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* गीता दर्शन भाग-7 *
बहुत अनूठा नहीं है। यह बिलकुल सरल है। संसार में हैं, तो पागल | नहीं। अगर उसके बस में हो सोना, तो लाओत्से लेटेगा नहीं। की तरह; और संसार छोड़ दिया, तो सारा पागलपन छोड़ दिया। | निष्क्रियता की जो भी संभावना आखिरी बस में हो, उसमें ही कृष्ण का प्रयोग बड़ा अनूठा है। संसार छोड़ भी दिया, और उसके लाओत्से डूबेगा। भीतर हैं। पागलपन बिलकुल पोंछ डाला, और फिर भी पागलों के लाओत्से परम ज्ञानी है, पर उसके पास व्यक्तित्व तमस का है। साथ वैसा ही व्यवहार कर रहे हैं, जैसा कि कोई पागल करे। कृष्ण | इसलिए आलस्य लाओत्से के लिए साधना बन गई। और निश्चित का प्रयोग अत्यंत अनूठा है।
| ही, जो उसने जाना है, वही वह दूसरों को सिखा सकता है। महावीर, बुद्ध परंपरागत संन्यासी हैं। कृष्ण बहुत क्रांतिकारी तो लाओत्से कहता है, जब तक तुम कुछ कर रहे हो, तब तक संन्यासी हैं। मैं यह नहीं कह रहा हूं कि आप इसलिए कृष्ण को चुन तुम भटकोगे। ठहरो, करो मत। क्योंकि लाओत्से ने ठहरकर ही लें। आप अपनी नियति को समझें। यह भी नहीं कह रहा हूं कि आप पाया है। तो लाओत्से कहता है कि अगर तुम क्या शुभ है, क्या बुद्ध को छोड़ दें या चुन लें। आप अपनी नियति को समझें। आपके अशुभ है, क्या नीति है, क्या अनीति है, इस व्यर्थता में पड़ोगे, लिए क्या ठीक मालूम पड़ता है; आपके लिए क्या सुगम होगा, सत्व की खोज में, तो भटक जाओगे। धर्म का नीति से कोई संबंध सहज होगा; कैसी जीवन-धारा में उतरकर आप व्यर्थ की तकलीफ नहीं। जब जगत में ताओ था, धर्म था, तो कोई नीति न थी; कोई नहीं पाएंगे, सरलता से बह सकेंगे, वही आपकी नियति है। | साधु न थे; कोई असाधु न थे। तुम अपनी सहजता में डूब जाओ।
फिर आप दूसरे की चिंता में मत पड़ें। कोशिश करके न आप | और उस डूबने के लिए एक ही कुशलता है, एक ही योग्यता है कि कृष्ण बन सकते हैं और न बुद्ध। कोशिश आपको भ्रांत कर देगी। तुम पूरी अकर्मण्यता में, अक्रिया में, पूरे अकर्म में ठहर जाओ। सहजता ही आपके लिए स्वास्थ्यदायी हो सकती है।
तमस लाओत्से का व्यक्तित्व है। घटना उसे वही घटी है, जो कष्ण ने क्या किया. इसे समझना हो. तो यह सत्र खयाल में रखें बद्ध को. महावीर को. कष्ण को घटी है। कि कृष्ण, बुद्ध जैसे संन्यासी होकर ठीक संसार में खड़े हैं बिना जिन लोगों का व्यक्तित्व रजस का है, और वहां से वे छलांग छोड़े हुए। और आपसे कोई भी संबंध संसार में बनाना हो, तो | लगा लेंगे, जैसे जीसस, तो फिर परम ज्ञान जब उन्हें पैदा होगा, तो निश्चित ही आपकी भाषा बोलनी जरूरी है और आपके आचरण | उनका परम ज्ञान उसी क्षण कर्म बनना शुरू हो जाएगा। उनका कर्म के साथ चलना जरूरी है। आपको बदलना भी हो, तो भी थोड़ी दूर | सेवा हो जाएगी। वे विराट कर्म में लीन हो जाएंगे। वे कहेंगे, कर्म तक आपके साथ चलना जरूरी है।
ही योग है। इसी संबंध में यह भी समझ लेना उचित होगा कि सत्व, रजस | कृष्ण ने कहा है, कर्म की कुशलता ही योग है। और लाओत्से और तमस के गुणों का इस संबंध में क्या रूप होगा।
कहता है, अकर्म, अक्रिया, सब भांति ठहर जाना ही एकमात्र अगर कोई व्यक्ति तमस की अवस्था से सीधा छलांग लगाए सिद्धि है। गुणातीत अवस्था में, तो उसका जीवन-व्यवहार लाओत्से जैसा ___ कर्म की कुशलता योग है, अगर रजस आपका व्यक्तित्व हो होगा। क्योंकि उसके पास जो व्यक्तित्व होगा, वह तमस का होगा। | और ज्ञान की घटना घटे। घट सकती है। किसी भी जगह से आप चेतना तो छलांग लगा लेगी गुणातीत अवस्था में, लेकिन उसके छलांग लगा सकते हैं। पास व्यक्तित्व तमस का होगा।
अगर सत्व का आपका व्यक्तित्व हो, जैसे महावीर, जैसे बुद्ध, इसलिए लाओत्से कहता है, अकर्मण्यता भली। लाओत्से सत्व का व्यक्तित्व है, तो इनके जीवन में न तो आलस्य होगा, कहता है, कुछ न करना ही योग्यता है। ना-कुछ में ठहर जाना ही लाओत्से जैसी शिथिलता भी नहीं होगी, और न ही जीसस जैसा परम सिद्धि है।
| कर्म होगा। इनके जीवन में बड़ी साधुता का शांत व्यवहार होगा। लाओत्से के जीवन में कोई उल्लेख भी नहीं है कि उसने कुछ महावीर चलते भी हैं, तो रास्ते पर देखकर कि चींटी दब न जाए। किया हो। कहा जाता है कि अगर उसके बस में हो चलना, तो यह आदमी रजोगुणी हो ही नहीं सकता, जो चलने में इतना ध्यान लाओत्से दौड़ेगा नहीं। अगर उसके बस में हो बैठना, तो लाओत्से | रखे कि चींटी न दब जाए। महावीर रात करवट नहीं बदलते कि चलेगा नहीं। अगर उसके बस में हो लेटना, तो लाओत्से बैठेगा | करवट बदलने में अंधेरे में कोई कीड़ा-मकोड़ा न दब जाए। यह