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________________ अनुस्सतिकम्मट्ठाननिद्देसो ११९ "कथं पस्सम्भयं कायसङ्खारं अस्ससिस्सामि...पे०...पस्ससिस्सामी ति सिक्खति? कतमे कायसङ्घारा ? दीघं अस्सासपस्सासा कायिका एते धम्मा कायपटिबद्धा कायसङ्घारा। ते कायसवारे पस्सम्भेन्तो निरोधेन्तो वूपसमेन्तो सिक्खति...पे०...यथारूपेहि कायसङ्खारेहि कायस्स आनमना', विनमना२, सन्नमनारे, पणमना, इञ्जना५, फन्दना, चलना, कम्पनापस्सम्भयं कायसङ्घारं अस्ससिस्सामी ति सिक्खति, पस्सम्भयं कायसङ्खारं पस्ससिस्सामी ति सिक्खति। यथारूपेहि कायसङ्खारेहि कायस्स न आनमना, न विनमना, न सन्नमना, न पणमना, अनिञ्जना, अफन्दना, अचलना, अकम्पना-सन्तं सुखुमं पस्सम्भयं कायसङ्खारं अस्ससिस्सामि... पस्ससिस्सामी ति सिक्खति। __ "इति किर 'पस्सम्भयं कायसङ्खारं अस्ससिस्सामी' ति सिक्खति, 'पस्सम्भयं कायसङ्खारं पस्ससिस्सामी' ति सिक्खति। एवं सन्ते वातूपलद्धिया च पभावना न होति, अस्सासपस्सानं च पभावना न होति, आनापानस्सतिया च पभावना न होति, आनापानस्सतिसमाधिस्स च पभावना न होति, न च नं तं समापत्तिं पण्डिता समापज्जन्ति पि वुहन्ति पि? . - "इति किर 'पस्सम्भयं कायसङ्घारं अस्ससिस्सामि पस्ससिस्सामी' ति सिक्खति। एवं ६५. किन्तु पटिसम्भिदामग्ग में आक्षेप एवं परिहार के साथ यह अर्थ बतलाया गया है"कैसे कायसंस्कार को शान्त करते हुए 'साँस लूँगा एवं साँस छोडूंगा' ऐसा अभ्यास करता है? कौन से कायसंस्कार हैं? दीर्घ आश्वास-प्रश्वास (सम्पूर्ण शरीर में अनुभव होने से) कायिक हैं। ये धर्मकाय से सम्बद्ध होने से कायसंस्कार हैं। उन कायसंस्कारों को शान्त करने, निरुद्ध करने, उपशमित करने का अभ्यास करता है...पूर्ववत्...जिस कायसंस्कार से काया का आगे की ओर झुकना, इधर उधर झुकना; पीछे की ओर झुकना, गति करना, स्पन्दन करना, हिलना, काँपना (आदि सम्भव होते हों वैसे) कायसंस्कार को शान्त करते हुए साँस लूँगा-ऐसा अभ्यास करता है। 'कायसंस्कार को शान्त करते हुए साँस लूँगा-ऐसा अभ्यास करता है। 'कायसंस्कार को शान्त करते हुए साँस छोगा'-ऐसा अभ्यास करता है। जब ऐसे कायसंस्कार होते हैं कि काया का न तो आगे झुकना, न इधर उधर झुकना, न सब ओर झुकना, न पीछे झुकना, न गति करना, न स्पन्दन करना, न हिलना, न काँपना होता है (तब)-'शान्त, सूक्ष्म, प्रश्रब्ध कायसंस्कार को शान्त करते हुए साँस लूँगा...साँस छोड़ेंगा'-ऐसा अभ्यास करता है। आक्षेप : "तब वह 'कायसंस्कार को शान्त करते हुए साँस लूँगा'-यों अभ्यास करता है, 'कायसंस्कार को शान्त करते हुए साँस छोडूंगा'-यों अभ्यास करता है। ऐसा होने पर तो वायु की उपलब्धि की उत्पत्ति (प्रभावना) नहीं होती, आश्वास-प्रश्वास की भी उत्पत्ति नहीं होती, आनापानस्मृति की भी उत्पत्ति नहीं होती, आनापानस्मृतिसमाधि की उत्पत्ति नहीं होती, और न ही पण्डित उस समापत्ति को प्राप्त करते या उससे उत्थान ही करते हैं? १. आनमना ति। अभिमुखभावेन कायस्स नमना। २. विनमना ति। विसुं विसु पस्सतो नमना। ३. सन्नमना ति। सब्बतो, सुट्ठ वा नमना। ४. पणमना ति। पच्छतो नमना। ५. इञ्जनादीनि आनमनादीनं वेवचनानि, अधिमत्तानि वा अभिमुखं चलनादीनि आनमनादयो, मन्दानि इञ्जनादयो। 2-10
SR No.002429
Book TitleVisuddhimaggo Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDwarikadas Shastri, Tapasya Upadhyay
PublisherBauddh Bharti
Publication Year2002
Total Pages386
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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