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The text discusses the concepts of *Abhiggah* and *Viggai* *Paccakkhan* and their interpretations.
**Abhiggah Paccakkhan**
* It refers to the renunciation of *Abhiggah* (attachment).
* It involves four *Agars* (stages).
* The sutra states: "Abhiggaham Paccckkhaai, Annatthanaabhogenaam, Sahaasaagaarenaam, Mahattaraagaarenaam, Savvasamaahivattiaagaarenaam Vosirai."
* The meaning of these terms has been explained previously.
* If a monk renounces clothes as part of *Abhiggah* *Paccakkhan*, a fifth *Agar* called *Cholapattaagaarenaam* is added.
* This *Agar* allows the monk to wear a *Cholapatta* (a type of cloth) in case of necessity without breaking the *Paccakkhan*.
**Viggai Paccakkhan**
* It involves eight or nine *Agars*.
* The sutra states: "Viggaio Paccckkhaai, Annatthanaabhogenaam, Sahaasaagaarenaam, Levaalevenaam, Gihatthasansatenaam, Ukhittvivegaenaam, Paducchammakkhienaam, Paritthavaaniyagaarenaam, Mahattaraagaarenaam, Savyasamaahiyattiaagaarenaam Vosirah."
* *Viggai* refers to substances that cause mental disturbances.
* There are ten types of *Viggai*:
1. Milk
2. Yogurt
3. Ghee
4. Butter
5. Oil
6. Jaggery
7. Alcohol
8. Honey
9. Meat
10. Fried foods
**Details of each type of Viggai:**
* **Milk:** Milk from cows, buffaloes, goats, camels, and sheep is considered *Viggai*.
* **Yogurt:** Yogurt from all except camels is *Viggai*.
* **Ghee and Butter:** Ghee and butter from the same animals as milk are *Viggai*.
* **Oil:** Oils from sesame, flaxseed, coconut, and mustard (including *Laha*) are *Viggai*. Other oils are considered *Lepkrut* (not *Viggai* but allowed for external use).
* **Jaggery:** Both soft and hard jaggery made from sugarcane or palm juice is *Viggai*. This includes sugar, brown sugar, *Mishri*, and sweets made from them.
* **Alcohol:** Both *Kasthajan* (made from sugarcane, palm, etc.) and *Pishtajan* (made from fermented flour) alcohol are *Viggai* and should be completely avoided.
* **Honey:** Honey from bees, *Kunta* (a flying insect), and *Bhramari* (a type of bee) is *Viggai*.
* **Meat:** Meat from aquatic, terrestrial, and aerial animals is *Viggai*. This includes skin, fat, blood, marrow, and bones.
* **Fried Foods:** All fried foods like *Jalebi*, *Bade*, *Pakode*, etc., are *Viggai*.
**The concept of *Aavgaah* and *Neevi* (Non-Viggai):**
* *Aavgaah* refers to the process of frying food in oil or ghee.
* *Neevi* refers to food that is not *Viggai*.
* According to some scholars, food fried four times is considered *Neevi*.
* Monks who are practicing *Yogodvahan* (intense spiritual practice) can consume *Neevi* food that has been fried three times, provided no additional oil or ghee is added.
* Some scholars also believe that if a large *Pooa* (a type of fried food) is fried in a pan so that it completely covers the oil or ghee, then the second frying of other foods in the same oil is considered *Neevi* for monks practicing *Yogodvahan*.
* However, all such foods are considered *Lepkrut*.
**Conclusion:**
* Out of the ten types of *Viggai*, meat and alcohol are completely forbidden.
* Honey and *Navneet* (fresh butter) are also generally forbidden.
* The remaining six types of *Viggai* are allowed for consumption.
* Monks practicing *Yogodvahan* can consume *Neevi* food under certain conditions.
**Note:** This translation preserves the Jain terms and provides a detailed explanation of the concepts discussed in the text.
