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________________ १४६ विसुद्धिमग्गो झानङ्गानि उप्पज्जन्ति। उपसमगुणानं पन गम्भीरताय नानप्पकारगुणानुस्सरणाधिमुत्तताय वा अप्पनं अप्पत्वा उपचारप्पत्तमेव झानं होति । तदेतं उपसमगुणानुस्सरणवसेन उपमानुस्सतिं चेव सलं गच्छति। ७९. छ अनुस्सतियो विय च अयं पि अरियसावक़स्सेव इज्झति। एवं सन्ते पि उपसमगरुकेन पुथुज्जनेना पि मनसिकातब्बा। सुतवसेना पि हि उपसमे चित्तं पसीदति। इमं च पन उपसमानुस्सतिं अनुयुत्तो भिक्खु सुखं सुपति, सुखं पटिबुज्झति, सन्तिन्द्रियो होति सन्तमानसो, हिरोत्तप्पसमन्त्रागतो पासादिको पणीताधिममुत्तिको सब्रह्मचारीनं गरु च भावनीयो च। उत्तरि अप्पटिविज्झन्तो पन सुगतिपरायनो होति। तस्मा हवे अप्पमत्तो भावयेथ विचक्खणो। एवं अनेकानिसंसं अरिये उपसमे सतिं ति॥ इदं उपसमानुस्सतियं वित्थारकथामुखं ॥ . इति साधुजनपामोज्जत्थाय कते विसुद्धिमग्गे समाधिभावनाधिकारे अनुस्सतिकम्मट्ठाननिद्देसो नाम अट्ठमो परिच्छेदो। . . वाले (भिक्षु) को एक क्षण में ध्यानाङ्ग उत्पन्न होते हैं। किन्तु उपशम के गुणों की गम्भीरता के कारण, या नाना प्रकार के गुणों के अनुस्मरण के प्रति अधिमुक्ति होने के कारण, अर्पणा प्राप्त नहीं होती, ध्यान में उपचार ही प्राप्त होता है। उपशम के गुणों के अनुस्मरण के कारण (प्राप्त होने से) इसे भी 'उपशमानुस्मृति' ही कहा जाता है। ७९. छह अनुस्मृतियों की ही भाँति, इसमें भी आर्यश्रावक को ही सिद्धि प्राप्त होती है। यद्यपि ऐसा है, फिर भी जिसे उपशम के प्रति आदरभाव हो, ऐसा पृथग्जन (साधारण व्यक्ति) भी मनस्कार कर सकता है; क्योंकि (उपशम के गुणों के विषय में) केवल सुनने से भी चित्त प्रसन्न ही होता है। इस उपशमानुस्मृति में लगा हुआ भिक्षु सुख से सोता है, सुख से जागता है। शान्त इन्द्रिय, शान्त मन वाला होता है। लज्जा संकोच से युक्त, प्रसन्नवदन, उत्तम के प्रति अधिमुक्ति रखने वाला एवं सब्रह्मचारियों के लिये आदर सत्कार का पात्र होता है। और अन्त में चाहे उसे उच्चतर (स्थिति) में अन्तःप्रवेश न भी मिले, वह सुगति को तो प्राप्त करता ही है। अत: बुद्धिमान् योगाभ्यासी इस अनेक गुणों वाली आर्य उपशमानुस्मृति की अप्रमत्त होकर भावना करे॥ यह उपशमानुस्मृति की विस्तृत व्याख्या है। साधुजनों के प्रमोदहेतु रचित इस विशुद्धिमार्ग (ग्रन्थ) के समाधिभावना नामक अधिकार में अनुस्मृतिकर्मस्थाननिर्देश नामक अष्टम परिच्छेद समाप्त ॥
SR No.002429
Book TitleVisuddhimaggo Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDwarikadas Shastri, Tapasya Upadhyay
PublisherBauddh Bharti
Publication Year2002
Total Pages386
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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