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________________ * गीता दर्शन भाग-7* लगा। उसने कहा, उसकी भी खोज की जा रही है। उस छोटे बच्चे समझें कि एक फिल्म आप देख रहे हैं। अगर आप बिलकुल ने कहा, पहले उसकी खोज कर लेना चाहिए, पीछे इस रासायनिक | तटस्थ रहें, तो फिल्म से आपको कोई सुख न मिल सकेगा। सिर्फ द्रव्य की। अगर खोज लिया इसे पहले, तो रखिएगा कहां? थककर आप वापस लौटेंगे। फिजूल मेहनत लगेगी। आंखें आत्मा अगर अशुद्ध हो जाए, तो फिर उसे शुद्ध करने का कोई थकेंगी। सुख मिल सकता है, अगर आप भूल जाएं अपने को और भी उपाय नहीं है। उसे फिर किस चीज से शुद्ध करिएगा? और भागीदार हो जाएं। भागीदार होने का मतलब है, अपने को भूल जिससे भी शुद्ध करिएगा, उसे तो कम से कम शुद्ध रहना ही जाना, विस्मृत कर देना। द्रष्टा न रह जाए। और आप भी जैसे एक चाहिए; उसके अशुद्ध होने का उपाय नहीं होना चाहिए। पात्र हो गए हैं फिल्म की कथा में। एक तत्व इस जगत में चाहिए, जिसके अशुद्ध होने का उपाय न __ और हर व्यक्ति फिल्म की कथा में पात्र हो जाता है। किसी पात्र हो, क्योंकि उसके ही माध्यम से सब शुद्ध हो सकता है। अगर सभी के साथ अपना तादात्म्य कर लेता है। फिर उस पर जो बीतता है, चीजें अशुद्ध हो जाती हों, तो फिर शुद्धि का कोई उपाय नहीं, फिर | इस पर बीतने लगता है। फिर जब वह कष्ट में होता है, तो यह मोक्ष की कोई संभावना नहीं है। | अपनी रीढ़ सीधी उठाकर कुर्सी पर बैठ जाता है। जब वह आराम हम उसी तत्व को आत्मा कहते हैं, जिसके अशुद्ध होने का कोई | में होता है, तो यह भी अपनी कुर्सी पर विश्राम करता है। इससे सुख उपाय नहीं है, जो सदा शुद्ध है। इसलिए आत्मा को शुद्ध नहीं करना | उपलब्ध होता है। लेकिन इससे दुख भी उपलब्ध होता है। होता, सिर्फ आत्मा को पहचानना काफी है। पहचानते ही पता लोग दुखांत फिल्मों में आंसू पोंछ-पोंछकर थक जाते हैं। वह तो चलता है कि मैं सदा से शुद्ध-बुद्ध हूं। वहां क्षणभर को भी कोई भला है कि अंधेरा होता है, इसलिए कोई किसी दूसरे को देख नहीं कालिमा प्रविष्ट नहीं हुई है। सकता। सब अपने-अपने रूमालों को भीगा करते हैं। इस महत तत्व की ओर इशारा करने के लिए अर्जुन को बार-बार टाल्सटाय ने लिखा है कि मेरी मां नाटक देखने की शौकीन थी। कृष्ण कहे जा रहे हैं, हे निष्पाप! | बड़े शाही परिवार के लोग थे, ज़ार परिवार से संबंध था। तो मास्को में ऐसा कोई नाटक नहीं था, जिसमें उसकी मां न जाती हो। __ और टाल्सटाय ने लिखा है कि वह इतना रोती थी, वह इतनी चौथा प्रश्नः जब यह सारा जगत पुरुष और प्रकृति | दयालु महिला थी कि जरा-सा दुख नाटक में कुछ हो रहा हो, तो का खेल है, तो हम कहां भागीदार हैं, जो इतना दुख बस, वह जार-जार हो जाती थी। लेकिन अक्सर यह होता था कि झेल रहे हैं? बर्फ पड़ती रहती मास्को में और बाहर जो कोचवान उसकी गाड़ी पर बैठा रहता, वह बर्फ के कारण सिकुड़कर मर जाता। जब हम नाटक देखकर बाहर निकलते, तो कोचवान मरा हुआ होता। उसे ट सीलिए दुख झेल रहे हैं कि आपको भ्रांति है कि आप उठाकर सड़क के किनारे फेंककर दसरा कोचवान गाडी लेकर घर र भागीदार हैं। आप भागीदार न रह जाएं, दुख समाप्त की तरफ जाता। और मां अभी भी आंसू पोंछती रहती नाटक के ___ हो जाएगा। दुख इसलिए नहीं है कि दुख है। दुख कारण! इस कोचवान से कोई संबंध नहीं था। लेकिन नाटक में इसलिए है कि आप भागीदार हैं। आप सोचते हैं, मैं कुछ कर रहा | संबंध जुड़ता था। हूं। मैं हिस्सा बंटा रहा हूं। मैं उत्तरदायी हं, यह अस्मिता ही आपके टाल्सटाय ने लिखा है कि मेरी समझ के बाहर था कि यह क्या दुख का कारण है। जहां भी आप भागीदार हो जाएंगे, वहीं दुख पैदा | हो रहा है! एक जिंदा आदमी मर गया, उसकी फिर बात ही नहीं हो जाता है। उठती थी। वह सड़क के किनारे फेंक दिया गया। उसका कोई मूल्य लेकिन ध्यान रहे, वह दुख हम इसीलिए पैदा करते हैं कि वही नहीं था, उसकी कोई कीमत नहीं थी। वह जैसे आदमी था ही नहीं; तरकीब सुख पैदा करने की भी है। जहां भी आप भागीदार होते हैं, | | एक यंत्र का हिस्सा था। एक दूसरा यंत्र बिठा दिया गया। और मां वहां सुख पैदा हो जाता है। चूंकि हम सुख चाहते हैं, इसलिए हम | | घर तक रोती रहती। वह नाटक उसका पीछा करता। भागीदार होते हैं। आप भी जितने दुखी हो जाते हैं फिल्म में, उतना जिंदगी में वही
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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