SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 196
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ब्रह्मविहारनिद्देसो १६९ सब्बे भूता, सब्बे पुग्गला, सब्बे अत्तभावपरियापन्ना अवेरा...पे....परिहरन्तू" ति इमेहि । पञ्चहाकारेहि अनोधिसो फरणा मेत्ता चेतोविमुत्ति वेदितब्बा। "सब्बा इत्थियो अवेरा...पे०...अत्तानं परिहरन्तु, सब्बे पुरिसा, सब्बे अरिया, सब्बे अनरिया, सब्बे देवा, सब्बे मनुस्सा, सब्बे विनिपातिका अवेरा...पे....परिहरन्तू" ति इमेहि सत्तहाकारेहि ओधिसोफरणा मेत्ता चेतोविमुत्ति वेदितब्बा। "सब्बे पुरत्थिमाय दिसाय सत्ता अवेरा...पे०...अत्तानं परिहरन्तु। सब्बे पच्छिमाय दिसाय, सब्बे उत्तराय दिसाय, सब्बे दक्षिणाय दिसाय, सब्बे पुरत्थिमाय अनुदिसाय, सब्बे पच्छिमाय अनुदिसाय, सब्बे उत्तराय अनुदिसाय, सब्बे दक्षिणाय अनुदिसाय, सब्बे हेट्ठिमाय दिसाय, सब्बे उपरिमाय दिसाय सत्ता अवेरा...पे०...परिहरन्तु। सब्बे पुरित्थिमाय दिसाय पाणा, भूता, पुग्गला, अत्तभावपरियापन्ना अवेरा...पे०...परिहरन्तु। सब्बा पुरत्थिमाय दिसाय इथियो, सब्बे पुरिसा, अरिया, अनरिया, देवा, मनुस्सा, विनिपातिका अवेरा...पे०...परिहरन्तु, सब्बा पच्छिमाय दिसाय, उत्तराय, दक्खिणाय, पुरत्थिमाय अनुदिसाय, पच्छिमाय, उत्तराय, दक्खिणाय अनुदिसाय, हेट्ठिमाय दिसाय, उपरिमाय दिसाय इत्थियो...पे०...विनिपातिका अवेरा अब्यापज्जा अनीघा सुखी अत्तानं परिहरन्तू" ति इमेहि दसहाकारेहि दिसाफरणा मेत्ता चेतौविमुत्ति वेदितब्बा। — ३६. तत्थ सब्बे ति । अनवसेसपरियादानमेतं। सत्ता ति। रूपादीसु खन्धेसु छन्दरागेन सत्ता विसत्ता ति सत्ता। वुत्तं हेतं भगवता-"रूपे खो, राध, यो छन्दो यो रागो या नन्दी करें, सभी प्राणी, सभी भूत, सभी पुद्गल, सभी आत्मभाव (व्यक्तित्व) सम्पन्न वैररहित ...पूर्ववत्... जीवन-यापन करें"-यों इन पाँच रूपों में विभागरहित व्यापक मैत्री-चित्त-विमुक्ति समझी जानी चाहिये। ___"सभी स्त्रियाँ वैररहित...पूर्ववत्...जीवनयापन करें, सभी पुरुष, सभी आर्य, सभी अनार्य, सभी देव, सभी मनुष्य, सभी दुर्गतिप्राप्त (जीव) वैररहित ...पूर्ववत्... जीवन यापन करें"-यों इन सात रूपों में विभागसहित मैत्री-चित्त विमुक्ति को समझना चाहिये। ___ "सभी पूर्व दिशा के सत्त्व वैर रहित ...पूर्ववत्... जीवन-यापन करें। सभी पश्चिम दिशा... उत्तर दिशा...दक्षिण दिशा के, सभी पूर्व दिशा की अनुदिशा के...पश्चिम दिशा की ...उत्तर दिशा की...दक्षिण दिशा की, अनुदिशा के, सभी निचली दिशा के, सभी ऊपरी दिशा के सत्त्व वैररहित ....पूर्ववत्... जीवन-यापनं करें। सभी पूर्व दिशा की स्त्रियाँ, सभी पुरुष, आर्य, अनार्य, देव, मनुष्य, दुर्गतिप्राप्त, वैररहित ...पूर्ववत्... जीवन यापन करें। सभी पश्चिम दिशा की, उत्तर की, दक्षिण की, पूर्व की अनुदिशा की, पश्चिम की, उत्तर की, दक्षिण की अनुदिशा की, निचली दिशा की, ऊपरी दिशा की स्त्रियाँ...पूर्ववत्...दुर्गतिप्राप्त वैररहित, व्यापादरहित, व्याकुलता रहित, सुखपूर्वक जीवन यापन करें।'–यों इन दस रूपों में दिशा को आलम्बन बनाने वाली (या दिशाओं में विस्तृत) मैत्री चित्त-विमक्ति को जानना चाहिये। __३६. इनमें, सब्बे-यह निरवशेष (अपवादरहित) ग्रहण (का सूचक) है। सत्ता-रूप आदि स्कन्धों के प्रति छन्दराग से सक्त (आसक्त), विशेष रूप से सक्त हैं, अतः सत्त्व (सक्त)
SR No.002429
Book TitleVisuddhimaggo Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDwarikadas Shastri, Tapasya Upadhyay
PublisherBauddh Bharti
Publication Year2002
Total Pages386
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy