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अध्ययन करने योग्य हैं । क्योंकि जिसका वक्ता आप्त होता है वही आगम सम्यग्दर्शन की प्राप्ति में कारण होता है ।
यद्यपि सम्यग्दर्शन की उत्पत्ति क्षायिक, क्षायोपशमिक अथवा पशमिक भाव पर निर्भर है तथापि सम्यक् श्रुत को उसकी उत्पत्ति में कारण माना गया है । अतएव सिद्ध हुआ कि सम्यक् श्रुत का अध्ययन अवश्य करना चाहिये ।
श्वेताम्बर–स्थानकवासी सम्प्रदाय के अनुसार सम्यकश्रुत का प्रतिपादन करने वाले ३२ श्रागम ही प्रमाणकोटि में माने जाते हैं । वे निम्न प्रकार हैं:
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११ अङ्ग, १२ उपाङ्ग, ४ मूल, ४ छेद और ३२वां आवश्यक सूत्र |
इनके अतिरिक्त इन आगमों के आधार से एवं इनके विरुद्ध बने हुए ग्रन्थों को न मानने में भी उक्त सम्प्रदाय आग्रहशील नहीं है ।