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________________ समाधिनिद्देसो २४९ लक्खणं आपोधातू ति। परिपाचनलक्खणं तेजोधातू ति, वित्थम्भनलक्खणं वायोधातू ति। द्वादससु कोट्ठासेसु आबन्धनलक्खणं आपोधातू ति ववत्थपेतब्बं । तत्थेव परिपाचनलक्खणं तेजोधातू ति। वित्थम्भनलक्खणं वायोधातू ति। थद्धलक्खणं पथवीधातू ति। चतूसू कोट्ठासेसु परिपाचनलक्खणं तेजोधातू ति ववत्थपेतब्बं । तेन अविनिभुत्तं वित्थम्भनलक्खणं वायोधातू ति। थद्धलक्खणं पथवीधातू ति। आबन्धनलक्खणं आपोधातू ति। छसु कोट्ठासेसु वित्थम्भनलक्खणं वायोधातू ति ववत्थपेतब्बं । तत्थेव थद्धलक्खणं पथवीधातू ति। आबन्धनलक्खणं आपोधातू ति। परिपाचनलक्खणं तेजोधातू ति। तस्सेवं ववत्थापयतो धातुयो पाकटा होन्ति । ता पुनप्पुनं आवजयतो मनसिकरोतो वुत्तनयेनेव उपचारसमाधि उप्पज्जति। (३) . २१. यस्स पन एवं पि भावयतो कम्मट्ठानं न इज्झति, तेन सलक्खणविभत्तितो भावेतब्बं । कथं? पुब्बे वुत्तनयेनेव केसादयो परिग्गहेत्वा केसम्हि थद्धलक्खणं पथवीधातू ति ववत्थपेतब्बं । तत्थेव आबन्धनलक्खणं आपोधातू ति। परिपाचनलक्खणं तेजोधातू ति। वित्थम्भनलक्खणं वायोधातू ति। एवं सब्बकोट्ठासेसु एकेकस्मि कोट्ठासे चतस्सो चतस्सो धातुयो ववत्थपेतब्बा। तस्सेवं ववत्थापयतो धातुयो पाकटा होन्ति। ता पुनप्पुनं आवज्जयतो मनसिकरोतो वुत्तनयेनेव उपचारसमाधि उप्पज्जति॥ (४) चाहिये। उन्हीं (भागों) में बन्धनलक्षण (तरलता, जो कि जल द्वारा आटे को पिण्ड के रूप में बाँधने के समान, बाँधती है) को अब्धातु, परिपाचनलक्षण को तेजोधातु, विष्टम्भनलक्षण को वायुधातु (ऐसा निश्चय करना चाहिये)। बारह भागों में बन्धनलक्षण को अब्धातु निश्चित करना चाहिये। उन्हीं (भागों) में परिपाचनलक्षण को तेजोधातु, विष्कम्भनलक्षण को वायुधातु, कठोर लक्षण को पृथ्वीधातु निश्चित करना चाहिये। - चार भागों में परिपाचनलक्षण को तेजोधातु निश्चित करना चाहिये। उस (परिपाचनलक्षण) से पृथक् न किये जा सकने वाले विष्कम्भन लक्षण को वायुधातु, ठोस (कठोर) लक्षण को - पृथ्वीधातु, बन्धनलक्षण को अब्धातु (निश्चित करना चाहिये)। छह भागों में विष्कम्भनलक्षण को वायुधातु निश्चित करना चाहिये। उन्हीं (भागों) में ठोस लक्षण को पृथ्वीधातु, बन्धनलक्षण को अब्धातु, परिपाचनलक्षण को तेजोधातु। यों निश्चय करने वाले के लिये धातुएँ प्रकट होती हैं। उन पर बार बार ध्यान देते हुए, मनस्कार करते हुए, उपचार समाधि उत्पन्न होती है। (३) . २१. जिसे यों भावना करने पर भी कर्मस्थान में सिद्धि न प्राप्त हो, उसे 'स्वलक्षणविभाग' के अनुसार भावना करनी चाहिये। कैसे? पूर्वोक्त प्रकार से ही केश आदि (ध्यान के विषय के रूप में) ग्रहण कर, केशों में कठोरता पृथ्वीधातु है-ऐसी निश्चय करना चाहिये। उनमें ही बन्धनलक्षण अप्-धातु, परिपाचनलक्षण तेजोधातु, विष्कम्भनलक्षण वायुधातु है-यह निश्चित करना चाहिये। यों निश्चय करने वाले के लिये धातुएँ प्रकट होती हैं। उनको बार बार ध्यान में लाने, मनस्कार करने से उक्त प्रकार से ही उपचार समाधि उत्पन्न होती हैं। (४)
SR No.002429
Book TitleVisuddhimaggo Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDwarikadas Shastri, Tapasya Upadhyay
PublisherBauddh Bharti
Publication Year2002
Total Pages386
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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