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________________ विसुद्धिमग्गो I तं तं रागचरितस्स रत्तं होति, दोसचरितस्स काळकं, मोहचरितस्स मंसधोवनउदकसदिसं, वितक्कचरितस्स कूलत्थयूसवण्णं, सद्धाचरितस्स कणिकारपुप्फवण्णं, पञ्ञचरितस्स अच्छं विप्पसन्नं अनाविलं पण्डरं परिसुद्धं निद्धोतजातमणि विय जुतिमन्तं खायति । दिसतो उपरिमाय दिसाय जातं। ओकासतो सरीरब्भन्तरे द्विन्नं थनानं मज्झे पतिट्ठितं । परिच्छेदतो हदयं हदयभागेन परिच्छिन्नं । अयमस्स सभागपरिच्छेदो । विसभागपरिच्छेदो पन केससदिसो येव । (११) ९० ३०. यकनं ति यमकमंसपटलं । तं वण्णतो रत्तं पण्डुकुधातुकं, नातिरत्तकुमुदस्स पत्तपिट्ठिवण्णं। सण्ठानतो मूले एकं अग्गे यमकं कोविळारपत्तसण्ठानं । तं च दन्धानं एकमेव होति महन्तं, पञ्ञवन्तानं द्वे वा तीणि वा खुद्दकानि । दिसतो उपरिमाय दिसाय जातं । ओकासतो द्विन्नं थनानं अब्भन्तरे दक्खिणपस्सं निस्साय ठितं । परिच्छेदतो यकनं यकनभागेन परिच्छिन्नं । अयमस्स सभागपरिच्छेदो । विसभागपरिच्छेदो पन केससदिसो येव । (१२) 1 ३१. किलोमकं ति । पटिच्छन्नापटिच्छन्नभेदतो दुविधं परियोनहन्मंसं । तं दुविधं पि वण्णतो सेतं दुकूलपिलोतिकवण्णं । सण्ठानतो अत्तनो ओकाससण्ठानं । दिसतो पच्छिन्नकिलोमकं उपरिमाय दिसाय । इतरं द्वीसु दिसासु जातं । ओकासतो पटिच्छन्नकिलोमकं हृदयं च वक्कं च पटिच्छादेत्वा, अपटिच्छन्नकिलोमकं सकलसरीरे चम्मस्स हेट्ठतो मंसं वह रागचरित का लाल होता है, द्वेषचरित का काला, मोहचरित का मांस के धोवन जैसा, वितर्कचरित का कुलत्थ (कुलथी) के जूस के रंग का, श्रद्धाचरित का कर्णिकार के (पीले) फूल रंग का, प्रज्ञाचरित का पारदर्शी, स्वच्छ, निर्मल, उज्वल, परिशुद्ध, धुली हुई श्रेष्ठमणि के समान प्रभास्वर जान पड़ता है। दिशा से - ऊपरी दिशा में है। अवकाश से- शरीर के भीतर, दोनों स्तनों के बीच में प्रतिष्ठित है। परिच्छेद से- हृदय, हृदय-भाग से परिच्छिन्न है। यह इसका भाग परिच्छेद है। विभाग परिच्छेद केश के समान ही है । (११) ३०. यकृत — मांस का युग्मपटल । वह वर्ण से – भूरापन लिये हुए लाल, हल्के लाल फूल की पत्ती के पृष्ठभाग के रंग का है। संस्थान से - मूल में एक, आगे दो, (इस प्रकार ) कोविदार (कचनार ? ) के पत्तों के जोड़े के आकार का है। वह मन्द बुद्धि वालों का एक ही (किन्तु) बड़ा सा होता है, प्रज्ञावानों का दो या तीन छोटा छोटा । दिशा से - ऊपरी दिशा में उत्पन्न है । अवकास से- दोनों स्तनों के भीतर दाहिनी ओर स्थित है। परिच्छेद से- यकृत, यकृत भाग से परिच्छिन्न है । यह इसका सभाग परिच्छेद है। विभाग परिच्छेद केश के समान ही है । (१२) ३१. क्लोम' (शरीर का वह भाग जो पेट को छाती से पृथक् करता है) – यह मांस का आवरण है, जो दो प्रकार का है - प्रतिच्छन्न (छिपा हुआ) और अप्रतिच्छन्न । वे दोनों ही वर्ण से - दुशाले के रंग जैसा ( हल्का पीलापन लिये हुए) सफेद हैं। दिशा से - प्रतिच्छन्न क्लोम ऊपरी दिशा में, दूसरा दोनों दिशाओं में उत्पन्न है। अवकाश से प्रतिच्छन्न क्लोम हृदय एवं वृक्क को आच्छादित कर, एवं अप्रतिच्छन्न क्लोम समस्त शरीर के चर्म के नीचे, मांस को बाँधकर स्थित १. मिडारेफ या डायाफॉम। यह एक प्रकार से पाचनयन्त्र को शरीर विभाजक रेखा है। इसका आकार कुछ कुछ इस प्रकार का के ऊपरी भाग से पृथक् करने वाली ( धनुषाकार) होता है। ←
SR No.002429
Book TitleVisuddhimaggo Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDwarikadas Shastri, Tapasya Upadhyay
PublisherBauddh Bharti
Publication Year2002
Total Pages386
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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