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________________ * होशः सत्व का द्वार * जहां उसका डिसेक्शन भी हो रहा है, जहां उसके शरीर के | | है। क्योंकि हो सकता है कि मैं कहूं, तू खिड़की के बाहर कूद जा। टुकड़े-टुकड़े तोड़े जा रहे हैं, जहां उसके मन को तोड़ा जा रहा है। नहीं, वह आदमी बोला कि नहीं-नहीं; आप ऐसा कैसे कह और कृष्ण की गहरी आंखें उसको देख रही हैं कि वह क्या कर | सकते हैं! आप ऐसा कभी नहीं कह सकते। रहा है! उसके ऊपर क्या प्रभाव पड़ते हैं ! जब कृष्ण कुछ कहते हैं, | कृष्ण अर्जुन के सामने सारी बातें रख रहे हैं। और सारी बातों का तो उसके चेहरे पर क्या आकृति आती है! उसके भीतरी प्रभामंडल | | अर्जुन पर क्या परिणाम हो रहा है, क्या प्रतिक्रिया हो रही है, वह में क्या घटनाएं घटती हैं! उसके आस-पास चेहरे का जो | कैसे संवेदित हो रहा है; कब आनंदित होता है; कब दुखी होता है; प्रकाश-वर्तुल है, उस पर कौन से रंग फैल जाते हैं! कब विषाद से भरता है; कब झुकता है; कब अकड़ा रह जाता है; यह एक गहरा निदान है, जहां अर्जुन ठीक एक्सरे के सामने उस सब की जांच भी चल रही है। खड़ा है। और जहां उसका रो-रोआं जांचा जा रहा है। अर्जुन को | इसके पहले कि अर्जुन पहुंचे निर्णय पर, कृष्ण को पता चल शायद इसका पता भी न हो। अर्जुन शायद सिर्फ सोच रहा हो कि | | जाएगा कि वह क्या निर्णय ले रहा है। उसके मन का कांटा पूरे वक्त मेरे प्रश्नों के उत्तर दिए जा रहे हैं। कोई गुरु सिर्फ आपके प्रश्नों के | डोल रहा है; निर्णय के करीब पहुंच रहा है। और यह मन अगर उत्तर नहीं देता। प्रश्नों के उत्तर के माध्यम से आपको परखता है, | | सिर्फ चेतन ही होता, तो अर्जुन इसे पहले समझ लेता। यह मन जांचता है, तोड़ता है, पहचानता है। आपके झुकाव देखता है। अचेतन भी है। उसे अर्जन नहीं समझ पाएगा। लेकिन उसे कृष्ण मेरे पास लोग आते हैं। कोई मेरे पास कुछ दिन पहले आया, | समझ पाएंगे। उसने कहा कि जो भी आप कहें, मैं करने को राजी हूं। वह यह कह | | अर्जुन जैसे ही निर्णय के करीब पहुंचने लगेगा, उसके मन का रहा है, लेकिन उसका पूरा व्यक्तित्व इसका इनकार कर रहा है। | कांटा ठहरने लगेगा, उसके चारों तरफ की आभा और सुगंध और उसके चेहरे पर यह कहते वक्त कोई प्रसन्नता का भाव नहीं है, कोई | | व्यक्तित्व बदलने लगेगा। और इसके पहले कि वह कहे कि मैं आनंद की झलक नहीं है। वह धोखा दे रहा है। उसके कहने पर | | निर्णय पर आ गया, कि तुमने मेरे सारे संदेह दूर किए, कि मेरी भरोसा करने का कोई कारण नहीं है। वह कहने के लिए कह रहा | | निष्पत्ति मुझे उपलब्ध हो गई, कृष्ण इसके पहले जान लेंगे। है, शायद औपचारिक। शायद उसका यह मतलब भी नहीं है। ध्यान रहे, आपके गहरे अचेतन में जो घटता है, उसको शायद उसने ठीक से सोचा भी नहीं है कि वह क्या कह रहा है कि | आपको भी पता लगाने में समय लग जाता है। कई दफे तो वर्षों जो आप कहेंगे, वह मैं करूंगा! लग जाते हैं। यह बहुत बड़ा वक्तव्य है। और बड़े निर्णय की सूचना है। और आज ही एक युवती ने मुझे आकर कहा; किसी के घर में मेहमान संकल्पवान व्यक्ति ही ऐसा आश्वासन दे सकता है। है। जिसके घर में मेहमान है, वह आदमी उस युवती को लगता है, . और इसके कहने के बाद ही वह व्यक्ति मुझे कहता है कि कोई कुरूप है। आकर्षण तो नहीं, विकर्षण पैदा होता है। उसे देखकर मुझे रास्ता बताएं, क्योंकि मैं कोई निर्णय नहीं ले पाता। और ही उसको घबड़ाहट होती है। उससे बात करने का मन नहीं होता। संकल्प मेरा बड़ा कमजोर है। सुबह तय करता हूं, दोपहर बदल | वह पास बैठे, तो बेचैनी और सिकुड़ाव पैदा होता है। उस व्यक्ति जाता हूं। से एक रिपल्शन है, एक गहरा विकर्षण है। उस युवती ने मुझे उसे पता नहीं कि वह क्या कह रहा है। और जब वह कहने लगा | आकर कहा, लेकिन कल रात उसके मन में उस व्यक्ति के प्रति प्रेम कि सुबह तय करता हूं, दोपहर बदल जाता हूं, संकल्प की कमी का भाव उठने लगा। और उससे वह बहत घबड़ा गई है। है, निर्णय पक्का नहीं है, तब उसके चेहरे पर ज्यादा आभा है, सुबह मेरे पास रोती हुई आई और उसने कहा कि मैं बहुत घबड़ा ज्यादा प्रसन्नता है। अब वह सच के ज्यादा करीब है। पहले वक्तव्य | | गई हूं, क्योंकि उस व्यक्ति को तो मैं देख भी नहीं सकती। वह के समय वह जैसे बेहोश था; होश में नहीं बोला था। कुरूप है; भद्दा है; घृणोत्पादक है; वीभत्स है। रात लेकिन मेरे मन मैंने उससे कहा कि तू अपना पहला वक्तव्य फिर से दोहरा। | में उसको प्रेम करने का भाव उठने लगा। तो मैं अपने मन से घबड़ा क्योंकि अगर दूसरी बात सही है, तो तू पहले कैसे कह सकता है मुझे | | गई हूं कि यह भाव मेरे मन में कैसे उठा! आकर कि जो आप कहेंगे वह मैं करूंगा? यह तो बहुत बड़ा निर्णय | यह भाव अचानक नहीं उठ गया। कुछ भी अचानक नहीं उठता।
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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