SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 54
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * गीता दर्शन भाग-7 जो यह देख रहा है कि आग लगी है, वह तो स्वप्न है; लेकिन | हो सकती है झूठे सांप को देखकर! जो यह भोग रहा है, जो पीड़ा, वह सत्य है। उस पीड़ा में कोई फर्क | आप दुख तो भोग ही रहे हैं। इस दुख से बाहर आने की व्यवस्था नहीं पड़ता। वस्तुतः घर में आग लगी हो, तो भी इतनी ही पीड़ा होती साधना है। है; और सपने में आग लगी हो, तो भी इतनी ही पीड़ा हो रही है। और महावीर, बुद्ध और कृष्ण इतना श्रम लेते हैं, वह श्रम भी या कि कोई फर्क पड़ता है? आपको श्रम मालूम पड़ रहा है। शायद आपको कभी-कभी तो पीड़ा वास्तविक है। संसार असत्य है, लेकिन संसार में भोगा। | पागलपन भी मालूम पड़ता होगा। क्योंकि श्रम में भी कोई पुरस्कार गया दख वास्तविक है। यह संसार सत्य हो या असत्य हो. इससे तो दिखाई पडता नहीं। श्रम भी आदमी करता है. तो कछ पाने को। फर्क नहीं पड़ता; आप दुख भोग रहे हैं, यह सवाल है। और बुद्ध | इनको मिलता क्या है? कभी-कभी जीसस जैसे व्यक्ति को सूली और महावीर और कृष्ण जानते हैं कि तुम्हारा दुख असत्य से पैदा | | मिल जाती है, और तो कुछ मिलता नहीं। कभी सुकरात को जहर हो रहा है, लेकिन तुम दुखी हो, यह निश्चित है। | मिल जाता है, और तो कुछ मिलता नहीं। यह पुरस्कार है! इतना भर कह देने से कि यह सब माया है, सपना है; छोड़ो, इसमें मिलता क्या है ? श्रम ही दिखाई पड़ता है। किसलिए श्रम कर कुछ रखा नहीं है, तुम्हारा दुख नहीं मिटेगा। तुम्हें जगाना पड़ेगा। | रहे हैं? आपको ऐसा लगता है कि श्रम कर रहे हैं; उनकी तरफ से साधना पद्धति का अर्थ होता है, जगाने की कोई व्यवस्था। और श्रम नहीं है। उनकी तरफ से सहज आनंद है। उनकी तरफ कोई यह नींद ऐसी गहरी है; यह नींद साधारण नींद नहीं है। साधारण मेहनत नहीं हो रही है। जो उन्होंने जाना है, उसे दूसरे को भी जना नींद में तो दूसरा आदमी आपको हिलाकर उठा दे। यह नींद ऐसी | | देना एक आनंद है। जो उन्होंने पाया है, वह दूसरा भी पा ले; उस गहरी है कि जब तक आप ही अपने को हिलाना न शरू करें. कोई दसरे के पाने में भी बड़ा आनंद है। कृष्ण, कोई बुद्ध आपको हिलाकर नहीं उठा सकते हैं। यह श्रम किसी पुरस्कार को पाने के लिए नहीं है। यह श्रम अपने इसलिए कृष्ण, बुद्ध और महावीर इतना ही कर सकते हैं कि | में ही पुरस्कार है। इसके पार और कुछ पाने का सवाल नहीं है। यह आपको कुछ विधियां दें, जिनके माध्यम से आप अपने को हिलाना | | श्रम प्रेम का एक हिस्सा है। यह एक करुणा है। शुरू करें और किसी दिन जाग जाएं। जागकर आप भी पाएंगे कि | | अब हम सूत्र लें। स्वप्न था। जागकर आप भी पाएंगे कि जो मैं देख रहा था, वह हे अर्जुन, नाना प्रकार की सब योनियों में जितनी मूर्तियां अर्थात वास्तविक नहीं था। लेकिन फिर भी आप बुद्ध के चरणों में सिर | शरीर उत्पन्न होते हैं, उन सबकी त्रिगुणमयी माया तो गर्भ को धारण रखकर धन्यवाद देंगे। क्योंकि जो आप भोग रहे थे, वह काफी | करने वाली माता है और मैं बीज को स्थापन करने वाला पिता हूं। वास्तविक था। हे अर्जुन, सत्वगुण, रजोगुण और तमोगुण, ऐसे यह प्रकृति से झूठी चीजों से भी सत्य भोग भोगा जा सकता है। एक आदमी | | उत्पन्न हुए तीनों गुण इस अविनाशी जीवात्मा को शरीर में बांधते हैं। रास्ते पर देखता है, रस्सी पड़ी है अंधेरे में और सांप दिखाई पड़ती हे निष्पाप, उन तीनों गुणों में प्रकाश करने वाला निर्विकार है; वह भाग खड़ा होता है। उसकी छाती कम धड़केगी, क्योंकि | सत्वगुण तो निर्मल होने के कारण सुख की आसक्ति से और ज्ञान वहां रस्सी है, सांप नहीं? सांप होता तो ज्यादा धड़कती? की आसक्ति से अर्थात ज्ञान के अभिमान से बांधता है। इस आदमी के लिए तो सांप है ही। यह भाग रहा है। इसकी । पहली बात, गीता के अनुसार और वस्तुतः सांख्य के अनुसार घबड़ाहट तो वास्तविक है। इसकी पीड़ा वास्तविक है। इसका हार्ट | | प्रकृति तीन तत्वों का मेल है, सत्व, रज, तम।। फेल हो सकता है। और आप यह न कह सकेंगे कि गलत है तुम्हारा । यह आश्चर्य की बात है कि जगत में जहां भी किसी ने विश्लेषण हार्ट फेल। क्योंकि तुमने जो देखा, वह सांप नहीं था, रस्सी थी। | किया है जीवन का, अंतिम विश्लेषण हमेशा तीन पर टूट जाता है। वापस लौटो। यह बिलकुल ठीक नहीं है। यह जायज नहीं है। प्रतीकों में, धारणाओं में, सिद्धांतों में अस्तित्व तीन हिस्सों में टूट मगर आपके कहने से कोई वापस लौटने वाला नहीं है। जाता है। जायज-नाजायज कौन पूछेगा? यह हृदय की धड़कन बंद हो | । ईसाइयत ट्रिनिटी में विश्वास करती है कि ईश्वर के तीन रूप हैं। सकती है झूठे सांप को देखकर। वास्तविक हृदय की धड़कन बंद और उनसे ही सारा जगत निर्मित होता है। हिंदू त्रिमूर्ति में विश्वास 26
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy