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* गीता दर्शन भाग-7
वह कभी-कभी रात उसके पैर दबाते-दबाते भी सो जाता था। वह | ध्यान में रखना है। तमोगुण का उतना ही उपयोग करना है, जिससे आया था पैर दबाने. इसको सलाने. सम्राट को। सम्राट तो जागता विश्राम मिले. आलस्य पैदा न हो। और रजोगण का उतना ही ही रहता और वह नाई धीरे-धीरे दबाते-दबाते सो जाता। | उपयोग करना है, जिससे जीवन की जरूरत पूरी हो, लोभ पैदा न
उस सम्राट ने कहा कि तेरे पास कुछ कला होनी चाहिए! तू भी | हो। बस, फिर आपके भीतर सत्व की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। गजब का आदमी है। सुलाने हमें आया था और खुद तू सो रहा है! ___ यही अर्थ है, तमोगुण और रजोगुण को दबाकर सत्वगुण पैदा उस नाई ने कहा, मैं गैर पढ़ा-लिखा आदमी, मुझे कुछ कला नहीं | | होता है अर्थात बढ़ता है। तथा रजोगुण और सत्वगुण को दबाकर आती।
तमोगुण बढ़ता है। वैसे ही तमोगुण और सत्वगुण को दबाकर सम्राट ने अपने वजीर से पूछा कि इसमें क्या राज होना चाहिए? रजोगुण बढ़ता है। वजीर बुद्धिमान था। उसने कहा कि राज है। कल देखेंगे। कल आप अपने भीतर दो को दबा सकते हैं; तीसरा मुक्त हो जाता आपको जवाब दे दूंगा।
है। जिसे भी मुक्त करना हो, उसको छोड़कर बाकी दो को दबाना रात वह नाई के घर में निन्यानबे रुपयों की भरी हुई एक थैली शुरू कर देना चाहिए। फेंक आया। रातभर नाई सो नहीं सका, क्योंकि वह जो एक रुपया हम सारे लोग सत्वगुण को दबाते हैं। अच्छाई, शुभ हम दबाते . कम था! उसने सोचा कि कल कुछ भी कर के एक रुपया जोड़ देना | हैं। जहां तक बच सकें, उससे बचते हैं। अगर शुभ करने का कोई है; सौ हो जाएंगे! गजब हो गया। कभी सोचा नहीं था कि सौ अपने मौका हो, शांत होने का कोई मौका हो, सत्व में उतरने की कोई पास हो जाएंगे। एक ही कमाता था वह रोज। रोज खा लेता था। सुविधा हो, तो हम उसको चूकते हैं। रात सो जाता था।
अगर कोई कहे कि आओ, एक घंटा चुपचाप शांति से बैठे, तो दूसरे दिन सुबह बिलकुल आंखें उसकी लाल; रात बिना सोए| हमें व्यर्थ लगता है। हम कहेंगे, कुछ करो। ताश ही खेलें। बैठने हुए आया। पैर भी उसने दबाए सम्राट के, तो सम्राट को लगा, से क्या होगा! कुछ करें। आज कुछ फर्क है। उसमें जान न थी। क्योंकि विश्राम न हो, तो झेन फकीर जापान में बैठना सिखाते हैं। वे कहते हैं साधु को, कोई श्रम के लिए तैयार नहीं हो सकता। उसने पूछा, मामला क्या | तू बैठना सीख जा बस! पर बैठने में दो बातों का खयाल रखना है? नाई ने कहा, समझ में मेरे भी नहीं आता; लेकिन रात मैं सो पड़ता है। झेन फकीर, जो गुरु होता है, वह हाथ में एक डंडा लेकर नहीं सका।
घूमता रहता है। दो बातें खयाल रखनी पड़ती हैं। तमोगुण दबाना सम्राट ने कहा, इसमें कुछ वजीर का हाथ तो नहीं है? वजीर ने | पड़ता है और रजोगुण दबाना पड़ता है। दोनों एक साथ दबाना तुझ से कुछ कहा तो नहीं? उसने कहा, किसी ने कुछ कहा नहीं। पड़ता है। वह डंडा लेकर घूमता है। वह कहता है, बैठे तो रहो, लेकिन जब आप पूछते हैं, तो कल रात मुझे घर में एक निन्यानबे लेकिन सो मत जाना। सोकर आप धोखा नहीं दे सकते। क्योंकि रुपये की थैली पड़ी मिल गई। उससे मैं मुसीबत में पड़ गया हूं। सो | आपका सिर हिलने लगेगा। जैसे ही सिर हिला कि डंडा आपके नहीं सका। सम्राट ने कहा, मैं समझ गया। वह वजीर चालाक है। सिर पर होगा। वह गरुडंडा मारेगा फौरन। और। उसने तुझे निन्यानबे के चक्कर में डाल दिया। इसी चक्कर में मैं हूं। | तो आठ डंडा मारने की आज्ञा है। तो वह आठ बार आपके सिर पर बस, अब बात साफ हो गई।
डंडा मारेगा, बेरहमी से। भीतर तक तमोगुण को झटका लग जाए! वह जो दुकानदार है-या कोई भी, जो किसी चक्कर में है, | न तो सोने देगा, और न कुछ करने देगा। कि आप ऐसा हिलने लोभ के, वासना के-वह श्रम नहीं कर रहा है। उसका श्रम लगें, तो भी डंडा पड़ जाएगा। क्योंकि हिलने का मतलब हुआ कि ऊपर-ऊपर है; भीतर कुछ और चल रहा है। वह और जो चल रहा | रजोगुण शुरू हो गया। कि आप ऐसा पैर खुजाने लगें, तो भी डंडा है, वह उसका पागलपन है। वह पागलपन उसे विश्राम न करने | पड़ जाएगा। आपको कुछ करने भी नहीं देगा और सोने भी नहीं देगा। और जब विश्राम न होगा, तो सम्यक श्रम पैदा नहीं होता। देगा। दोनों के बीच में, वह कहता है, बैठने की कला है; दोनों के और तब एक दुष्टचक्र पैदा होता है। दोनों गलत हो जाते हैं। बीच जो रुक जाए, वह झेन की अवस्था में आ गया, ध्यान की सत्वगुण के पैदा होने का अर्थ है, रजोगुण और तमोगुण को | अवस्था में आ गया।