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________________ अनुस्सतिकम्मट्टाननिद्देसो परियोनन्धित्वा ठितं । परिच्छेदतो हेट्ठा मंसेन, उपरि चम्मेन, तिरियं किलोमकभागेन परिच्छिन्नं । अयमस्स सभागपरिच्छेदो । विभागपरिच्छेदो पन केससदिसो येव । (१३) ३२. पिहकं ति। उदरजिह्वामंसं । तं वण्णतो नीलं निग्गुण्डिपुप्फवण्णं । सण्ठानतो सङ्गुप्पमाणं अबन्धनं काळवच्छकजिव्हासण्ठानं । दिसतो उपरिमाय दिसाय जातं । ओकासतो हदयस्स वामपस्से उदरपटलस्स मत्थकपस्सं निस्साय ठितं, यस्मि पहरणप्पहारेन बहिनिक्खन्ते सत्तानं जीवितक्खयो होति । परिच्छेदतो पिहकभागेन परिच्छिन्नं । अयमस्स सभागपरिच्छेदो। विसभागपरिच्छेदो पन केससदिसो येव। (१४) ३३. पप्फासं ति । द्वत्तिंसमंसखण्डप्पभेदं पप्फासमंसं । तं वण्णतो रत्तं नातिपक्कउदुम्बरफलवण्णं। सण्ठानतो विसमच्छिन्नबहलपूवखण्डसण्ठानं । अब्भन्तरे असितपीतानं अभावे उग्गतेन कम्मजतेजुस्मना अब्भाहतत्ता सङ्घादितपलालपिण्डमिव निरसं निरोजं । दिसतो उपरिमाय दिसाय जातं । ओकासतो सरीरब्भन्तरे द्विन्नं थनानमन्तरे हदयं च यकनं च उपरि छादेत्वा ओलम्बन्तं ठितं । परिच्छेदतो पप्फासभागेन परिच्छिन्नं । अयमस्स सभागपरिच्छेदो । विभागपरिच्छेदो पन केससदिसो येव । (१५) ९१ ३४. अन्तं ति । पुरिसस्स द्वत्तिंसहत्थं, इत्थिया अट्ठवीसतिहत्थं एकवीसतिया ठानेसु ओभग्गा अन्तवट्टि । तदेतं वण्णतो सेतं सक्खरसुधावण्णं । सण्ठानतो लोहितदोणियं आभुजित्वा है । परिच्छेद से — नीचे मांस से, ऊपर चर्म से, चारों ओर से क्लोम भाग से परिच्छिन्न है । यह इसका सभाग परिच्छेद है । और विसभाग परिच्छेद केश के समान ही है । (१३) ३२. प्लीहा - पेट की जिह्वा का मांस । वह वर्ण से - निर्गुण्डी ( सिन्दुवार) के फूल के समान नीले रंग का है। संस्थान से - सात अङ्गुल की माप का, बन्धनरहित, काले बछड़े की जीभ के आकार का है। दिशा से - ऊपरी दिशा में उत्पन्न है । अवकाश से - हृदय के बायीं ओर, पेट के ऊपरी भाग के पास स्थित है । जब चोट चपेट लगने से यह बाहर आ जाता है, तब प्राणियों का जीवन जाता रहता है। परिच्छेद से- प्लीहा - भाग से परिच्छिन्न है । यह इसका सभाग परिच्छेद है। विभाग परिच्छेद केश के समान ही है । (१४) ३३. फुप्फुस (= फेफड़ा ) - फुफ्फुस का मांस दो तीन मांसखण्डों में बँटा होता है । वह वर्ण से - लाल, अधपके गूलर के फल के रंग का होता है। संस्थान से - तिर्यक् (टेढ़े मेढ़े ) ढंग से कटे हुए, मोटे पुए के टुकड़े के आकार का होता है । ( पेट के ) भीतर खाया पिया न पहुँचने पर, उग्र कर्मज जठराग्रि की गर्मी से पीड़ित होकर, चबाये हुए पुआल की सिट्ठी के समान, नीरस, ओजरहित होता है। दिशा सं-ऊपरी दिशा में उत्पन्न हैं । अवकाश से- शरीर के भीतर दोनों छातियों के बीच में, हृदय एवं यकृत को ऊपर से ढँके हुए, लटकता हुआ स्थित है। परिच्छेद से - फुफ्फुस भाग से परिच्छिन्न है । यह इसका सभाग परिच्छेद है। विभाग परिच्छेद केश के समान ही है । (१५) १. स्प्लीन ( तिल्ली ) यह संयोजी ऊतकों से निर्मित होता है एवं कैप्सूल के आकार का होता है। इसका कार्य है मृत हो चुके लाल रक्त कणों को नष्ट करना, हानिकारक विषाणुओं से लड़ना एवं प्रतिरोधकों को निर्माण करना आदि।
SR No.002429
Book TitleVisuddhimaggo Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDwarikadas Shastri, Tapasya Upadhyay
PublisherBauddh Bharti
Publication Year2002
Total Pages386
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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