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* होशः सत्व का द्वार *
मन अनुकरण करता है। परिस्थिति मन को अनुकरण की सुविधा | | ठीक से समझ लेना। दे देती है।
विश्राम का अर्थ है, जो श्रम के लिए तैयार करे। विश्राम का __ अभी भी आप चौबीस घंटे एक गुण में नहीं होते। इसीलिए | प्रयोजन ही यही है कि अब हम फिर श्रम करने के योग्य हो गए। मंदिरों का उपयोग है, मस्जिदों का उपयोग है। क्योंकि वहां हमने | वह जो श्रम ने हमें तोड़ दिया था, थका दिया था, हमारे स्नायु खराब कोशिश की है सत्व की हवा पैदा करने की। दिनभर जो तमोगुणी हो गए थे, जीवकोष्ठ टूट गए थे, वे फिर पुनरुज्जीवित हो गए। भी रहा हो, रजोगुणी भी रहा हो, वह भी घंटेभर आकर मंदिर में | विश्राम ने हमें फिर से नया जीवन दे दिया। अब हम फिर श्रम करने बैठ जाए, तो सत्व की थोड़ी हवा उसमें पैदा हो सकती है। के योग्य हैं।
सत्संग का इतना ही अर्थ है, जहां थोड़ी देर को सत्व की हवा । जिस विश्राम के बाद आप श्रम करने के योग्य न हों. वह पैदा हो जाए और आपकी ऊर्जा सत्व से बहने लगे। आप दिनभर | आलस्य है। उसका मतलब है, विश्राम के द्वारा आप और विश्राम कछ भी कर रहे हों, लेकिन यह स्वाद आपको आने लगे. तो शायद के लिए तैयार हुए जा रहे हैं। विश्राम और विश्राम में ले जा रहा है, धीरे-धीरे यह स्वाद आपके चौबीस घंटे पर भी फैल जाए। इसमें तब खतरा है। आपको आनंद मालूम होने लगे और दूसरी चीजें फीकी मालूम होने ठीक यही बात श्रम के बाबत भी लागू है। श्रम वही सम्यक है, लगें, तो शायद आप जिंदगी को बदलने का उपाय भी कर लें। । | जो आपको विश्राम के योग्य बनाए। अगर कोई ऐसा श्रम है, जो
लेकिन ये घटनाएं घटती हैं परिस्थिति से। और जब तक | आपको विश्राम में जाने ही नहीं देता, तो वह विक्षिप्तता हो गई। वह परिस्थिति से घटती हैं, तब तक कोई बड़ा मूल्य नहीं है। बड़ा मूल्य | फिर श्रम न रहा। ठीक श्रम के बाद आदमी सो जाएगा। बिस्तर पर तो तब है, जब आपके संकल्प से घटें। तब आप मालिक हुए। तब | सिर रखेगा और नींद में उतर जाएगा। ठीक श्रम के बाद। भीड़ कुछ भी कर रही हो, आप निज में हो सकते हैं। सारी भीड़ सो ___ एक किसान है। दिनभर उसने श्रम किया है खेत पर। सांझ घर गई हो और आप जागना चाहें, तो जाग सकते हैं। सारी भीड़ उपद्रव | आता है, खाना खाता है; और सिर रखता है बिस्तर पर, और सो कर रही हो, हत्या कर रही हो, हिंसा कर रही हो, तो भी आप अपने जाता है। यह श्रम है। को भीड़ के प्रभाव से बचा सकते हैं।
एक दुकानदार है। उसने भी दिनभर श्रम किया है। लेकिन वह और जो व्यक्ति भीड़ के प्रभाव से अपने को बचा लेता है, वही | जब बिस्तर पर सिर रखता है, तो विश्राम नहीं आता, नींद नहीं व्यक्ति मालिक है। उसमें आत्मा पैदा हुई। वह आत्मवान हुआ। | आती; मन में हिसाब चलता रहता है। कितने रुपये कमाए; कितने उसके पहले कोई आत्मा नहीं है। उसके पहले सब हम प्रभावित | | गंवाए; क्या हुआ; क्या नहीं हुआ-वह जारी है। उसका मतलब होकर चल रहे हैं।
हुआ कि दुकानदार के श्रम में कहीं कुछ भूल है। वह सिर्फ श्रम नहीं और चारों तरफ से हमें प्रभावित किया जा रहा है। और हमें पता | है, शायद लोभ की विक्षिप्तता है। भी नहीं चलता कि हम किस भांति पकड़ लिए गए हैं भीड़ के द्वारा, किसान के श्रम में वह भूल नहीं है। वह सिर्फ शायद भोजन के
और भीड़ हमें लिए जा रही है। एक बड़ा प्रवाह है, उसमें हम तिनके लिए है। लोभ की नहीं, जरूरत के लिए है। वह जो किसान है, वह की तरह बहते हैं।
निन्यानबे के चक्कर में नहीं है। वह सिर्फ श्रम कर रहा है। कल की हे अर्जुन, रजोगुण और तमोगुण को दबाकर सत्वगुण पैदा | | रोटी जुट गई, काफी है। वह जो दुकानदार है, वह कल की रोटी होता है।
की उतनी फिक्र नहीं कर रहा है। वह रोटी तो उसने बहुत पहले जुटा इसलिए अगर भीतर सत्वगुण पैदा करना हो, तो रजोगुण और । | रखी है। वह कुछ महल बना रहा है लोभ के। तमोगुण की जो वृत्तियां हैं, आलस्य की और व्यर्थ सक्रियता | | यह निन्यानबे के चक्कर की कहानी आपको याद होगी। इसे की...।
| ठीक से समझ लेना चाहिए। विश्राम बरा नहीं है: आलस्य बरा है। फर्क क्या है? विश्राम का | एक सम्राट सो नहीं पाता था रात। और उसका जो नाई था, जो मतलब है, आवश्यक, जिससे शरीर ताजा हो, मन प्रफुल्लित हो। रोज उसकी मालिश करता और उसकी हजामत करता, वह विश्राम का अर्थ है, जो श्रम के लिए तैयार करे। इस परिभाषा को कभी-कभी हजामत करते-करते भी सो जाता था। वह जो नाई था,
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