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* संबोधि और त्रिगुणात्मक अभिव्यक्ति *
समान हैं। उनके बीच कोई समानता का आधार नहीं है। और उन | बुद्ध के व्यक्तित्व पर निर्भर है। घटना एक ही घटी है। सबके व्यक्तित्व का ढंग बिलकुल पृथक-पृथक है।
इसे ऐसा समझ लें कि एक चित्रकार सुबह सूरज को उगते हुए जैसे मीरा है। मीरा नाच रही है। हम सोच भी नहीं सकते कि | | देखे। और एक संगीतकार सुबह सूरज को उगता देखे। और एक बुद्ध, और नाचें! कृष्ण बांसुरी बजा रहे हैं। महावीर के होंठों पर | नृत्यकार सूरज को उगता देखे। और एक मूर्तिकार और एक कवि बांसुरी रखनी बड़ी बेहूदी मालूम पड़ेगी; एब्सर्ड है। उसकी कोई | सूरज को उगता देखे। ये सारे लोगों ने एक ही सूरज को उगते देखा संगति नहीं बैठती। महावीर का जीवन, व्यक्तित्व, ढंग, उससे | है। और इन सबके चित्त पर एक ही सौंदर्य की घटना घटी है। ये बांसुरी का कोई संबंध नहीं बैठ सकता।
सब आनंद से भर गए हैं। वह सुबह का उगता सूरज इनके भीतर कृष्ण के ऊपर मोर-मुकुट शोभा देता है। वह उनके व्यक्तित्व | | भी कुछ उगने की घटना को जन्म दे गया है। इनके भीतर भी चेतना की सचना है। वैसा मोर-मकट आप जीसस को बांध देंगे, तो बहत आंदोलित हई है। बेहूदा लगेगा। जीसस को तो कांटों का ताज और सूली ही जमती लेकिन चित्रकार उसका चित्र बनाएगा। अगर आप उससे पूछेगे है। सूली पर लटककर जब कांटों का ताज उनके सिर पर है, तब | कि क्या देखा, तो चित्र बनाएगा। कवि एक गीत में बांधेगा, अगर जीसस अपने शिखर पर होते हैं। और कृष्ण जब बांसुरी बजा रहे | आप उससे पूछेगे, क्या देखा। नर्तक नाच उठेगा, नाचकर कहेगा हैं मोर-मुकुट रखकर, तब अपने शिखर पर होते हैं।
कि क्या देखा। एक-एक व्यक्ति अनूठा है यह खयाल में आ जाए, तो महापुरुष | __ एक बहुत कीमती विचारक और लेखक यूनान में हुआ बिलकुल अनूठे हैं। जब ज्ञान की घटना घटती है, तो ज्ञान की घटना | | अभी-अभी, निकोस कजानजाकिस। उसने एक बड़ी अनूठी किताब तो एक ही है। ऐसा समझें, यहां हम इतने लोग बैठे हैं। यहां प्रकाश | | लिखी है, ज़ोरबा दि ग्रीक। एक उपन्यास है, ज़ोरबा नाम के एक है। तो प्रकाश की घटना तो एक ही जैसी है, लेकिन सभी आंखों | आदमी के आस-पास। वह आदमी बड़ा नैसर्गिक आदमी है, जैसा में एक जैसा प्रकाश दिखाई नहीं पड़ रहा है। क्योंकि आंखों का | | स्वाभाविक आदमी होना चाहिए। न उसके कोई सिद्धांत हैं, न कोई यंत्र, देखने वाला यंत्र, प्रकाश को प्रभावित कर रहा है। आदर्श हैं। न कोई नीति है, न कोई नियम है। वह ऐसा आदमी है,
किसी की आंखें कमजोर हैं, उसे धीमा प्रकाश दिखाई पड़ रहा | | जैसा कि आदमी को अगर सभ्य न बनाया जाए और प्रकृति के सहारे होगा। किसी की आंखें बहुत तेज हैं, तो उसे बहुत प्रकाश दिखाई । | छोड़ दिया जाए, तो जो बिलकुल प्राकृतिक होगा। पड़ रहा होगा। और किसी की आंखों पर चश्मा है, और रंगीन है,। | जब वह क्रोध में होता है, तो आग हो जाता है। जब वह प्रेम में तो प्रकाश का रंग बदल जाएगा। और किसी की आंख बिलकुल | होता है, तो पिघलकर बह जाता है। उसके कोई हिसाब नहीं हैं। वह ठीक है लेकिन वह आंख बंद किए बैठा हो, तो प्रकाश दिखाई ही। क्षण-क्षण जीता है। . नहीं पड़ेगा, अंधकार हो जाएगा।
__ कजानजाकिस ने लिखा है कि जब वह खुश हो जाता था या कोई जब जीवन की परम अनुभूति घटती है, तो अनुभव तो बिलकुल ऐसी घटना घटती, जिससे वह आनंद से भर जाता, तो वह कहता एक है, लेकिन व्यक्तित्व अलग-अलग हैं। जब कृष्ण को वह | | कि रुको। वह ज्यादा नहीं बोल सकता, क्योंकि ज्यादा उसका भाषा परम अनुभव होगा, तो वे नाचने लगेंगे। यह उनके व्यक्तित्व से पर अधिकार नहीं है, वह शिक्षित नहीं है। तो वह अपना तंबूरा उठा आ रहा है नाच, उस अनुभव से नहीं आ रहा है। जब बुद्ध को वही | | लेता। तंबूरा बजाता। उसे कुछ कहना है; उसके भीतर कोई भाव परम अनुभव होगा, तो वे बिलकुल मौन होकर बैठ जाएंगे; उनके | | उठा है, उसे कहना है। वह तंबूरा बजाता। और कभी ऐसी घड़ी आ हाथ-पैर भी नहीं हिलेंगे; आंख भी नहीं झपकेगी। उनके भीतर जो जाती कि तंबूरे से भी वह बात प्रकट नहीं होती, तो तंबूरा फेंककर घटना घटी है, वह उनके मौन से प्रकट होगी, उनकी शून्यता से | | वह नाचना शुरू कर देता। और जब तक वह पसीना-पसीना होकर प्रकट होगी, उनकी थिरता से प्रकट होगी। उनका आनंद मखर नहीं गिर न जाता, तब तक वह नाचता रहता होगा, मौन होगा।
कजानजाकिस ने लिखा है कि मुझे उसकी भाषा समझ में नहीं बुद्ध चुप होकर प्रकट कर रहे हैं कि क्या घटा है। कृष्ण नाचकर आती थी। लगता था, वह नाच रहा है; कुछ उसके भीतर हो रहा प्रकट कर रहे हैं कि क्या घटा है। यह कृष्ण के व्यक्तित्व पर और | | है। और कुछ ऐसा विराट हो रहा है कि उसे प्रकट करने का उसके
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