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________________ साधुओं को अज्ञात तप करना तेसि पि तवो असुद्धो, निक्खंता जे महाकुला जं नेवऽन्ने वियाणंति, न सिलोगं पवेयए॥ व्याख्या : ये महाकुलोत्पन्ना अपि पूजासत्कारादिहेतवे। तपोदानाध्ययनादिकं कुर्वन्ति तेषामपि तत्कृतमुनुष्ठानमशुद्धं, पूजासत्कारादिकृते संयमपालनादि न निर्जरायै जायते, यत्पुनः कृतं तपोऽध्ययनादि अन्ये श्रावकादयो न जानन्ति तथा अवधेयं यदि लोकानां पुरः प्रकाश्यते, आत्मश्लाघा स्वयमेव क्रियते, तदपि तपो न निर्जरायै भवति, स्वयं प्रकाशनेन स्वकीयमनुष्ठानं फल्गुतामापादयेदिति। - सूयगडांग दीपिका अर्थ : जो महान् कुलो में उत्पन्न हुए दीक्षित सत्कारादि के लिए। तप करे तो उनका तप अशुद्ध है। तप कैसे करना - जिसको लोक न जाने और अपने तप की साधु प्रशंसा न करे। व्याख्या : महान् कुल में जन्मे आत्मा दीक्षित साधु जो पूजा सत्कारादि के लिए तप, दान, अध्ययनादि करता है, उनका किया हुआ अनुष्ठान भी अशुद्ध है। पूजा सत्कारादि के लिए किया हुआ संयमपालनादि निर्जरा के लिए नहीं होता और किया हुआ तप अध्ययनादि दूसरे श्रावक आदि न जाने वैसे करना/जो लोगों में जाहिर करने में आये, स्वयं की प्रशंसा स्वयं करें तो वह तप भी निर्जरा के लिए नहीं होता। स्वयं (तपादि को) प्रख्यात करे तो स्वयं का अनुष्ठान निष्फल होता है। - प्रभु तुज शासन अति भलु, पेज नं.३० इस सूयगडांग सूत्र की दीपिका का वर्णन देखते हुए वर्तमान में साधुओं के तपश्चर्या के पारणे हेतु बोलियाँ, वरघोड़ा, पत्रिका, महोत्सव जो हो रहे है, उस पर चतुर्विध संघ को सोचना आवश्यक है। शासन प्रभावना के नाम पर स्वप्रभावना तो नहीं हो रही है न ? MULTY GRAPHICS (022) 23873222-23884222
SR No.002420
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherLehar Kundan Group
Publication Year
Total Pages308
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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