं बहुधाभावस्स कायसक्खिदस्सनत्थं वृत्तं । तं पन वत्थुना दीपेतब्बं । ते किर द्वे भातरो पन्थे जातत्ता पन्थका ति नामं भं । तेजेो महापन्थको । सो पब्बजित्वा सह पटिसम्भिदाहि अरहत्तं पापुणि । अरहा हुत्वा चूळपन्थकं पब्बाजेत्वा " पदुमं यथा कोकनदं सुगन्धं पातो सिया फुल्लमवीतगन्धं । अङ्गीरसं पस्स विरोचमानं तपन्तमादिच्चमिवन्तलिक्खे॥" (अं० नि० २ / ६११) ति इमं गाथं अदासि । सो तं चतूहि मासेहि पगुणं कातुं नासक्खि । अथ नं थेरो " अभब्बो त्वं सासने ति" विहारतो नीहरि । तस्मि च काले थेरो भत्तुद्देसको होति । जीवको थेरं उपसङ्कमित्वा 'स्वे, भन्ते, भगवता सद्धिं पञ्चभिक्खुसतानि गहेत्वा अम्हाकं गेहे भिक्खं गण्हत्था' ति आह । थेरो पि 'ठपेत्वा चूळपन्थकं सेसानं अधिवासेमी' ति अधिवासेसि। चूळपन्थको द्वारकोट्ठके ठत्वा रोदति | भगवा दिब्बचक्खुना दिस्वा तं उपसङ्कमित्वा "कस्मा रोदसी ?" ति आह । सो तं पवत्तिं आचिक्खि । है, एवं जिसकी 'अधिष्ठान' संज्ञा इसलिये है; क्योंकि यह निश्चय करता है - "यहाँ यह अर्थ समझना चाहिये । १२. एवं जो कहा गया है—'यथा आयुष्मन् चूड़पन्थक' - वह अनेक स्थितियों के (एक) शरीरी उदाहरण को बतलाने के लिये कहा गया है। उसे कथा द्वारा स्पष्ट करना चाहिये । कहते हैं कि पन्थ (रास्ते) में उत्पन्न होने से उन दोनों भाइयों का नाम 'पन्थक' पड़ा। उनमें से बड़ा (भाई) महापथक कहलाया उसने प्रव्रज्या ग्रहणकर प्रतिसम्भिदाओं के साथ अर्हत्त्व प्राप्त किया। अर्हत् होकर उसने चूलपन्थक को भी प्रव्रजित कर यह गाथा प्रदान की 44 " जैसे कोकनद नामक (रक्त) पद्म प्रातः खिलकर अत्यन्त सुगन्धित होता है, वैसे ही (शरीर एवं गुणों की सुगन्ध से) सुगन्धित, आकाश में तपते हुए चमकते हुए अङ्गीरस' को देखो" ॥ ( अं० नि० २ / ६११) । वह इस गाथा को चार महीनों में (भी) नहीं सीख सका। तब स्थविर ने उसे यह कहते हुए कि 'तुम शासन के लिये अयोग्य हो', उसे विहार से निकाल दिया । उस समय स्थविर (महापन्थक) भोजन - प्रबन्धक (गृहपति आदि दानियों द्वारा सङ्घ को दिये गये भोजन के निमन्त्रण का स्वीकार करने वाले) थे। जीवक ने स्थविर के पास आकर कहा" भन्ते ! कल भगवान् के साथ पाँच सौ भिक्षुओं को लेकर हमारे घर भिक्षा ग्रहण करें।" स्थविर ने भी - " चूड़पथक को छोड़कर शेष के लिये अनुमोदन करता हूँ" -यों अनुमोदन किया । 44 १. भगवान् बुद्ध के अनेक विशेषणों में से एक। अर्थ है - प्रभास्वर अङ्गों वाले ।
SR No.002429
Book TitleVisuddhimaggo Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDwarikadas Shastri, Tapasya Upadhyay
PublisherBauddh Bharti
Publication Year2002
Total Pages386
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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