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________________ विसुद्धिमग्गो कीकोसकसदिसे पित्तकोसके ठितं, यम्हि कुपिते सत्ता उम्मत्तका होन्ति, विपल्लत्थचित्ता, हिरोतप्पं छड्डत्वा अकातब्बं करोन्ति, अभासितब्बं भासन्ति, अचिन्तितब्बं चिन्तेन्ति । परिच्छेदतो पित्तभागेन परिच्छन्नं। अयमस्स सभागपरिच्छेदो। विसभागपरिच्छेदो पन केससदिसो येव। (२१) ४०. सेम्हं ति। सरीरब्भन्तरे एकपत्तपूरप्पमाणं सेम्हं । तं वण्णतो सेतं नागबलापण्णरसवण्णं । सण्ठानतो ओकाससण्ठानं । दिसतो उपरिमाय दिसाय जातं। ओकासतो उदरपटले ठितं। यं पानभोजनादिअज्झोहरणकाले, सेय्यथापि नाम उदके सेवालपण्णकं कटे वा कथले वा पतन्ते छिज्जित्वा द्विधा हुत्वा पुन अज्झोत्थरित्वा तिट्ठति, एवमेव पानभोजनादिम्हि निपतन्ते छिज्जित्वा द्विधा हुत्वा पुन अज्झोत्थरित्वा तिट्ठति। यम्हि च मन्दीभूते पक्कगण्डो विय पूतिकुक्कुटण्डमिव च उदरं परमजेगुच्छं कुणपगन्धं होति, ततो उग्गतेन च गन्धेन उद्देको पि मुखं पि दुग्गन्धं पूतिकुणपसदिसं होति। सो च पुरिसो 'अपेहि, दुग्गन्धं वायसी' ति वत्तब्बतं आपज्जति, यं च वड्डित्वा बहलत्तमापन, पिधानफलकमिव वच्चकुटियं, उदरपटलस्स अब्भन्तरे येव कुणपगन्धं सन्निरुम्भित्वा तिट्ठति। परिच्छेदतो सेम्हभागेन परिच्छिन्नं। अयमस्स सभागपरिच्छेदो। विसभागपरिच्छदो पन केससदिसो येव। (२२) , ४१. पुब्बो ति। पूतिलोहितवसेन पवत्तपुब्बं । तं वण्णतो पण्डुपलासवण्णो। मतसरीरे पन पूतिबहलाचामवण्णो' होति । सण्ठानतो ओकाससण्ठानो। दिसतो द्वीसु दिसासु होति। के खुज्झे (कोष) के समान, पित्त-कोष में स्थित है। जिसके कुपित होने पर प्राणी पागल और संज्ञारहित (बेहोश) हो जाते हैं। लज्जा-संकोच छोड़कर न करने योग्य (कार्य) भी कर बैठते हैं, न कहने योग्य कहते हैं और न सोचने योग्य सोचते हैं। परिच्छेद से-पित्त-भाग से परिच्छिन्न है। यह इसका सभाग परिच्छेद है। विसभाग परिच्छेद केश के समान ही है। (२१) ४०. कफ-शरीर में एक पात्र भर कफ है। वह वर्ण से-सफेद नागबला (कन्दारिष्टा) के पत्ते के रस के रंग का है। संस्थान से-अवकाश के आकार का है। दिशा से-ऊपरी दिशा में है। आकाश से-उदर-पटल में स्थित है, जो कि भोजन-पेय आदि के (पेट में) पड़ने पर टूटकर दो भागों में बँटकर फिर मिल जाता है, जैसे कि पानी की सेवार, पत्ते, लकड़ी, कंकड़ के गिरने पर टूटकर दो भागों में बँटकर फिर मिल जाती हैं। जिसके मन्द पड़ जाने पर उदर पके फोड़े के समान और मुर्गी के सड़े हुए अण्डे के समान अत्यन्त घृणित दुर्गन्धवाला हो जाता है। उस समय उग्र गन्ध से उद्रेक (ऊर्ध्ववायु, डकार) भी, मुख भी, सड़े हुए शव के समान दुर्गन्धित हो जाता है। वह व्यक्ति 'दूर हटो, दुर्गन्ध फैला रहे हो'-ऐसा कहे जाने योग्य हो जाता है। जो (कफ) जब बढ़कर (सीमा से) अधिक हो जाता है, तब शौचालय में (मल को) ढकने वाले पटरे के समान, पेट की दुर्गन्ध को रोके रहता है। परिच्छेद से-कफ के भाग से परिच्छिन्न है। यह इसका सभाग परिच्छेद है। विसभाग परिच्छेद केश के समान ही है। (२२) ४१. पीब-सड़े हुए रक्त से उत्पन्न पीब। वह वर्ण से-पीले पड़ चुके पत्ते के रंग १. आचामो ति। भत्तं पचित्वा अपनीतं उदकमण्डं।
SR No.002429
Book TitleVisuddhimaggo Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDwarikadas Shastri, Tapasya Upadhyay
PublisherBauddh Bharti
Publication Year2002
Total Pages386
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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