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________________ * हे निष्पाप अर्जुन * मरेंगे तो मैं सती हो जाऊंगी, उनकी चिता पर जल जाऊंगी। उनके | फल! ऐसा व्यक्ति सदा दुखी होगा। दुखी इसलिए होगा कि वह जो बिना नहीं जी सकती। भी करेगा, उसमें तो उसे कोई रस नहीं है। रस तो फल में है। फल सती आसक्ति का गहनतम प्रतीक है। मेरा जीवन किसी और के सदा भविष्य में है। जीवन पर पूरी तरह निर्भर है, उसके बिना कोई अर्थ नहीं है, कोई __और ऐसे व्यक्ति की धीरे-धीरे एक व्यवस्था हो जाती है मन की सार नहीं है। फिर मर जाना उचित है। फिर मृत्यु भी हितकर मालूम | कि वह वर्तमान में देख ही नहीं सकता। और जब फल भी आएगा, होती है बजाय जीवन के। तब भी वह फल को नहीं देख पाएगा. क्योंकि फल तब वर्तमान हो तो जब कोई व्यक्ति आसक्ति से किसी से बंधता है, तो ऐसी | | जाएगा और उसकी आंखें फिर भविष्य में देखेंगी। आसक्ति और कामना से जो उत्पन्न होता है, वह रजोगुण है। या तो ऐसा व्यक्ति फल के द्वारा फिर किसी और फल को खोजने इस जीवात्मा के कर्मों की और उनके फल की आसक्ति जो है, | | लगता है। पहले वह धन कमाता है। धन उसकी आकांक्षा होती है। उससे रजोगुण उत्पन्न होता है। फिर जब धन मिल जाता है, तो उस धन से वह और धन कमाने एक तो आसक्ति है, किसी से बंध जाना। ऐसा बंध जाना कि | लगता है। फिर यही चलता है। लगे कि मेरे प्राण मेरे भीतर नहीं, उसके भीतर हैं। यह व्यक्ति के __ उसकी हालत ऐसी है कि एक रास्ते का उपयोग दूसरे रास्ते तक साथ भी हो सकता है, वस्तु के साथ भी हो सकता है। कुछ लोग पहुंचने के लिए करता है। फिर दूसरे रास्ते का उपयोग तीसरे रास्ते हैं कि उनके प्राण उनकी तिजोरी में हैं। आप उनको मारो, वे न | तक पहुंचने के लिए करता है। जिंदगीभर वह रास्तों पर चलता है मरेंगे। तिजोरी को मार दो, वे मर जाएंगे। और मंजिल कभी नहीं आती। आएगी नहीं। क्योंकि हर साधन का नसरुद्दीन एक अंधेरी गली से गुजर रहा है। और एक आदमी ने | | उपयोग वह फिर किसी दूसरे साधन तक पहुंचने के लिए करता है। पिस्तौल उसकी छाती पर रख दी। उसने कहा, नसरुद्दीन, धन देते साध्य का कोई सवाल नहीं है। हो या जीवन ? नसरुद्दीन ने कहा, थोड़ा सोचने दो। फिर सोचकर __ और ऐसे व्यक्ति की नजर सदा साध्य पर लगी होती है। उसको उसने कहा कि जीवन। उस आदमी ने कहा, क्या मतलब? दिखता है हमेशा फल। इसके पहले कि वह कुछ करे, वह अंत में नसरुद्दीन ने कहा. धन तो बढापे के लिए इकट्ठा किया है। जीवन देख लेता है। और अंत को देखकर ही चलता है। तुम ले सकते हो। धन देकर मैं क्या करूंगा? फिर कहां बचूंगा? इसमें बड़ी कठिनाइयां हैं। अगर वस्तुतः उसे अंत मिल भी जाए, __ पुरानी कहानियां हैं, बच्चों की कहानियां हैं परियों की, राजाओं तो भी उसकी आगे देखने की आदत उसे अंत का सुख न लेने देगी। की। जिनमें कोई राजा होता है, जिसके प्राण किसी तोते में बंद हैं। और अंत मिलना इतना आसान भी नहीं है। क्योंकि फल आपके राजा को मारो, आप नहीं मार सकते। तोते को मारना पड़े। पता | हाथ में नहीं है। फल हजारों कारणों के समूह पर निर्भर है। और लगाना पड़े कि राजा के प्राण कहां कैद हैं। वे कहानियां बड़ी | | कोई भी व्यक्ति इतना समर्थ नहीं है कि जगत के सारे कारणों को अर्थपूर्ण हैं; वे हम सबकी कहानियां हैं। नियोजित कर सके। __ आपको मारने में कोई सार नहीं है। पहले पक्का पता लगाना पड़े, _आप धन कमा रहे हैं। धन कमा लेंगे, यह आप पर ही निर्भर किस तोते में आपके प्राण बंद हैं। बस, वहां मार दो, आप मर गए। नहीं है। यह करोड़ों कारणों पर निर्भर है, यह मल्टी काजल है। __ आसक्त व्यक्ति का अर्थ है कि उसके प्राण उसके अपने भीतर समझ लें, एक क्रांति हो जाए; धन किसी का रह ही न जाए, नहीं, कहीं और हैं। ऐसा व्यक्ति तो गहन परतंत्रता में होगा, जिसके | सामूहिक संपत्ति हो जाए। संपत्ति का वितरण हो जाए। आप जब प्राण भी अपने नहीं। यह तो पूरा लारागृह है। तक धन कमा पाएं, तब तक महंगाई इतनी बढ़ जाए कि धन का रजोगुण ऐसी आसक्ति से बढ़ता है, निर्मित होता है। और ऐसा कोई मूल्य न रह जाए। व्यक्ति सदा ही फलों की आसक्ति से बंधा होता है। क्या मिलेगा | __ पिछले महायुद्ध में चीन में ऐसी हालत थी कि एक माचिस अंत में? वह उसकी नजर में होता है। वह हमेशा फल को देखता खरीदनी हो, तो एक थैली भरकर नोट ले जाने पड़ते थे। वह हालत है। वक्ष की उसे चिंता नहीं होती। वह सब कर सकता है. लेकिन | यहां कभी भी आ सकती है। फल! नजर में, आंख में, प्राण में एक ही बात गूंजती रहती है, एक बड़ी प्रसिद्ध घटना चीन में घटी पिछले महायुद्ध में। दो भाई 43
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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