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अभिग्गह और विग्गई पच्चक्खाण के पाठ और उनकी व्याख्या
योगशास्त्र तृतीय प्रकाश श्लोक १२९ है। ऐसा कोई भी अभिग्रहयुक्त पच्चक्खाण करना अभिग्रह प्रत्याख्यान कहलाता है। इसमें चार आगार है। इसका सूत्रपाठ इस प्रकार है
अभिग्गहं पच्चक्खाइ, अण्णत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, महत्तरागारेणं, सव्वसमाहिवत्तिआगारेणं वोसिरइ।
इन पदों की व्याख्या पहले की जा चुकी है। इतना जरूर समझ लेना है कि यदि कोई साधु वस्त्र त्याग रूप अभिग्रह प्रत्याख्यान करता है, तो उसके साथ चोलपट्टागारेणं नामक पंचम आगार अवश्य बोले इस आगार के कारण यदि किसी गाढ़कारणवश वह चोलपट्टा धारण कर लेता है तो भी उसके इस पच्चक्खाण का भंग नहीं होता। अब विग्गइपच्चक्खाण का स्वरूप बताते हैं। इसमें आठ या नौ आगार बताये गये हैं। इसका सूत्रपाठ इस प्रकार है
विग्गइओ पच्चक्खाइ, अण्णत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, लेवालेवेणं, गिहत्थसंसटेणं, उखित्तविवेगेणं, पडुच्चमक्खिएणं, परिट्ठावणियागारेणं, महत्तरागारेणं, सव्यसमाहियत्तिआगारेणं वोसिरह। _____ अमुक खाद्य पदार्थ जो प्रायः मन में विकार पैदा करने में कारणभूत होते हैं, उन्हें जैन-परिभाषा में विग्गई| (विकृतिक) कहा जाता है। इसके दस भेद हैं। वे इस प्रकार है-१. दूध, २. दही, ३. घी, ४. मक्खन, ५. तेल, ६. गुड, ७. मद्य, ८. मधु, ९. मांस और १०. तली हुई वस्तुएँ। १. दूध-गाय, भैंस, बकरी, ऊंटनी और भेड़ इन पांचों का दूध विग्गई है। २.ऊंटनी के दूध का दही नहीं बनता; अतः इसे छोड़कर शेष चारों का दही विग्गई है। ३.-४. इसी प्रकार इन चारों का मक्खन और घी विग्गई है। ५. तिल, अलसी, नारियल तथा सरसों (इसमें 'लाहा' भी शामिल है), इन चारों के तेल विग्गई में माने जाते हैं, अन्य तेल विग्गई में नहीं माने जाते; वे केवल लेपकृत माने जाते है। ६. इक्षुरस या ताड़रस को उबालकर बना हुआ नरम व सख्त दोनों प्रकार का गुड़ विग्गई है। (गड़ के अंतर्गत खांड. चीनी, बुरा शक्कर, मिश्री तथा इनसे बनी हुई मिठाइयां भी विग्गई में मानी जाती है। ७. मद्य-शराब (मदिरा) दो प्रकार की है। एक तो महड़ा, गन्ना, ताड़ी आदि के रस से बनती है, उसे काष्ठजन्य मद्य कहते हैं; दूसरा आटे आदि को सड़ागलाकर उसे बनाया जाता है; उसे पिष्टजन्य कहते हैं। दोनों प्रकार का मद्य (शराब) महाविकृतिकारक होने से सर्वथा त्याज्य है।) ८. मधु - शहद तीन किस्म का होता है। एक मधुमक्खी से, दूसरा कुंता नामक उड़ने वाले जीवों से और तीसरा भ्रमरी के द्वारा तैयार किया हुआ होता है। (ये तीनों प्रकार के शहद उत्सर्ग रूप से वर्जित है) ९. मांस भी तीन प्रकार का होता है-जलचर का, स्थलचर का और खेचर जीवों का। जीवों की चमड़ी, चर्बी, रक्त, मज्जा, हड्डी आदि भी मांस के अंतर्गत है। १०. तली हई चीजें - घी या तेल में तले हए पए जलेबी आदि मिठाइयां. चटपटे मिर्चमसालेदार बड़े, पकौड़े आदि सब भोज्य पदार्थों की गणना अवगाहिम (तली हुई) में होती है। ये सब वस्तुएँ विग्गइ
। अवगाह शब्द के भाव-अर्थ में 'इम' प्रत्यय लगने से अवगाहिम शब्द बना है। इसका अर्थ होता है-तेल, घी आदि | से भरी कड़ाही में अवगाहन करके-डुबकर जो खाद्यवस्तु, जब वह उबल जाय तब बाहर निकाली जाय। यानी तेल, घी आदि में तलने के लिए खाद्यपदार्थ डाला जाय और तीन बार उबल जाने के बाद उसे निकाला जाय; ऐसी वस्तु मिठाई, बड़े, पकौड़े या अन्य तली हुई चीजें भी हो सकती है और वे शास्त्रीय परिभाषा में विग्गई कहलाती है। वृद्ध आचार्यों की धारणा है कि अगर चौथी बार की तली हुई कोई वस्तु हो तो वह नीवी (निविग्गई) के योग्य मानी जाती | है। ऐसी नीवी (निविग्गई विग्गई रहित) वस्तु योगोद्वाहक साधु के लिए नीवी (निर्विकृतिक) पच्चक्खाण में कल्पनीय है। अर्थात्-तली हुई वस्तु (विग्गई) के त्याग में भी योगोद्वहन करने वाले साधु-साध्वी नीवी पच्चक्खाण में भी तीन घान (बार) के बाद की तली हुई मिठाई या विग्गई ले सकते हैं, बशर्ते कि बीच में उसमें तेल या घी न डाला हो। वृद्धाचार्यों की ऐसी भी धारणा है कि जिस कड़ाही में ये चीजें तली जा रही हों, उस समय उसमें एक ही पूआ इतना बड़ा तला जा रहा हो, जिससे कड़ाही का तेल या घी पूरा का पूरा ढक जाय तो दूसरी बार की उसमें तली हुई मिठाई आदि चीजें योगोद्वाहक साधु-साध्वी के लिए नीवी पच्चक्खाण में भी कल्पनीय हो सकती है। परंतु वे सब चीजें लेपकृत समझी जाएँगी। उपर्युक्त दस प्रकार की विग्गइयों में मांस एवं मदिरा तो सर्वथा अभक्ष्य है, मधु और | नवनीत कथंचित् अभक्ष्य है। शेष ६ विग्गइयां भक्ष्य हैं। इन भक्ष्य विग्गइयों में से एक विग्गई से लेकर ६ विग्गइयों 1. यह कथन बाह्य प्रयोग के लिए संभवित होगा।
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