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________________ होश : सत्व का द्वार नहीं सकता। आपको चुनना पड़ेगा। गुरु सारे मार्ग स्पष्ट कर देगा। उन सारे स्पष्ट मार्गों के बीच निर्णय आपको लेना है। और अगर आप यह तय करते हैं कि गुरु ही हमारे लिए चुने, यही आपका निर्णय है, तो यह निर्णय भी आपका है। अंतिम निर्णायक आप हैं । अगर आप सारे मार्गों के संबंध में समझकर – क्योंकि यह भी एक मार्ग है कि गुरु आपके लिए चुने – यही निर्णय लेते हैं कि गुरु हमारे लिए चुने, तो आपने गुरु को तो चुना। गुरु आपके लिए चुने, यह भी आपने चुना। और अंतिम निर्णायक सदा आप हैं। आत्मा से अंतिम निर्णय नहीं छीना जा सकता। इसलिए जो परम गुरु है, वह सारे मार्ग स्पष्ट कर देगा। वह कुछ भी छिपाकर न रखेगा। बुद्ध ने जगह-जगह बार-बार कहा है कि मेरी मुट्ठी खुली हुई है। उसमें मैंने कुछ भी छिपाया नहीं है। अनेक बार बुद्ध के शिष्यों को लगा है कि बुद्ध जितना कह रहे हैं, पता नहीं वे पूरा कह रहे हैं जो उन्होंने जाना है या कुछ छिपा रहे हैं। आनंद उनसे एक दिन पूछ रहा है कि आपने सब कह दिया जाना है या आपने कुछ छिपाया है? बुद्ध ने कहा, मेरी मुट्ठी खुली हुई है। मैंने कुछ भी नहीं छिपाया । लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि मैंने जो-जो दिखाया है, वह तुम्हें दिखाई पड़ने लगा है। क्योंकि तुम्हारी आंखें पूरी खुली हुई नहीं हैं। मुट्ठी भी पूरी खुली हो, तो भी तो देखने वाले की आंख पूरी खुली होनी चाहिए। कृष्ण की मुट्ठी बिलकुल खुली हुई है। उन्होंने सारे मार्ग अर्जुन के सामने रख दिए हैं, सब विकल्प स्पष्ट कर दिए हैं; और अर्जुन 'को इस चौराहे पर खड़ा कर दिया है कि वह चुनाव कर ले। उन्होंने प्रत्येक मार्ग की पूरी प्रशंसा कर दी है। प्रत्येक मार्ग का पूरा विश्लेषण कर दिया है। किसी मार्ग के साथ पक्षपात भी नहीं किया कि सभी मार्गों में एक श्रेष्ठ है। ऐसा अगर उन्होंने कहा होता, तो उसका मतलब होता कि वे अर्जुन को बेच रहे हैं मार्ग। कोई चीज अर्जुन को बेचना चाहते हैं। स्पष्ट नहीं, सीधे नहीं, परोक्ष मार्ग से अर्जुन को राजी करना चाहते हैं कि तू इसे चुन ले । इसलिए कृष्ण ने सभी मार्गों की जो गरिमा है, वह प्रकट कर दी है, बिना किसी एक मार्ग को सब मार्गों के ऊपर रखे। चुनाव के लिए अर्जुन पूरा स्वतंत्र है। पहला तो इस कारण । ! और दूसरा इस कारण भी, एक बहुत पुरानी अरबी कहावत है कि इसके पहले कि आदमी सही जगह पर पहुंचे, उसे बहुत-से 51 गलत दरवाजे खटखटाने पड़ते हैं। इसके पहले कि कोई आदमी ठीक द्वार पर आ जाए, उसे बहुत-से गलत दरवाजों में भी खोजना पड़ता है। असल में गलत में जाना भी ठीक पर आने के लिए अनिवार्य अंग है। भूल करना भी ठीक हो जाने की प्रक्रिया का हिस्सा है। यह थोड़ा जटिल है। क्योंकि हम सोचते हैं, जो ठीक है, जो साफ है, वह हमें दे दिया जाए। लेकिन आप समझ नहीं पा रहे हैं। आध्यात्मिक जीवन कोई वस्तु की भांति नहीं कि आपके हाथ में दें। आध्यात्मिक जीवन वस्तु नहीं है, एक ग्रोथ, एक विकास है। और ध्यान रहे, जब भी किसी को विकसित होना हो, तो उसे गलत से भी गुजरना पड़ता है, भ्रांत से भी गुजरना पड़ता है; भटकना भी पड़ता है। भटकाव भी आपको प्रौढ़ता लाता है। जो व्यक्ति भूल करने से डरता है, वह ठीक तक कभी भी नहीं पहुंच पाएगा। डर के कारण वह कदम ही नहीं उठाएगा। भय के कारण वह पंगु हो जाएगा, रुक जाएगा। डर तो सदा है कि गलती हो जाए। और अगर जीवन में डर न हो गलती होने का, तो जीवन में कोई रस ही न हो; जीवन एक मुर्दा चीज हो । सिर्फ मरे हुए आदमी भूल नहीं करते। जिंदा आदमी तो भूल करेगा। और जितना जिंदा आदमी होगा, उतनी ज्यादा भूल करेगा। एक ही बात खयाल रखने की है कि जिंदा आदमी एक ही भूल दुबारा नहीं करेगा। बहुत भूलें करेंगा; लेकिन एक ही भूल दुबारा नहीं करेगा। और जितनी ज्यादा भूलें कर सकें आप, जितनी नई भूलें कर सकें, उतने आप प्रौढ़ होंगे। हर भूल सिखाती है। हर भूल भूलों को कम करती है । हर भूल से आप सही के करीब सरकते हैं। तो एक तो जैसा साधारणतः आलसी मन की आकांक्षा होती है कि गुरु कुछ बना-बनाया, रेडीमेड, हाथ में दे दे। तो आपकी झंझट बच गई। झंझट क्या बच गई ! आपके विकास की सारी संभावना ही समाप्त हो गई। आप कैसे बढ़ेंगे? आपका बीज कैसे अंकुरित होगा? आप कैसे वृक्ष बनेंगे ? तूफान से डरते हैं, हवाओं से डरते हैं, वर्षा से डरते हैं, धूप भी आएगी, सब होगा। उन सबके बीच आप टिक सकें, इसकी सामर्थ्य, इसका साहस चाहिए। कोई आपका हाथ पकड़कर और परमात्मा तक पहुंचा दे, तो आप तो मुर्दा होंगे ही, वह परमात्मा भी मुर्दा होगा जिस तक आप पहुंचेंगे। तो कोई आपका हाथ पकड़कर कहीं पहुंचा नहीं सकता। अर्जुन की भी आकांक्षा यही है कि कृष्ण सीधा क्यों नहीं कह
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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