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संवेगरंगशाला श्लोक नं. ८८७५-८६११
सद्गुरोः स्वरूपम्
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वंछियपयत्थपयडण - परो य न भवेज्ज जइ गुरुपईयो । अंधबहिरं इमं तो, जगं वरायं कहं हुन्तं गच्छइ य समुच्छेयं, जह नाम सुवेज्जययणओ वाही । तह सुहगुरूयएसाउ, कम्मवाही वि विन्नेयो कलिकालकयलियजए, वंछियविविहफलदाणदुल्ललिओ । अक्खंडगुणो सक्खा, होइ गुरु कप्परुक्खो व्व ॥७७॥ सम्मत्तनाणचरणाSS - इएहिं भयजलहितारणसहेहिं । निव्वाणकारणेहि य, गुणेहिं गरुओ गुरू होइ | देसकुलजाइरूवाऽऽइ-गुणजुओ चत्तसव्वसावज्जो । सुहगुरुदिन्नगुरुपओ, पसममहप्पा गुरु भणिओ सयलाऽणत्थनिहाणं, मज्जं यज्जेइ जो सयाकालं । मंसं च असुइमूलं, गुरुतणं तस्स होइ फुडं हलखेत्तगाविमहिसी - घरघरिणीपुत्तभंडववहारो । सीसस्स व गुरुणो वि हु, जड़ ता सरियं गुरुतेण पावाऽऽरंभा सीसस्स, जे उ ते चेव होंति गुरुणो वि । जड़ ता लीलाए च्चिय, भवंडबुरासी अहो ! तिण्णो ॥ ८२ ॥ पाणऽच्चए वि पीडं, परस्स न हु सव्यहा विचिंतेइ | जीवाण जणणिसरिसो, करुणेक्करसो गुरू कहियो ॥८३॥ विसयामिसे पसत्तो, पुरिसो परवंचणे मणं कुणइ । ता जो विसयविरतो, परमत्थेणं स चेव गुरु | निच्चं अकयमऽकारिय- मऽणणुमयं सयलदोसपरिहीणं । बालगिलाणाऽऽइए, संभोइता जहाजोगं | वेयायच्चाऽऽइकारणेहिं, इंगालधूमपरिहीणं । जो उयभुंजड़ उछं, सो च्चिय सच्चं गुरु भणिओ दव्यं खेत्तं कालं भावं च पडुच्च णिच्चकालं पि । जो पडिबंधच्चाई, सो च्चिय सच्चं गुरू भणिआ ॥८७॥ वासांइ महामुणिणो, तवसुसियतणू वि जत्थ पडिभग्गा । तं घोरबंभचेरं, चरंतओ चेव भावगुरू निच्चसमुच्छलणपरं सपरोभयविसयमऽवि कसायऽग्गिं । पसमोवएससलिलेण, जो य उवसामणसमत्थो ॥८९॥ खंत्तिप्पमोक्खदसविह-निम्मलमुणिधम्मगुणमणिगणस्स । रोहणगिरिभूमिसमो, जिणनिद्दिट्ठो स इट्ठगुरू पंचसमिओ तिगुत्तो, जमनियमपरायणो महासत्तो । समयाऽमयरसतित्तो, जो सो भणिओ उ भावगुरू | सक्कयपाययअवहट्ठ- देसीभासाविसेसवयणेहिं । सीसाऽयबोहकुसलो, पियंवओ होइ भावगुरू जह रन्नो रंकस्स वि, तहेव समसरिसचित्तवित्तीए । अक्खंतो सद्धम्मं, भावपहाणो गुरु होड़ समसुहदुक्खो समतिण - मणी य समकणयकयवरो धीरो । समपरिभवसम्माणो, समसुहिसत्तू य होइ गुरु ॥९४॥ सारीरमाणसाऽणेग- दुक्खसंतावतावियजणाण । तुहिणाऽऽयरो व्व सिसिरो, जो होइ गुरुतणं तस्स संवेगगब्भहियओ, सम्मं संवेगगब्भवयणो य । संवेगगब्भकिरियो, जो सो परमत्थओ सुगुरू
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| सावज्जऽणवज्जगिरं, जाणइ जो वज्जई य सावज्जं ने निरयज्जं कज्जे च्चिय, वज्जरइ य तं गुरुं सयउ ॥९on सावज्जऽणवज्जाणं, वयणाणं जो न जाणइ विसेसं । वोतुं पि तस्स न खमं, किमंडग ! पुण देसणं काउं ॥ ९८ ॥ ता हेउवायपक्खम्मि, हेऊओ आगमे य आगमिओ । जो स गुरू इयरो पुण, जिणवयणविराहगो जम्हा ॥९९॥ नियमइअवराहेणं, असंगयऽत्थाण पोसगो मूढो । जणयइ परस्स बुद्धिं सव्यन्नू अलियवाई ति ॥८९००॥ | दुरऽहीयकुनयलयमय - विमोहिओ जिणमयं अयाणंतो । 2योत्तुं तमन्नहा वि हु, कुगईए गमेइ सपरुभयं ॥१॥
तुम्हा
| ससमयपरसमयविऊ', संविग्गो' सेसयाण संवेगं । जणयंतो मज्झत्थो, कयकरणों' गाहणाकुसलो सत्तुवयारम्मि रओ, दढप्पइन्नो ऽणुवत्तओ' मइमं । अरिहइ जिणिदभणियं, धम्मं परिसाए परिकहिउं ससमयपरसमयविऊ, तित्थियसमयाउ दंसह विसेसं । जिणधम्मस्स अओ सो, उच्छाहं कुणड़ जिणधम्मे सुतत्थं च पयासइ, निस्सेसनएहिं जिणमयन्नू य । उस्सग्गऽववायाणं, जहट्ठियं दंसइ विसेसं संविग्गो सब्भायं, कहेड़ इड़ पच्चओ न इयरम्मि । चरणकरणं चयंतो, चएज्ज सव्यंपि यवहारं | गुणसुट्ठियस्स वयणं, घयमहुसितो व्य पावओ भाइ । गुणहीणस्स न सोहड़, नेहविहीणो जहा दीवो आयारे वट्टंतो, आयारपरूवणे असंकेओ । आयारपरिब्भट्ठो, सुद्धचरणदेसणे भइओ
भवसयसहस्सलद्धं, जिणवयणं भावओ चयंतस्स । जस्स न जायं दुक्खं न तस्स दुक्खं परे दुहिए जहथाममुज्जमंतो, संवेगं कुणड़ तह य मज्झत्थो । अब्भुट्टिएऽणुगिण्हइ, कयकरणो गाहणाकुसलो सत्तुवयारम्मि रओ, थिरपरिचियमऽत्थसुत्तमऽ गिलाए । पुणरुत्तवाणिदाणाऽऽइ - गाउ सेहे करावेड़
1. श्रयतु 1 2. उक्त्वा ।
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