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* गीता दर्शन भाग-7 *
देते! जिम्मेवारी खुद ले लें। सीधी बात कह दें। हां और न में वह सिर्फ आपके भीतर जो विकसित होता है, वह छीना नहीं जा भी उत्तर चाहता है।
सकता। ___ हम सभी हां और न में उत्तर चाहते हैं। कई बार मेरे पास लोग इसलिए कृष्ण हां और न में उत्तर नहीं दे रहे हैं। कृष्ण सारे
आ जाते हैं; वे कहते हैं, आप सीधा हो और न में हमें कह दें। ईश्वर विकल्प सामने रखे दे रहे हैं। उससे अर्जुन और भी बिगुचन में पड़ है या नहीं? आप हां या न में कह दें। जैसे ईश्वर कोई गणित का गया; और भी उलझन में पड़ा जा रहा है। उसने जितने प्रश्न उठाए सवाल है या तर्क की पहेली है कि हां और न में उसका जवाब हो | थे, कृष्ण ने उनसे ज्यादा उत्तर दे दिए हैं। उसने जो पूछा था, उससे सकता हो!
बहुत ज्यादा कृष्ण दिए दे रहे हैं। उससे वह और डांवाडोल.हआ जा ईश्वर तक वही पहुंचेगा, जो न से भी गुजरे, हां से भी गुजरे और रहा होगा। उसकी बेचैनी और बढ़ रही होगी। वह वैसे ही उलझा जो दोनों के पार हो जाए। और उस घड़ी में आ जाए, जहां न तो हां है और इतनी बातें और उलझा देंगी। कहना सार्थक मालूम पड़े, न न कहना सार्थक मालूम पड़े। वही मेरे पास लोग आते हैं; वे कहते हैं, हम आपको नहीं सुने थे, पहुंच पाएगा।
तभी ठीक थे। आपको सुनकर हम और भी उलझ गए हैं। आप जो सोचे कि न कहने से बच जाऊं, सिर्फ हां कह , उसकी इतनी बातें कहे चले जा रहे हैं! आप हमें कुछ साफ-साफ कह दें; आस्तिकता लचर और कमजोर होगी। जो आस्तिकता न की अग्नि निश्चित कह दें। और वही करने को हमें बता दें। से नहीं गुजरी है, वह कचरा है; उसमें से कचरा तो जल ही नहीं | - आपको पता नहीं, आप अपनी आत्महत्या मांग रहे हैं। आप पाया, सोना तो निखर नहीं पाया।
| जीने से डरे हुए हैं। आप मरे-मराए सूत्र चाहते हैं। कोई कृष्ण, कोई और जो नास्तिकता सिर्फ न पर रुक गई और हां तक नहीं पहुंची, बुद्ध आपके साथ आपकी आत्मघाती वृत्ति में सहयोग नहीं दे उस नास्तिकता में कोई प्राण नहीं है। क्योंकि न में कोई प्राण नहीं सकता है। होते। प्राण तो हां से आते हैं। वह नास्तिकता सिर्फ बौद्धिक होगी; अर्जुन चाहे और बेचैन हो जाए, कोई हर्जा नहीं है। क्योंकि आप उससे जीवंत आंदोलन, भीतर की क्रांति, रूपांतरण संभव नहीं है। ठीक से बेचैन हो जाएं, तो आप चैन के मार्ग को खोजने में तत्पर
हां और न दोनों से गुजरकर जो दोनों के पार हो जाता है, वह हो जाएंगे। शायद और उलझ जाए, कोई हर्जा नहीं है। भय क्या पहली दफा धार्मिक होता है। लेकिन वह धार्मिकता बड़ी विराट है। है? इस और उलझन से सुलझाने की जो चेष्टा होगी, उससे
अर्जुन की आकांक्षा है कि कृष्ण कुछ कह दें सीधा सूत्र, | आपका भीतरी विकास होगा, अंतःप्रज्ञा जगेगी। संघर्ष से ही उस फार्मूला। वह खुद विकसित नहीं होना चाहता। कोई भी विकसित भीतर की अंतःप्रज्ञा का जन्म है। नहीं होना चाहता।
| तो कृष्ण सब उपस्थित किए दे रहे हैं, और अर्जुन पर छोड़े दे मेरे पास लोग आते हैं, वे कहते हैं, आप कुछ कर दें कि मन रहे हैं कि वह चुने। वे सूत्र भी ठसे दे रहे हैं वे, जिन्हें अर्जुन चुने, शांत हो जाए। अशांत तुमने किया, जन्मों-जन्मों में। मेरा उसमें जरा तो भटकेगा; जिनसे उसके स्वधर्म का कोई मेल नहीं है। वे सूत्र भी भी हाथ नहीं। शांत मैं करूं! यह हो नहीं सकता। और जो कहता दे रहे हैं, जिन्हें अर्जुन चुन ले, तो वह मार्ग पर चल पड़ेगा। लेकिन है कि ऐसा करेगा, वह आपको धोखा दे रहा है। और वह आपको कृष्ण बिलकुल बिना पक्षपात के दोनों बातें कहे दे रहे हैं।
और इस जीवन को भी अशांति में बिताने का उपाय किए दे रहा है। कृष्ण सिर्फ कह ही नहीं रहे हैं, कहते वक्त वे देख भी रहे हैं, __ अगर यह हो सकता है कि कोई और आपके मन को शांत कर अर्जुन का निरीक्षण भी कर रहे हैं; अर्जुन को जांच भी रहे हैं, वह दे, तो ध्यान रखना, वह शांति बहुत कीमत की नहीं है। क्योंकि कोई | किस तरफ झुकता है! क्यों झुकता है! आपको अशांत कर सकता है फिर। उस शांति के आप मालिक नहीं | गुरु के लिए यह भी जानना जरूरी है कि शिष्य कहां-कहां झुक हैं. जो दसरे ने आपको दी है। वह छीनी भी जा सकती है। और सकता है: क्या-क्या चन सकता है। क्या गलत की तरफ उसकी ऐसी शांति का क्या मूल्य, जो छीनी जा सके। ऐसे अध्यात्म का | वृति हो सकती है? या कि सही के प्रति उसका सहज झुकाव है। क्या मूल्य है, जो कोई दे और कोई ले ले! जिसका दान हो सके, | कृष्ण अगर बोल ही रहे होते, तो भी एक बात थी। पूरे समय जिसकी चोरी हो सके।
| अर्जुन कृष्ण के सामने जैसे एक प्रयोगशाला की टेबल पर लेटा हो,
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