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* हे निष्पाप अर्जुन *
आप निष्पाप का मतलब यह मत समझाना कि हे पुण्यधर्मा! स्नान की कला शरीर पर पानी डालने की नहीं है, मन पर ध्यान निष्पाप का अर्थ है, जहां कोई विकार नहीं। न पुण्य का कोई विकार डालने की है। है, न पाप का कोई विकार है। हे निर्विकार। जहां कुछ भी नहीं | | तो बात तो ठीक ही है। प्रतीक काव्यात्मक है, लेकिन बात ठीक पहुंचता है। जहां तेरा शुद्ध होना है। जहां बाहर से आए हुए कोई | | है। और कठिन बातें कविता में ही कही जा सकती हैं। उनके लिए भी संस्कार गति नहीं करते। सब परिधि पर इकट्ठे हो जाते हैं, भीतर गणित के फार्मूले नहीं हो सकते। क्योंकि बड़े सूक्ष्म और नाजुक तो कुछ जाता नहीं। उस भीतर का जो केंद्र है, वह सदा निष्पाप है। | इशारे हैं। पत्थर जैसे नहीं हैं, फूल जैसे हैं। उन्हें बहुत सम्हालकर वह सदा शुद्ध है। वह सदा निर्दोष, कुंवारा है।
काव्य में संजोकर ही बचाया जा सकता है। उस कंवारेपन में कभी आंच नहीं लगती। आप कितने ही पाप । तो बात तो ठीक है। लेकिन फिर भी गलत हो गई। क्योंकि लोग करें और कितने ही पुण्य करें, उस कुंवारेपन पर कभी भी कोई | | गंगा में स्नान करके घर लौट आते हैं, इस खयाल से कि बात खतम बासापन नहीं आता। वह कुंवारापन हमारा स्वभाव है।
हो गई, फिर से पाप शुरू करो। और दिक्कत क्या है? कितने ही अर्जुन को जगाने की चेष्टा है उस शब्द में भी। सदगुरु एक शब्द | | पाप करो, वापस गंगा में जाकर स्नान से धुल सकते हैं। भी व्यर्थ नहीं बोलते हैं। वे जो भी बोलते हैं, कोई गहरा कारण है। | तो रामकृष्ण ने कहा, तू जा जरूर, लेकिन तुझे पता है, गंगा के __ आप भी निष्पाप हैं। अस्तित्व सदा निष्पाप है। और अगर पाप | किनारे बड़े वृक्ष लगे हैं, वे किसलिए लगे हैं? उस आदमी ने कहा, और पुण्य आपके ऊपर हैं, तो वैसे ही जैसे कोई यात्री राह से गुजरे | | यह तो कहीं शास्त्रों में इसका कोई उल्लेख नहीं है। तो उन्होंने कहा और धूल इकट्ठी हो जाए, ऊपर-ऊपर। एक डुबकी लगा ले नदी कि वही असली महत्वपूर्ण बात है। जब त गंगा में डबेगा, तो गंगा में, धूल बह जाए।
में पाप बाहर निकल जाते हैं। क्योंकि गंगा पवित्र है। पर वे जो बड़े ___ हमने तीर्थ बनाए थे; वे प्रतीक थे। फिर लेकिन प्रतीक सब गलत | वृक्ष हैं, पाप उन पर बैठ जाते हैं। तो तू डूबा रहेगा कि लौटेगा? हो जाते हैं गलत आदमियों के हाथों में। हमारे प्रतीक थे तीर्थ कि | लौटेगा कि वे पाप फिर झाड़ों से उतरकर तेरे सिर पर सवार हो हम कहते थे, वहां जाकर स्नान कर लो, सब पाप से छुटकारा हो | जाएंगे। तो गंगा तो धो देगी, लेकिन तू इस भ्रम में मत पड़ना कि जाता है। कोई तीर्थ में जाकर स्नान करने से पाप का छुटकारा नहीं खाली होकर लौट आया। वे झाड़ इसीलिए खड़े हैं! होता। इतना आसान होता, तो जितने तीर्थ हमारे मुल्क में हैं और । सारे प्रतीक व्यर्थ हो जाते हैं। व्यर्थ इसलिए हो जाते हैं कि हम जितने पापी स्नान कर रहे हैं, इस मुल्क में पाप होता ही नहीं। प्रतीकों की गरदन दबा लेते हैं। उनका निचोड़ देते हैं प्राण ही बाहर।
तीर्थ में स्नान करने से पाप से कोई छुटकारा नहीं होता। लेकिन पाप बाहर हैं, धूल से ज्यादा नहीं। झड़ाए जा सकते हैं। कोई बात बड़े मूल्य की है। बात असल में यह है कि पाप और पुण्य धूल | आदमी ठीक से निर्णय भी कर ले झड़ाने का, तो झड़ जाते हैं। से ज्यादा नहीं हैं। और जैसे धूल स्नान करने से बह जाती है और | क्योंकि आपके ही निर्णय से वे पकड़े गए हैं। सच तो यह है कि धूल कोई आपकी आत्मा में नहीं चली जाती है, बस आपकी परिधि | उन्होंने आपको पकड़ा है, यह कहना ही गलत है। आप उनको पर होती है, ऐसे पुण्य और पाप हैं। जो जान ले तरकीब स्नान करने | | पकड़े हैं और सम्हाले हैं। जिस दिन आप छोड़ देंगे, वे गिर जाएंगे। की, वह इनसे भी ऐसे ही मुक्त हो जाएगा, जैसे धूल से मुक्त हो और वह जो पकड़े हुए है, वह सदा निष्पाप है। जाता है। .
मनुष्य की अंतरात्मा पापी नहीं हो सकती। और अगर अंतरात्मा तो तीर्थ प्रतीक थे।
पापी हो जाए, तो फिर उसे शुद्ध करने का कोई भी उपाय नहीं है। रामकृष्ण से कोई पूछा है कि मैं गंगा जा रहा हूं। कहते हैं कि | फिर उसे कैसे शुद्ध करिएगा? फिर कौन उसे शुद्ध करेगा? फिर गंगा में स्नान करने से पाप धुल जाएंगे। रामकृष्ण थोड़ी अड़चन में | आत्मा से भी शुद्ध तत्व कोई हो, तो ही शुद्ध कर पाएगा। पड़े। रामकृष्ण को लगा कि कहूं कि ऐसा ठीक नहीं है, तो गलत । एक स्कूल में एक शिक्षक अपने बच्चों को विज्ञान पढ़ा रहा है। होगा। यह ठीक है कि कोई स्नान करने की कला जान ले और गंगा | | और उसने कहा कि एक नई खोज हो रही है। एक ऐसा रासायनिक को खोज ले, तो पाप धुल जाते हैं। इस बात में कहीं भूल-चूक नहीं | द्रव्य खोजा जा रहा है, जिसमें हर चीज गल जाती है। एक छोटे-से है। लेकिन गंगा यह नहीं है, जो बाहर बहती दिखाई पड़ती है। और | बच्चे ने कहा, उसको रखिएगा कहां? शिक्षक भी सिर खुजलाने