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६. असुभकम्मट्ठाननिद्देस
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२०. एवं ववत्थपेत्वा १. वण्णतो पि, २. लिङ्गतो पि, ३. सण्ठानतो पि, ४. दिसतो पि, ५. ओकासतो पि, ६. परिच्छेदतो पि ति छब्बिधेन निमित्तं गहेतब्बं ।
कथं ? तेन हि योगिना इदं सरीरं काळस्स वा ओदातस्स वा मङ्गुरच्छविनो वा ति वण्णतो ववत्थपेतब्बं ।
लिङ्गतो पन इत्थिलिङ्गं वा पुरिसलिङ्गं वा ति अववत्थपेत्वा, पठमवये वा मज्झिमवये वा पच्छिमवये वा ठितस्स इदं सरीरं ति ववत्थपेतब्बं ।
सण्ठानतो उद्धमातकस्स सण्ठानवसेनेव इदमस्स सीससण्ठानं, इदं गीवासण्ठानं, इदं हत्थसण्ठानं, इदं उदरसण्ठानं, इदं नाभिसण्ठानं, इदं कटिसण्ठानं, इदं उरुसण्ठानं, इदं जङ्घासण्ठानं, इदं पादसण्ठानं ति ववत्थपेतब्बं ।
दिसतो पन ' इमस्मि सरीरे द्वे दिसा-नाभिया अधो हेट्ठिमदिसा, उद्धं उपरिमदिसा' ति ववत्थपेतब्बं । अथ वा 'अहं इमिस्सा दिसाय ठितो, असुभनिमित्तं इमिस्सा' ति ववत्थपेतब्बं ।
आकासतो पन 'इमस्मि नाम ओकासे हत्था, इमस्मि पादा, इमस्मि सीसं, इमस्मि मज्झिमकायो ठितो' ति ववत्थपेतब्बं । अथ वा- 'अहं इमस्मि ओकासे ठितो असुभनिमित्तं इमस्मि' ति ववत्थपेतब्बं ।
परिच्छेदतो 'इदं सरीरं अधो पादतलेन उपरि केसमत्थकेन तिरियं तचेन परिच्छिन्नं, यथापरिच्छिन्ने च ठाने द्वत्तिंसकुणपभरितमेवा' ति ववत्थपेतब्बं । अथ वा 'अयमस्स हत्थपरिच्छेदो,
है, दूसरों से भिन्न उसका अपना उद्धमातक भाव है, उसका चिन्तन करना चाहिये । "फूला हुआ उद्धमात्तक है" - इस प्रकार स्वभाव के अनुसार, कार्य के अनुसार विचार करना चाहिये, यह अर्थ है ।
२०. इस प्रकार विचार कर, १ वर्ण, २ लिङ्ग, ३. संस्थान, ४ दिशा, ५ अवकाश, ६. सीमा - इस प्रकार छह प्रकार से निमित्त ग्रहण करना चाहिये । कैसे ?
उस योगी को - "यह शरीर काले रंग का है या गोरे या सुनहले (गेहुँए ) रंग का ?" - इस प्रकार वर्ण के अनुसार विचार करना चाहिये। (१)
लिङ्ग से- 'स्त्रीलिङ्ग है या पुल्लिङ्ग' इसका विचार न कर, यह शरीर प्रथम वय में, मध्यम वय में या पश्चिम वय में है - इस प्रकार विचार करना चाहिये। (२)
संस्थान (अकार) से - उद्धमातक के आकार के अनुसार ही, यह इसके सिर का आकार है, यह ग्रीवा ( = गरदन) का आकार, यह हाथ का आकार, यह पैर का आकार, यह पेट का आकार, यह नाभि .... यह कमर.... यह जाँघ ... यह पैर का आकार है-इस प्रकार विचार करना चाहिये । (३) दिशा से - इस शरीर में दो दिशाएँ (= भाग) हैं - नाभि से नीचे निचली दिशा, (नाभि से ) ऊपरी दिशा इस प्रकार विचार करना चाहिये। अथवा - मैं "इस दिशा में हूँ, अशुभनिमित्त इस दिशा में" - इस प्रकार विचार करना चाहिये । (४)
स्थान (अवकाश) से -" इस स्थान पर हाथ, इस पर पैर, इस पर सिर, इस पर काय का मध्यभाग स्थित है" - इस प्रकार विचार करना चाहिये। अथवा, "मैं इस स्थान पर हूँ, अशुभनिमित्त इस स्थान पर "- इस प्रकार विचार करना चाहिये । (५)
परिच्छेद (= सीमा) से - "यह शरीर नीचे पैर के तलवे से लेकर ऊपर सिर के बालों तक समतल त्वचा से परिसीमित है। ऐसे परिसीमित स्थान में बत्तीस (३२) गन्दगियाँ (= अशुचि पदार्थ) ही