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* गीता दर्शन भाग-7 *
लेकिन उनको पता नहीं है कि बच्चे बूढ़े नहीं हैं, इसलिए उनसे | इन तीनों के पार भी एक अवस्था है, जिसको कृष्ण बाद में ठहरने की आकांक्षा करनी गलत है। अगर उन्हें ठहराना भी हो, तो | बताएंगे, जिसे वे गुणातीत कहते हैं। पर उस अवस्था को देखा नहीं एक ही उपाय है कि उन्हें काफी दौड़ाओ कि वे थक जाएं। उनका रज | जा सकता। बुद्ध में वह पैदा होती है, कृष्ण में पैदा होती है, पर
जाए। उनका रज थक जाए, तो तम ज्यादा हो जाएगा। फिर वे उसको हम देख नहीं सकते हैं। वह तो हममें ही जब पैदा हो, तभी बैठ जाएंगे। उनके विश्राम का एक ही उपाय है कि वे काफी दौड़ लें। | हम उसका अनुभव कर सकते हैं। बूढ़े के दौड़ने का एक ही उपाय है कि काफी विश्राम कर ले, तो |
| बुद्ध को भी हम ज्यादा से ज्यादा सत्व में देख सकते हैं, क्योंकि थोड़ा दौड़ सकता है। उसका तम थक जाए विश्राम कर-करके, तो आंखें सत्व को देख सकती हैं। आंखें प्रकृति की हैं। वे भी तीन रज थोड़ा गतिमान हो सकता है।
तत्वों से बनी हैं। उनमें भी रज है, तम है और सत्व है। इसलिए जो और जवानी एक संतुलन है। और जब पूरी तरह संतुलित होती | | हमारी आंखों में छिपा है, उसे हम पहचान सकते हैं, ज्यादा से है गति की क्षमता और ठहरने की क्षमता, तो सौंदर्य प्रकट होता है। | ज्यादा। वह भी सभी लोग नहीं पहचान सकेंगे। क्योंकि दोनों विपरीत बिलकुल मिल जाते हैं। दोनों में जरा भी भेद बुद्ध के पास अगर कोई तामसी जाएगा, तो बुद्ध को बिलकुल नहीं रह जाता। दोनों तनाव एक जगह पर आ जाते हैं। उस तनाव | नहीं पहचान पाएगा। वह समझेगा कि कोई ढोंगी है; वह समझेगा का नाम जवानी है: उस टेंशन का नाम. जहां दोनों विपरीत शक्तियां कि लोगों को धोखा दे रहा है। इससे सावधान रहना; कहीं रात सो बराबर मात्रा की हो जाती हैं।
गए, जेब न काट ले! वह बुद्ध के पास भी अपनी जेब पर हाथ सत्व न तो गति का तत्व है, न ठहरने का। सत्व है संतुलन। रखेगा कि क्या भरोसा! देखने में तो भोला लगता है, लेकिन सत्व वहीं प्रकट होता है, जहां दोनों तत्व संतुलित हो जाते हैं। सत्व भोलापन हमेशा खतरनाक होता है। पता नहीं बनकर भोला बैठा है बैलेंस। इसलिए जब भी आप जीवन की किसी भी दिशा में हो यह आदमी। कोई तरकीब हो। कोई इसके पीछे हिसाब जरूर संतुलन को पाते हैं, तो सत्व प्रकट होता है।
होगा, नहीं तो कोई क्यों भोला बैठेगा! साधु का अर्थ है, जो संतुलन को उपलब्ध हुआ, सात्विक हुआ। बुद्ध के पास अगर कोई रज से भरा हुआ, भाग-दौड़ से भरा सत्व है संयम, विपरीत के बीच संयम। दोनों विपरीत टूट गए। हुआ, चंचल व्यक्ति पहुंचेगा, तो वह मुर्दा समझेगा बुद्ध को। कि दोनों विपरीत एक-दूसरे को साध दिए। दो विरोधी स्वरों से एक यह क्या जीवन है? यह भी कोई जीवन है! पलायनवादी, संगीत पैदा हो गया। इस संगीत का नाम है सत्व।
एस्केपिस्ट है यह आदमी। यह भाग गया। इसमें कुछ कमी है। यह रज और तम शक्ति, दौड़, ठहरने के नियम हैं। और दोनों के लड़ न सका। कायर है, कमजोर है। बीच जब कोई संतुलन पैदा होता है, तो जो तत्व पैदा होता है, वह लोगों ने ऐसा कहा है। कहने वाले का कारण है। क्योंकि वह है सत्व। इन तीन तत्वों से मिलकर प्रकृति बनी है।
चंचलता में जीवन देखता है; भाग-दौड़ में जीवन देखता है। ऊर्जा प्रकृति में जहां भी सौंदर्य दिखाई पड़ता है, वहां समझना कि नाचती हो, वहां जीवन देखता है। सत्व पैदा हो गया। हम भगवान के मंदिर में मूर्ति पर फूल ले जाकर यहां बुद्ध में सब शांत है। यहां जैसे कोई तरंग भी नहीं हिलती। चढ़ाते हैं। वह फूल सत्व का प्रतीक है। वह फूल सौंदर्य का प्रतीक तो वह कहेगा, यह भी कोई जीवन है! यह तो मरने का एक ढंग है। वृक्ष के जीवन में, प्राणों में, फूल तभी खिलता है, जब एक हुआ। यह आदमी तो मर चुका। मैदान में आओ जिंदगी के। वहां गहन संतुलन पैदा हो जाता है। उस संतुलन को हम परमात्मा के तुम्हारा पता चलेगा। भगोड़े हो। चरणों में चढ़ाते हैं। वह प्रतीक है। ऐसा संतुलन, ऐसा फूल हमारे बुद्ध को भी वही पहचान पाएगा, जिसमें सत्व का थोड़ा उदय जीवन में खिले और हम उसे मंदिर में चढ़ा सकें, वह उसकी | हुआ हो। क्योंकि हम वही पहचान सकते हैं, जो हमारे भीतर है। आकांक्षा है; वह उस दिशा की तरफ हमारा भाव है।
अन्यथा को पहचानने का कोई उपाय नहीं है। वही देख सकते हैं, बुद्ध में जो संतुलन दिखाई पड़ता है, वह सत्व है। महान, | जो हमारी आंख में भी आ गया हो। वही हमारे हृदय को भी छू महानतम व्यक्तियों में भी, पृथ्वी पर जो हम देख सकते हैं ज्यादा | सकता है, जो हमारे हृदय में भी कंपित हो रहा हो। समान समान से ज्यादा, वह सत्व है।
| से मिल जाते हैं। समान समान को पहचान लेते हैं।