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________________ गीता दर्शन भाग-7 अप्रकाशोऽप्रवृत्तिश्च प्रमादो मोह एव च । तमस्येतानि जायन्ते विवृद्धे कुरुनन्दन ।। १३ ।। यदा सत्त्वे प्रवृद्धे तु प्रलयं याति देहभृत् । तदोत्तमविदां लोकानमलान्प्रतिपद्यते ।। १४ । । रजसि प्रलयं गत्वा कर्मसगिषु जायते । तथा प्रलीनस्तमसि मूढयोनिषु जायते ।। १५ ।। हे अर्जुन, तमोगुण के बढ़ने पर अंतःकरण और इंद्रियों में अप्रकाश एवं कर्तव्य-कर्मों में अप्रवृत्ति और प्रमाद और निद्रादि अंतःकरण की मोहिनी वृत्तियां, ये सब ही उत्पन्न होते हैं। और हे अर्जुन, जब यह जीवात्मा सत्वगुण की वृद्धि में मृत्यु को प्राप्त होता है, तब तो उत्तम कर्म करने वालों के मलरहित अर्थात दिव्य स्वर्गादि लोकों को प्राप्त होता है। और रजोगुण के बढ़ने पर मृत्यु को प्राप्त होकर कर्मों की आसक्ति वाले मनुष्यों में उत्पन्न होता है तथा तमोगुण के बढ़ने पर मरा हुआ पुरुष मूढ़ योनियों में उत्पन्न होता है। पहले कुछ प्रश्न | पहला प्रश्नः कृष्ण परम ज्ञानी और त्रिगुणातीत हैं, फिर भी धोखा देते हैं, झूठ बोलते हैं, युद्ध करते हैं। बुद्ध, महावीर, लाओत्से आदि ऐसा कुछ भी नहीं करते । सत्व, रजस, तमस गुणों संदर्भ में कृष्ण के उपरोक्त व्यक्तित्व पर प्रकाश डालने की कृपा करें। प हली बात तो यह समझ लेनी जरूरी है कि दो महापुरुषों के बीच कोई तुलना संभव नहीं है। और सभी तुलनाएं गलत हैं। प्रत्येक महापुरुष अद्वितीय है। उस जैसा दूसरा कोई भी नहीं । वस्तुतः तो साधारण पुरुष भी अद्वितीय है। आप जैसा भी कोई दूसरा नहीं | आपके भीतर ही महापुरुष तब प्रकट होता है, जब आप अपने स्वभाव को, अपनी नियति को उसकी पूर्णता में ले आते हैं। आप भी बेजोड़ हैं। आप जैसा दूसरा कोई व्यक्ति पृथ्वी पर नहीं हैन आज है, न कल था, और न कल होगा। एक वृक्ष का पत्ता भी पूरी पृथ्वी पर खोजने जाएं, तो दूसरा वैसा ही पत्ता नहीं खोज पाएंगे। एक पत्थर का टुकड़ा भी, एक कंकड़ भी अपने ही जैसा है। और जब आपका निखार होगा, और आपके जीवन की परम सिद्धि प्रकट होगी, तब तो आप एक गौरीशंकर के शिखर बन जाएंगे। अभी भी आप बेजोड़ हैं। तब तो आप बिलकुल ही बेजोड़ होंगे। अभी तो शायद दूसरों के साथ कुछ तालमेल भी मिल जाए। फिर तो कोई तालमेल न मिलेगा। अभी तो भीड़ का प्रभाव है आपके ऊपर, इसलिए भीड़ से आप अनुकरण करते हैं। भीड़ की नकल करते हैं। और पड़ोसी जैसा है, वैसा ही बनने की कोशिश करते हैं। क्योंकि इस भीड़ के बीच जिसे जीना हो, अगर वह बिलकुल अनूठा हो, तो भीड़ उसे मिटा देगी। भीड़ उनको ही पसंद करती है, जो उन जैसे हैं। वस्त्रों में, आचरण में, व्यवहार में भीड़ चाहती है आप विशिष्ट न हों, आप पृथक न हों, अनूठे न हों। भीड़ व्यक्ति को मिटाती है; एक तल पर सभी को आती है। 66 इसलिए बहुत कुछ आप में दूसरे जैसा भी मिल जाएगा। लेकिन जैसे-जैसे आपका स्वभाव निखरेगा, वैसे-वैसे आप भीड़ से मुक्त होंगे, वैसे-वैसे अनुकरण की वृत्ति गिरेगी, वैसे-वैसे वह घड़ी आपके जीवन में आएगी जब आप जैसा इस जगत में कुछ भी न रह जाएगा। कृष्ण, लाओत्से, बुद्ध, उस परम शिखर पर पहुंचे हुए व्यक्ति हैं। किसी की दूसरे से तुलना करने की भूल में मत पड़ना। उस तुलना में अन्याय होगा । अन्याय की संभावना निरंतर है। वह अन्याय यह है कि अगर आपको कृष्ण पसंद हैं, तो आप महावीर के साथ अन्याय कर जाएंगे। वह पसंदगी आपकी है। वह पसंदगी आपकी निजी बात है। और अगर आपको महावीर पसंद हैं, तो कृष्ण आपको कभी भी पसंद नहीं पड़ेंगे। यह आपका व्यक्तिगत रुझान है। इस रुझान को आप महापुरुषों पर मत थोपें। आपके रुझान में कोई गलती नहीं है। कृष्ण आपको प्यारे हैं, आप कृष्ण को प्रेम करें। और इतना प्रेम करें कि वही प्रेम आपके लिए रूपांतरण का कारण हो जाए, अग्नि बन जाए, और आप उसमें से निखर आएं। अगर महावीर से प्रेम है, तो महावीर को प्रेम करें। और महावीर के व्यक्तित्व को एक मौका दें कि वह आपको उठा ले, सम्हाल ले; आप डूबने से बच जाएं। महावीर का व्यक्तित्व आपके लिए नाव बन जाए। लेकिन दूसरे महापुरुष से तुलना मत करें। तुलना में गलती हो जाएगी । तुलना केवल उनके बीच हो सकती है, जो
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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