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(६) है कि श्वेताम्बर आगमों में तत्त्वार्थसूत्र के इन सूत्रों की ही व्याख्या की गई हो । इस विषय में यह बात स्मरण रखने की है कि जैन इतिहास के अन्वेषण से यह बात सिद्ध हो चुकी है कि आगम ग्रन्थों का अस्तित्व उमास्वाति जी महाराज से भी पहले था इसके अतिरिक्त तत्त्वार्थसूत्र और जैन आगमों का अध्ययन करने से यह स्वतः ही प्रगट हो जावेगा कि कौन किस का अनुकरण है । अतएव सिद्ध हुआ है कि आगमों का स्वाध्याय अवश्य करना चाहिये, जिस से सम्यग्दर्शन, सम्यज्ञान और सम्यक्चारित्र की प्राप्ति होने पर निर्वाणपद की प्राप्ति हो सके। अन्त में आगमाभ्यासी सज्जनों से अनुरोध है कि वे कहीं पर यदि कोई त्रुटि देखें या किसी स्थल में आगमपाठों के साथ किये गये समन्वय में कुछ न्यूनता देखें और उन की दृष्टि में कोई ऐसा आगम पाठ हो जिससे कि उस कमी की पूर्ति हो सके तो वे