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________________ * त्रिगुणात्मक जीवन के पार * तो सात्विक व्यक्ति ही बुद्ध को पहचान पाएगा कि कौन-सी | जहर मौत का प्रतीक है। और जहर आपके भीतर चीजों को महान घटना घटी है। इस व्यक्ति के भीतर कौन-सा फूल खिला है। | ठंडा कर देता है, गति छीन लेता है। इसलिए नशे का इतना रस इसलिए बुद्ध के पास वे ही लोग इकट्ठे हो पाएंगे, जो सात्विक हैं, है। क्योंकि आप इतने तनाव में रहते हैं, इतनी भाग-दौड़ में रहते जो सरल हैं, जो संतुलित हैं, जो संयमी हैं, और जिन्होंने एक भीतरी हैं, कि थोड़ी शराब पी लेते हैं, तो थोड़ा तनाव कम हो जाता है, हारमनी, एक लयबद्धता को पा लिया है। बहुत लोग पास से | भाग-दौड़ कम हो जाती है। पड़ जाते हैं, बेहोशी में पड़ जाते हैं, गुजरेंगे, उन बहुतों में से बहुत थोड़े लोग ही बुद्ध के पास रुक पाएंगे। लेकिन रुक जाते हैं। सांख्य ने इन तीन तत्वों को खोजा। ये तत्व बड़े अदभुत हैं। और सभी मादक द्रव्य तमस पैदा करते हैं। वे आपके भीतर दौड़ को इन तीन तत्वों के आधार पर मनुष्य का, प्रकृति का सारा व्यवहार | | रोक देते हैं। इसलिए बहुत दौड़ने वाले लोग शराब से नहीं बच , समझा जा सकता है। सकते। क्योंकि उनकी दौड़ इतनी ज्यादा है कि उनको इस दौड़ को फिर आधुनिक विज्ञान ने भी तीन तत्वों की खोज की है, और | रोकने के लिए किसी न किसी तरह की बेहोशी चाहिए। वे बेहोश परमाणु के विस्फोट पर उनको पता चला कि परमाणु भी तीन तत्वों | होंगे, तभी रुक पाएंगे, नहीं तो रुक नहीं सकते। रात नींद में भी से ही निर्मित है। एक को वे कहते हैं इलेक्ट्रान, एक को पाजिट्रान, दौड़ते रहेंगे। एक को न्यूट्रान। और उन तीनों के भी लक्षण करीब-करीब वही हैं, __पश्चिम में शराब का मूल्य बढ़ता चला गया है, क्योंकि पश्चिम जो सत्व, रज और तम के हैं। उनमें से एक स्थिति को पकड़ने वाला | दौड़ रहा है, उसने रज पर भरोसा कर लिया है। रज पर अगर आप है, एक गति देने वाला है, और एक संतुलन है। भरोसा करेंगे, तो तम को भी आपको साथ में लाना पड़ेगा। नहीं तो निश्चित ही, कहीं गहराई में विज्ञान भी उसी तत्व को छू रहा है, | रज घातक हो जाएगा, आप विक्षिप्त हो जाएंगे। सको सांख्यों ने छुआ था, जिसकी कृष्ण इन सूत्रों में बात कर रहे पश्चिम में अधिकतम लोग पागल हो रहे हैं, वह रज का हैं। और ये तीन तत्व वही हैं, जिनको हिंदू मिथ में हमने ब्रह्मा, विष्णु, | परिणाम है। ज्यादा दौड़ेंगे, तो विक्षिप्त हो जाएंगे। ठहरना भी उतना महेश कहा है। तीनों के लक्षण भी यही हैं उनके। ब्रह्मा पैदा करता | ही जरूरी है। और जो व्यक्ति जानता है-जैसा ताओ ने कहा है, है; वह रज है। विष्णु सम्हालते हैं, संतुलन देते हैं; वे सत्व हैं। शिव | कहां ठहर जाना—जो जानता है, कहां ठहर जाना, वह कभी संकट तम हैं; विनष्ट करते हैं। सब चीजें शांत हो जाती हैं वापस। | में नहीं पड़ता। इसलिए अक्सर तामसी जो लोग हैं, शिव की पूजा करते दिखाई | दौड़ना भी जरूरी है; ठहरना भी जरूरी है। दौड़ने और ठहरने में पड़ते हैं। शिव उनको रसपूर्ण मालूम होते हैं। शिव विध्वंसक हैं, | जो संतुलन को पैदा कर लेता है, वह सत्व को उपलब्ध हो जाता वे मृत्यु के प्रतीक हैं। इसलिए शिव के पीछे अगर चरस, गांजा, है, वह साधु है। . अफीम तेजी से चल पड़ा, उसका कारण है। क्योंकि ये सभी तत्व | साधुता का अर्थ है, भीतर एक लयबद्धता पैदा हो जाए। न तो मृत्यु के तत्व हैं। सभी विध्वंसक हैं। सभी आपको नष्ट कर देंगे। | दौड़ हो और न मूर्छा हो। मूर्छा हो तो तम होता है; दौड़ हो तो इनके विनाश में जो रस आ सकता है, वह तामसी वृत्ति को आ| | पागलपन होता है। दौड़ और रुकने की क्षमता दोनों मिल जाएं और सकता है। एक तीसरा तत्व पैदा हो जाए। उस तत्व को कृष्ण ने सत्व, सांख्य पश्चिम में एल.एस.डी., मेस्केलीन, मारिजुआना तेज गति पर ने सत्व कहा है। है। और पश्चिम के ये भक्त—मारिजुआना के भक्त, एल.एस. | यह तत्व भी आखिरी नहीं है। इस संसार में श्रेष्ठतम है। इससे डी. के भक्त–उनके मन में भी शिव के प्रति बड़ा प्रेम पैदा हो रहा | | ही कोई मुक्त नहीं हो जाएगा, लेकिन इससे मुक्ति की संभावना है। हिप्पी आता है, तो काशी जाता है। काशी शिव की नगरी है।। बनती है। वहां जाकर वह शिव के दर्शन करता है। वह नेपाल जाता है। ___ ध्यान रहे, कोई सात्विक होकर मुक्त नहीं हो जाएगा। सात्विक क्योंकि वहां शिव के बड़े प्राचीन मंदिर हैं; शिव-भक्तों की बड़ी | | होकर भी संसार का ही हिस्सा रहेगा। इसलिए साधु मुक्त नहीं पुरानी धारा है। अमेरिका की हिप्पी बस्तियों में भी बम भोले, जय | होता। संत को हम मुक्त कहते हैं, साधु को नहीं। लेकिन साधु में भोले की आवाज सुनाई पड़ने लगी है। संत होने की क्षमता हो जाती है। चाहे तो साधु संत हो सकता है।
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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