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* गीता दर्शन भाग-7 *
थे। जब बाप मरा तो आधी-आधी संपत्ति कर गया। काफी संपत्ति | व्यक्ति की तरह, तो हम से बच नहीं सकता। हम फल को नियोजित थी। कई लाख रुपए दोनों को मिले। एक भाई उन लाखों रुपयों को | कर सकते हैं। उसके माध्यम से हम कुछ तय कर सकते हैं। लगाकर धंधे में लग गया, कमाने में। दूसरे भाई ने उन सब लाखों | लेकिन ऐसा भगवान नहीं है। भगवान का कुल अर्थ है, इस रुपयों की शराब पी डाली। उस दूसरे भाई ने शराब पी डाली, | जगत का जो अनंत विस्तार है अनंत कारणों का, इन अनंत कारणों लेकिन उसे शौक था एक, शराब की बोतलें इकट्ठी करने का। उसने के जोड़ का नाम भाग्य या भगवान है—जो भी आपको पसंद हो। लाखों शराब की बोतलें इकट्ठी कर ली।
| जब हम कहते हैं, फल भाग्य के हाथ में है, तो इसका मतलब इतना फिर महंगाई बढ़ते-बढ़ते उस जगह पहुंची कि उसने बोतलें | है कि मैं अकेला नहीं हूं, अरबों कारण काम कर रहे हैं।, अपनी बेच लीं। जितने की उसने शराब पी थी, उससे कई गुना रुपया । आप अपने घर से निकले। आप बड़ी योजनाएं बनाए चले जा उसे बोतलों के बेचने से मिल गया। और वह जो भाई धंधे में था, | रहे हैं। दूसरा आदमी अपनी कार लेकर निकला। वे शराब पी गए वह मर गया, वह डूब गया। लोगों के पास पैसे न रहे खरीदने को | हैं। आपको उनका बिलकुल पता नहीं है कि वे चले आ रहे हैं तेजी उसकी चीजें। चीजें थीं; लेकिन पैसे नहीं थे लोगों के पास। | से आपकी तरफ कार भगाते हुए। वे कब आपको पटक देंगे सड़क
जिंदगी बड़ी जटिल है। यहां आप अकेले नहीं हैं। यहां अरबों पर आपकी योजनाओं के साथ, आपको कुछ पता नहीं है। उनका लोग हैं। अरबों कारण काम कर रहे हैं। आप सब कुछ कर लें आपने कुछ बिगाड़ा नहीं दिखाई पड़ता ऊपर से। शराब आपने उन्हें
और माओ का दिमाग खराब हो जाए या निक्सन का, और वे एक पिलाई नहीं। मगर वह सारी जिंदगी का नक्शा बदल दे सकते हैं। एटम बम गिरा दें। आपने यहां सब कुछ करके इंतजाम कर लिया | प्रतिपल हजारों काम आपके आस-पास चल रहे हैं। आप था; बिलकुल बस, बैंक से रुपया उठाने ही जा रहे थे। सब असहाय हैं। आप कर क्या सकते हैं? लेकिन जो आदमी फल पर समाप्त हो गया।
बहुत आकांक्षा बांध लेता है, वह बड़ी मुश्किल में पड़ता है, हिरोशिमा पर जब एटम गिरा, एक लाख बीस हजार लोग मरे। क्योंकि फल पूरे नहीं हो पाते। जब पूरे नहीं हो पाते, तो विषाद से पांच मिनट में सब समाप्त हो गया। उसमें आप ही जैसे लोग थे, भर जाता है। जिनकी बड़ी योजनाएं थीं।
कृष्ण कहते हैं कि यह जो फल की आसक्ति है, यह रजोगुण का फलाकांक्षी बड़ी कठिनाई में है। पहले तो वह फल मिल भी स्वभाव है! जाए-जो कि असंभव जैसा है—जो फल वह चाहता है, वह और हे अर्जुन, सर्व देह-अभिमानियों के मोहने वाले तमोगुण मिल भी जाए, तो वह उसको भोग न सकेगा। उसकी आदत गलत को अज्ञान से उत्पन्न हुआ जान। वह इस जीवात्मा को प्रमाद, है। पहले मिलना ही मुश्किल है, क्योंकि फल आपके हाथ में नहीं आलस्य और निद्रा के द्वारा बांधता है। है। और जब आप तय करते हैं कछ पाने का. तब इतने कारण काम सत्व, ज्ञान और सख के द्वारा: रज, आस कर रहे हैं कि आप उन पर कोई कब्जा नहीं कर सकते। | आकांक्षा के द्वारा; और तम, अज्ञान, मूर्छा, प्रमाद, आलस्य के
अगर इस स्थिति को हम ठीक से समझें, तो इसी को कृष्ण ने द्वारा है। कहा है कि फल भगवान के हाथ में है। करोड़ों ये जो कारण हैं, प्रमाद शब्द को ठीक से समझ लेना चाहिए। उसमें सारा रस तम अनंत जो कारण हैं, यह अनंत कारणों का ही इकट्ठा नाम भगवान का छिपा हुआ है। प्रमाद का अर्थ है, मूर्छा का एक भाव, बेहोश, है। भगवान कहीं कोई ऊपर बैठा हुआ आदमी नहीं है, जिसके हाथ अजागरूक। चले जा रहे हैं, किए जा रहे हैं, लेकिन कोई सावधान
नहीं है। जो भी कर रहे हैं, ऐसे कर रहे हैं, जैसे नींद में हों। क्यों ऐसा अगर हो, तब तो हम कोई तरकीब निकाल ही लें उसको कर रहे हैं, इसका पक्का पता नहीं। करें या न करें, इसका कोई बोध प्रभावित करने की। हम उसकी स्तुति कर सकते हैं, खुशामद कर | नहीं। क्या कर रहे हैं, इस ठीक करते हुए क्षण में चेतना का ध्यान, सकते हैं। उस पर काम न चले, तो उसकी पत्नी होगी, उसको चेतना का प्रवाह उस कर्म की तरफ नहीं। प्रभावित कर सकते हैं। उसके लड़के-बच्चे होंगे, कोई नाता-रिश्ता खाना खा रहे हैं। हाथ खाना खाए जा रहे हैं, यंत्रवत, क्योंकि खोज सकते हैं, कोई रास्ता बन ही सकता है। अगर कहीं भगवान है। | उनकी आदत हो गई है। मन कहीं भागा हुआ है। मन न मालूम किन