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इसके कर्ता ने आगमों की मूल भाषा अर्द्धमागधी से विषयों का संग्रह कर उनको संस्कृत भाषा के सूत्रों में प्रकट किया है । सूत्रकार ने अपने ग्रंथ में जैन तत्त्वों का दिग्दर्शन विद्वानों के भावानुसार संस्कृत भाषा में किया । प्रायः विद्वानों का मत है कि तत्त्वार्थसूत्र के रचयिता का समय विक्रम की प्रथम शताब्दी है । संस्कृत भाषा उस समय विकसित हो रही थी । जिस प्रकार इस ग्रंथ के कर्ता ने इस संग्रह में अपनी अनुपम प्रतिभा का परिचय दिया है उसी प्रकार अनेक विद्वानों ने इसके ऊपर भिन्न र टीकाओं की रचना करके जैन तत्त्वों का महत्व प्रगट किया है । और इस ग्रंथ को आगम के समान ही प्रमाण कोटि में स्थान देकर इसके महत्व को बहुत अधिक बढ़ा दिया है ।
पूज्यपाद उमास्वातिजी महाराज ने जैन तत्त्वों को आगमों से संग्रह कर जैन और जैनंतर जनता का बड़ा भारी उपकार किया है ।