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विसुद्धिमग्गो ६३. मज्झिमभाणका पन पठमझाने ओळारिको, दुतियज्झानूपचारे सुखुमो ति एवं हेट्ठिमहेट्ठिमज्झानतो उपरूपरिज्झानूपचारे पि सुखुमतरं इच्छन्ति। सब्बेसं येव पन मतेन अपरिग्गहितकाले पवत्तकायसङ्खारो परिग्गहितकाले पटिप्पस्सम्भति। परिग्गहितकाले पवत्तकायसङ्घारो पठमज्झानूपचारे...पे०...चतुत्थज्झानूपचारे पवत्तकायसङ्घारो चतुत्थज्झाने पटिप्पस्सम्भति। अयं ताव समथे नयो।
६४. विपस्सनायं पन अपरिग्गहे पवत्तो कायसङ्खारो ओळारिको, महाभूतपरिग्गहे सुखुमो। सो पि ओळारिको, उपादानरूपपरिग्गहे सुखुमो। सो पिं ओळारिको, सकलरूपपरिग्गहे सुखुमो। सो पि ओळारिको, अरूपपरिग्गहे सुखुमो। सो पि ओळारिको, रूपारूपपरिग्गहे सुखुमो। सो पि ओळारिको, पच्चयपरिग्गहे सुखुमो। सो पि ओळारिको, सपच्चयनामरूपरिग्गहे सुखुमो। सो पि ओळारिको, लक्खणारम्मणिकविपस्सनाय सुखुमो। सो पि दुब्बलविपस्सनाय ओळारिको, बलवविपस्सनाय सुखुमो। तत्थ पुब्बे वुत्तनयेनेव पुरिमस्स पुरिमस्स पच्छिमेन पच्छिमेन पटिप्पस्सद्धि वेदितब्बा। एवमेत्थ ओळारिकंसुखुमता च पस्सद्धि च वेदितब्बा।
____६५. पटिसम्भिदायं पनस्स सद्धिं चोदनासोधनाहि एवमत्थो वुत्तोसूक्ष्म होता है। तृतीय ध्यान और चतुर्थ ध्यान के उपचार में स्थूल होता है, चतुर्थ ध्यान में इतना सूक्ष्म होता है कि उसका प्रवर्तित होना ही रुक जाता है। यह दीघनिकायभाणकों और संयुतनिकायभाणकों का मत है।
६३. किन्तु मज्झिमभाणक प्रथम ध्यान में स्थूल, द्वितीय ध्यान के उपचार में सूक्ष्मइस प्रकार नीचे नीचे के ध्यानों की अपेक्षा ऊपर ऊपर के ध्यानों के उपचारों में भी सूक्ष्मतर मानते हैं। किन्तु सभी के मतानुसार परिग्रह न किये गये समय में प्रवृत्त कायसंस्कार परिग्रह किये गये समय में शान्त हो जाता है। परिग्रहकाल में प्रवृत्त कायसंस्कार प्रथम ध्यान के उपचार में ...पूर्ववत्... चतुर्थ ध्यान के उपचार में प्रवृत्त कायसंस्कार चतुर्थ ध्यान में शान्त हो जाता है। यह शमथ (शान्त होने) की विधि है।
६४. किन्तु विपश्यना में तो अपरिग्रह में प्रवृत्त कायसंस्कार स्थूल, और महाभूतों के परिग्रह में सूक्ष्म होता है। वह भी (अपेक्षाकृत) स्थूल होता है, उपादायरूप (चार महाभूतों के आश्रय से प्रवर्तित हुए रूप) के परिग्रह में सूक्ष्म होता है। वह भी स्थूल है, समस्त रूप के परिग्रह में सूक्ष्म होता है। वह भी स्थूल है, अरूप के परिग्रह में सूक्ष्म होता है। वह भी स्थूल है, रूप और अरूप के परिग्रह में सूक्ष्म होता है। वह भी स्थूल है, प्रत्यय के परिग्रह में सूक्ष्म होता है। वह भी स्थूल है, प्रत्यय के साथ साथ नाम-रूप के परिग्रह में सूक्ष्म होता है।
वह भी स्थूल है, लक्षण को आलम्बन बनाने वाली विपश्यना के परिग्रह में सूक्ष्म होता है। वह भी दुर्बल विपश्यना में स्थूल है, सबल विपश्यना में सूक्ष्म होता है । इस प्रसङ्ग में, पूर्वकथित विधि के अनुसार ही, पूर्व पूर्व की अपेक्षा उत्तर उत्तर (अवस्था) को शान्त जानना चाहिये। यहाँ इस प्रकार से स्थूलता, सूक्ष्मता और प्रश्रब्धि को समझना चाहिये। १. पुब्बे वुत्तनयेना ति। 'अपरिग्गहितकाले' ति आदिना समथनये वुत्तेन नयेन।