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________________ जइ एवं ता किं पुण अन्नत्थ जइ ता असक्कणिज्ज, न जइ एवं ता किं पुण अन्नत्थ (पंच.) ३२५ जइ को वि होइ दक्खो (सं.दो.) ४२ जइ जिणमयं पव्वज्जह (वि.सा.)८८४ जइ एवं ता सव्वं परिहरि- (प्र.प.) २८९ जइ खमसि तो नमिज्जसि, (क्षमा.) २२ जइ जिणवरअणुकरणे (प्र.प.) ११२ जइ एवं तो कम्हा वयम्मि (पंच.) ६१ जइ खमसि तो नमिज्जसि, (दं.प.) १८८ जइ जिणवरअणुकरणे (प्र.प.) ११३ जइ एवं धणनासे तओ (ध.सं.) ९५१ जइ खमसि तो नमिज्जसि (र.सं.) ४८८ जइ जिय ! तुह नवकारो (पर्य.) १० जइ एवं पि हु भणिए (गु.श.) ७३ जइ खमसि दोसवंते, ता (क्षमा.) २१ जइ जीव ! तुज्झ सम्म (हि.कु.) १ जइ एवं रिसिघाए वि हंत (उ.प.) ४६६ जइ खयकुट्ठभगंदरवाहीओ (मि.म.) ७ जइ जीव ! हियच्छेसी (जी.अ.)९१ जइ एवं संवच्छरिअ- (प्र.प.) २४३ जइ खलु कुवक्खिआणं (प्र.प.) २७० जइ जीवो जेण कतो (ध.सं.) १६० जइ कंचुगाइ रहिया (सं.दो.) ४९ जइ गच्छम्मि सुकज्जे (गु.श.) ९८ जइ जुत्तं ता मण्णे, (स्था.) १८ जइ कंटकाउलपहो कहिओ (मि.म.) १७ जइ गय-कच्छभ-वडदुम (धूर्ता.) ३५३ जइ जोयणछटुंसं पंगुलओ (गणि.) ७० जइ कम्मवसा केई, असुहं (चे.म.) १३४ जइ गयमयसलिलेणं हय- (धूर्ता.) २८७ जइ ठाणी जइ मोणी (सं.प्र.) ५७८ जइ कहमवि जत्थ गणे (सं.प्र.) ४२० जइ गालियं च दहियं (सं.दो.) ५३ जइ ठाणी जइ मोणी, (उव.) ६३ जइ कहमवि जीव! तुमं, (य.शि.) २३ जइ गिण्हइ वयलोवो, (उव.) २२२ जइ ठाणी जइ मोणी, (शी.उ.) ९७ जइ कह वि अंधकूवे (मि.म.)९ जइ गुरुआणाभट्ठो सुचिरं (गु.श.) ७६ जइ डहसि भरसहस्सं (ना.प्र) ३७ जइ कह वि अट्ठमी चउद्दसी (सं.दो.) ३९ जइ गुरुपरंपराए, तेर्सि (चे.म.) १२३ जइ डहसि भरसहस्सं (ना.वृ.) ३७ जइ कह वि एगवारं हविज्ज (सं.प्र.) १०८८ जइ घोरतवच्चरणं, (पु.मा.) १९१ जइणं सइवं संखं, वेअंतिय- (सप्त.) ३४० जइ कहवि पमायवसा, (सु.गु.) ७२ जइ चउदसपुव्वधरो, (सं.सि) ७४ जइ णाम कम्मपरिणइवसेण (पंच.) ६३९ जइ कह वि पमायवसा (द्वा.व.) ५१ जइ चक्कवट्टिरिद्धि लद्धं (आरा.१)६३० जइ णाम किह व परिणय- (वि.ण.) २७९ जइ कह वि पराजिज्जह (धूर्ता.) ४३१ जइ चक्कवट्टिरिद्धि, लद्धं पि (पु.मा.) १६१ जइ णाम जीवधम्मा (ध.सं.) ११६३ जइ कह वि वेयणत्तो (प.आ.) २४८ जइ चट्टी मूलधणं दु (गणि.) २२२ जइ णाम सूइओ मि (गु.त.) ३१५२ जइ कह वि सूलपाणी (धूर्ता.) २३२ जइ चरिउं नो सक्को सुद्धं (सं.प्र.) २७५ जइ णिअयमणिअयं वा, (व्या.वि.) ९४ जइ कह वि होज्ज मरणं (अ.कु.) २१ जइ चितेइ सुहं ता, देवाण- (उ.चि.) २३७ जइणीए किरियाए दव्वेणा- (ध.प.) २१ जइ किंचि दप्पओ अण- (गाथा.) २१३ जइ चीवरवरिआणं न (प्र.प.) १३४ जइणो अदूसिअस्सा हेआओ (पंच.) ११५३ जइ किर कु वि मरंतु (उ.रा.) २९ जइ चेलभोगमेत्ता (अ.