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कंत पवातद्दहे चेव जंब मंदर उत्तर दाहिणेणं महा विदेहवासे दो पवायदहा पं०बहु समजाव सीत्रण वातद्दहे चेव सीतोदप्पवायदहे चेव जंबूमंदरस्स उत्तरेणं रम्मएवासे दो पवायदहा--पं०तं बहु जाव नरकंतप्पवायदहे चेव णारीकंतप्पवायदहे चेष एवं हेरन्नवते वासे दो पवायदहा पं०तं-बहु सुवन्न कुलप्पवायदहे चेव रूप्पकूल प्पवायद्दहे चेव जंबमंदर उत्तरेणं एरवए वासे दो पवायदहा पं० बहु जाव रत्तप्पवायदहे चेव रत्तावइ प्पवायदहे चेव जंबमंदर दाहिणणं भरहे वासे दो महानई. श्रो पं० बहु० जाव गंगा चेव सिंधू चेव एवं जधा पवात दहा एवं गईश्रो भाणियव्वाअो जाव ए. रवए वासे दो महानई श्री पं० बहु सम तुल्लाश्रो जाव रत्ता चेव रत्तवती चेव ।। ठाणांग सूत्र, स्थान २ उ० ३ स० ८८।
त० अ०४त्र ११ से इस पाठ का सम्बन्ध है ।