________________
( ४ )
व्यामोह के कारण अन्धकार में रहे हुए बहुत से विवादास्पद उपयोगी विषयों की गुत्थी को सुलझानेमें भी सफल सिद्ध होगा । एवं तत्त्वार्थसूत्र पर विशिष्ट श्रद्धा रखने वाले विद्वानों की उसके (तत्त्वार्थसूत्र के ) मूल स्रोतरूप जैनागमों की तरफ़ अभिरुचि बढ़ने की भी इससे पूर्ण आशा है । मेरी दृष्टि में तत्त्वार्थसूत्र ही एक ऐसा ग्रन्थ है जो जैनधर्म की सभी शाखाओं को बिना किसी हिचकिचाहट के मान्य हो सकता है । इसलिये इस मूल्य पुस्तक का सुचारु रूप से सम्पादन कर के उसका प्रचार करना चाहिये ।
अन्त में मुनि जी के इस उपयोगी और सुचारु समन्वय का अभिनन्दन करता हुआ मैं उनसे साग्रह प्रार्थना करता हूँ कि जिस प्रकार उन्होंने इस कार्य में सब से प्रथम श्रेय प्राप्त किया है उसी प्रकार वे तत्वार्थ के सांगोपांग सम्पादन में भी सबसे अग्रसर होने का स्तुत्य प्रयास करें ।