प.) २७ जइणो अ-दूसियस्स हेयाओ (स्त.) ४४ जइ किर कु वि मरंतु (गाथा.) ६९७ जइ चेव कंचणोव्वलं, (सं.श.) ७९ जइणो अदूसियस्सा हेयाओ (पंचा.) २६४ जइ किर केवल- (बा.बो.) २३ जइ छत्तीस गुणच्चिय (गु.श.) ९६ जइणो चउव्विहं चिय (वि.वि) २३८ जइ किर नरवइ कि वि (उ.रा.) २४ जइ जइकिच्चं सव्वं (जी.अ.) १६४ जइणो चरणविघाइ त्ति, (पिं.वि.) २० जइ किर फुल्लइ लब्भइ (उ.रा.) २८ जइ जगठिई वि एसा । (प्र.प.) ७०९ जइणो तवस्सिणो तावसा (पा.ल.) ३२ जइ किर फुल्लइ लब्भइ (गाथा.) ६९६ जइ जग्गंति सुविहिआ, (गाथा.) २३३ "जइणो वि हु दव्व-त्थय- (स्त.) १०१ जइ किर वरिससयाउ वि (उ.रा.) १६ जइ जग्गंति सुविहिया (प्र.सा.) ८०३ जइणो वि हु दव्वत्थयभेओ (पंच.) १२१० . जइ किरिआमित्तेणं (स.श.) ३१ जइ जग्गंति सुविहिया, (नव.४) ६६ जइणो वि हु दव्वत्थयभेदो (पंचा.) २७२ . जइ किरि भित्ति सुवण्णो (गणि.) ७७ । जइ जणगो एगं चिअ (प.वि.) ६० जइ तं काहिसि भावं, (शी.उ.) ९४ जइ किरियारूवं चिय (अ.प.) १३३ जइजणपाउग्गाई, जहुत्त- (हि.उ.) १२४ जइ तं गीयत्थेहिं सुगुरूहि (सं.दो.) २५ जइ कुणइ उग्गदंडं रूसइ (ध.ब.) ४ जइ जयवाए जायं खरयर- (प्र.प.) ३७० जइ तं तिहिभणियतवं (सं.दो.) ४५ जइ कुणइ हंत तत्तो (ध.सं.) २०२ जइ जलइ लोए जलउ, (क्षमा.) १५ जइ तं महल्लधणुअंणागग्गि- (धूर्ता.) १५४ जइ कुणसि पुण पमायं (प्र.जी.) २१ जइ जस्सयराइँ ठिदी, (दे.प्र) ३३३ जइ तं सरेज्ज पायं (प्रा.सं.) १२१ जइ केइ नाण-चरणेहि, (सु.गु.) ५५ जइ जाणंतो गिण्हइ अहियं (न.प्र.) ६४ जइ तत्तो अहिगं खलु (वि.वि) ३८० जइकेवलदेवालोय जाइ- (वि.ण.) २९९ जइ जाणसि जिणनाहो (षष्ठि.) १४८ जइ तब्भवसिद्धीया, जिणा (उ.चि.) ६१ जइ केवलसामइए दिट्ठा (ई.प.) २० जइ जाणह अविरुद्धं, (स.शा.) २६८ जइ तब्भवेण जायइ जोग- (यो.श.) ९२ जइ केवलीण जुगवं (वि.ण.) २३४ जइ जायवस्स माया उप्पत्ती (धूर्ता.) ४७७ जइ तस्स कह नियत्तति? (ध.सं.) ३६२ जइ कोइ कुतोइ भवे (ध.सं.) ३२१ जइ जिणमतं पवज्जह (ति.गा) ८६९ जइ तस्सत्तामेत्तं आसज्ज (ध.सं.) २६२ जइ कोई पुच्छेज्जा, (जो.प.) ३८५ जइ जिणमयं पवज्जह (साधु.) ३५ जइ तस्स न निवेयंति, तं (व्य.कु.)२७ जइ को वि अभिग्गहिओ (सं.दो.) ६८ जइ जिणमयं पवज्जह ता (पंच.) १७२ जइ तस्सहावमेयं सिद्धं (उ.प.) १००७ जइ को वि देइ अज्जाणं, (व्य.कु.)२५ जइ जिणमयं पवज्जह, ता (सं.श.) २२ जइ तह वि असुहकम्मोदएण (आरा.२)७२२ जइ को वि मेरुमित्तं (आरा.२)७५९ जइ जिणमयं पवज्जह, ता (पु.मा.) २२८ जइ ता असक्कणिज्जं, न (उव.) ३४४
SR No.002422
Book TitlePrakrit Padyanam Akaradikramen Anukramanika 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages446
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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