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* संबोधि और त्रिगुणात्मक अभिव्यक्ति र
आदमी क्या कर्मठ होगा! यह महावीर श्वास भी सोच-समझकर | इतना जोर से वहां उपद्रव मचाता है कि सैकड़ों ब्याजखोर भाग खड़े लेते हैं, क्योंकि प्रति श्वास में सैकड़ों जीवाणु मर रहे हैं। होते हैं। यह तो बाद में ही समझ में आता है कि एक आदमी ने इतना
महावीर पानी छानकर पीते हैं। वह भी जब अति प्यास लग | उपद्रव कैसे मचा दिया! आए, तब पीते हैं। भोजन बामुश्किल कभी करते हैं, क्योंकि भोजन पर यह जीसस में एक गहरी क्रांति है। इसलिए जीसस का सूली में हिंसा है। मांसाहार में ही हिंसा नहीं है; सब भोजन में हिंसा है। | पर लटकना ठीक गणित का हिसाब है। इतना बड़ा क्रांतिकारी शाकाहार में भी हिंसा है। क्योंकि शाक-सब्जी में प्राण है। पौधे में आदमी सूली पर जाएगा ही। इसका दूसरा अंत नहीं हो सकता। प्राण है। माना कि उतना प्रकट प्राण नहीं है, जितना पशु में है, महावीर को हम सूली पर लटकते हुए नहीं सोच सकते। कोई जितना मनुष्य में है, लेकिन प्राण तो है।
कारण नहीं है। जो किसी को दुख नहीं पहुंचा रहा है; जो किसी के महावीर पहले व्यक्ति हैं, जिन्होंने घोषणा की कि इस जीवन में काम में आड़े नहीं आ रहा है; जो किसी को छूता भी नहीं...। सब तरफ प्राण है। इसलिए कहीं से भी भोजन करो, मृत्यु घटित महावीर की धारा में उनकी अहिंसा को अगर ठीक से समझें, तो होती है। इसलिए महावीर कहते हैं, पका हुआ फल जो वृक्ष से गिर | | उसका मतलब यह होता है कि किसी के कर्म में भी बाधा डालने में जाए, पका हुआ गेहूं जो पौधे से गिर जाए, बस वही लेने योग्य है।। | हिंसा हो जाती है। कोई आदमी जा रहा है, उसको रोक लेना काम
लेकिन उसमें भी हिंसा तो हो ही रही है। क्योंकि जो बीज आप ले में जाते से, तो भी हिंसा हो जाती है। क्योंकि आप बीच में बाधा रहे हैं, वह अंडे की तरह है। उस बीज से अंकुर पैदा हो सकता था। डाल रहे हैं। उससे एक वृक्ष पैदा हो सकता था। उस वृक्ष में हजारों बीज लगते। कोई बाधा नहीं डालनी है। अपने को ऐसे बना लेना है, जैसे मैं
तो अगर अंडा खाना पाप है, तो गेहूं का बीज खाना भी पाप है। | | हूं ही नहीं। तो ऐसा व्यक्ति क्रांति नहीं ला सकता। या ऐसे व्यक्ति क्योंकि अंडा बीज है। उसमें पाप क्या है? इसलिए कि मुर्गी पैदा की क्रांति बड़ी अदृश्य होगी। उसके कोई दृश्य रूप नहीं होंगे। होती है। फिर मुर्गी से और मुर्गियां पैदा होती हैं। एक बड़ी संतति सत्व अगर हो, तो महावीर जैसा व्यक्ति पैदा होगा, व्यक्तित्व को आपने रोक दिया। एक जीवन की धारा आपने काट दी। एक में अगर सत्व हो! अगर रज हो, तो जीसस जैसा व्यक्ति पैदा होगा। गेहूं को खाकर भी काट दी। उस गेहूं से नए पौधे पैदा होते। उन तम हो, तो लाओत्से जैसा व्यक्ति पैदा होगा। पौधों में नए बीज लगते। न मालम कितने जीवन की धारा अनंत | इसको और भी तरह से समझ लें। वर्षों तक चलती, वह आपने गेहूं को खाकर रोक दी।
इसलिए लाओत्से के पीछे कोई बहुत बड़ा विराट धर्म नहीं बन तो महावीर मुश्किल से भोजन करते हैं। अगर भूखे चल सकें, । सका। अकर्मण्यता के आधार पर आप बनाएंगे भी कैसे? कौन तो भूखे चलते हैं। प्यासे चल सकें, तो प्यासे चलते हैं। कथा यह है करेगा प्रचार? कौन जाएगा समझाने? लाओत्से का मानने वाला कि बारह वर्षों की साधना में उन्होंने केवल तीन सौ साठ दिन ज्यादा शांत बैठ जाता है। आप उसे हिलाएं-डुलाएं, बहुत पूछे, तो से ज्यादा भोजन लिया। बारह वर्ष में एक वर्ष! कभी दो महीने नहीं बामुश्किल जवाब देगा। खाया, कभी महीनेभर नहीं खाया; कभी तीन महीने नहीं खाया। लाओत्से जिंदगीभर नहीं बोला। आखिर में सिर्फ यह खाते ही तब हैं, जब उपवास आत्महत्या के करीब पहुंचने लगे। जब | ताओ-तेह-किंग, एक छोटी-सी किताब उसने लिखवाई। यह भी ऐसा लगे कि.अब शरीर ही छूट जाएगा, तभी। जब अपनी ही मृत्यु | मजबूरी में कि पीछे ही पड़ गए लोग कि उसको जाने ही नहीं देते घटित होने लगे, और वह भी इसलिए कि अभी ज्ञान की घटना नहीं थे मुल्क के बाहर। घटी, इसलिए शरीर को सम्हालना जरूरी है। अभी वह परम मुक्ति | वह जाना चाहता था हिमालय की यात्रा पर, अपने को खो देने के उपलब्ध नहीं हुई, इसलिए शरीर को ढोना जरूरी है। लिए हिमालय में। उसको रोक लिया चुंगी चौकी पर और कहा कि
इन महावीर से आप कोई जीसस जैसी क्रिया नहीं अनुभव कर जब तक तुम्हारा ज्ञान तुम लिख न दोगे, जाने न देंगे। तो तीन दिन सकते। जीसस जाते हैं मंदिर में; देखते हैं कि ब्याजखोरों की कतार | | वह चुंगी चौकी पर बैठकर उसने लिखवाया, जो उसको ज्ञान था। लगी है; उठा लेते हैं कोड़ा। सोच भी नहीं सकते, महावीर कोड़ा | | यह भी जबरदस्ती लिखवाया गया। यह कोई लाओत्से ने अपने उठा लें। उलट देते हैं तख्ने ब्याजखोरों के। अकेला एक आदमी || मन से लिखा नहीं। अगर चुंगी चौकी का अधिकारी चूक जाता और