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________________ अनुस्पतिकम्मट्ठाननिद्देसो परिच्छेदतो पक्कासयपटलेन चेव करीसभागेन च परिच्छिन्नं । अयमस्स सभागपरिच्छेदो। विसभागपरिच्छेदो पन केससदिसो येव । (१९) ९५ ३८. मत्थलुङ्गं ति । सीसकटाहब्भन्तरे ठितमिञ्जरासि । तं वण्णतो सेतं अहिच्छत्तकपिण्डवण्णं । दधिभावं असम्पत्तं दुट्ठखीरवण्णं ति पि वत्तुं वट्टति । सण्ठानतो ओकाससण्ठानं । दिसतो उपरिमाय दिसाय जातं । ओकासतो सीसकटाहब्भन्तरे चत्तारो सिब्बिनिमग्गे निस्साय समोधानेत्वा ठपिता चत्तारो पिट्ठपिण्डा विय समोहितं तिट्ठति । परिच्छेदतो सीसकटाहस्स अब्भन्तरतलेहि चेव मत्थलुङ्गभागेन च परिच्छिन्नं । अयमस्स सभागपरिच्छेदो । विभागपरिच्छेदो पन केससदिसो येव। ( २० ) ३९. पित्तं ति । द्वे पित्तानि - बद्धपित्तं च, अबद्धपित्तं च । तत्थ बद्धपित्तं वण्णतो बहलमधुकतेलवण्णं। अबद्धपित्तं मिलातआकुलितपुप्फवण्णं । सण्ठानतो उभयं पि ओकाससण्ठानं । दिसतो बद्धपित्तं उपरिमाय दिसाय जातं, इतरं द्वीसु दिसासु जातं । ओकासतो अबद्धपित्तं ठपेत्वा केसलोमदन्तनखानं मंसविनिमुत्तट्ठानं चेव थद्धसुक्खचम्मं च, उदकमिव तेलबिन्दु अवसेससरीरं ब्यापेत्वा ठितं, यम्हि कुपिते अक्खीनि पीतकानि होन्ति, भमन्ति, गत्तं कम्पत्,ि कण्डूयति । बद्धपित्तं हृदयपप्फासानं अन्तरे यकनमंसं निस्साय पतिट्ठिते महाकोसात है, और लोढ़े से पिसे हुए जैसा महीन हो जाता है। वह आँत की खाली जगहों को भरने के लिये दौड़ता है और वहाँ वह नीचे की ओर धकेला जाता है । अन्त में वह बाँस के पोर (जोड़) से दबा दबाकर डाली गयी भूरी मिट्टी के समान इकट्ठा होकर वहीं रुका रहता है। परिच्छेद से- पक्वाशय-पटल एवं मल-भाग से भी परिच्छिन्न है। यह इसका सभाग परिच्छेद है। विभाग परिच्छेद केश के समान ही है । (१९) ३८. मस्तिष्क - कपाल के भीतर स्थित मज्जा की राशि । यह वर्ण से - अहिच्छत्रक (मशरूम) के पिण्ड (ऊपर के छत्रसदृश भाग) के रंग का होता है। जो दूध दही न बन पाया हो, बिगड़ गया हो, ऐसे दूध के रंग का भी कह सकते हैं। संस्थान से - अवकाश के आकार का है। दिशा से ऊपरी दिशा में है। अवकाश से- कपाल के भीतर वह इस तरह मिलकर स्थित है जैसे (पिसी हल्दी आदि की) पीठी के चार पिण्डों को एक साथ रख दिया गया हो और उनके बीच चार टाँके लगाने भर की जगह हो । - परिच्छेद से- कपाल की भीतरी सतह, और मस्तिष्क भाग से परिच्छिन्न है। यह इसका सभाग परिच्छेद है। विसभाग परिच्छेद केश के समान ही है। (२०) ३९. पित्त-पित्त दो हैं - बद्धपित्त और अबद्धपित्त । इनमें बद्धपित्त वर्ण से - महुआ के गाढ़े तैल के रंग का है। अबद्धपित्त कुम्हलाये हुए आकुली (सारदी ? ) के फूल के रंग का है। संस्थान से- दोनों ही अवकाश के आकार के हैं। दिशा से - बद्धपित्त ऊपरी दिशा में और दूसरा दोनों दिशाओं में उत्पन्न होता है । अवकाश से - अबद्धपित्त केश, रोम, दाँत, नाखून आदि मांसरहित स्थानों एवं सूखी (मृत) त्वचा को छोड़कर, शेष समस्त शरीर में पानी में तैल की बूँद जैसा फैला हुआ है। जिसके कुपित होने पर आँखें पीली हो जाती हैं, नाचने लगती हैं, शरीर काँपता है, खुजलाता है। बद्धपित्त हृदय और फुप्फुस के बीच यकृत के मांस पर आधारित होकर, बहुत बड़े नेनुआ
SR No.002429
Book TitleVisuddhimaggo Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDwarikadas Shastri, Tapasya Upadhyay
PublisherBauddh Bharti
Publication Year2002
Total Pages386
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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