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________________ * त्रिगुणात्मक जीवन के पार * पड़ेगी, क्योंकि इतना विराट हृदय है! कृष्ण जैसा हृदय बहुत | देते। वे आपसे यह कह रहे हैं कि मैं तो सबको श्रेष्ठ कह रहा हूं, मुश्किल है, जहां सब समा जाएं। | लेकिन तुम्हारे लिए क्या श्रेष्ठ है, वह तुम्हें खोजना पड़ेगा। तुमसे नसरुद्दीन गांव का न्यायाधीश हो गया था। पहला ही मुकदमा | | किस चीज का तालमेल बैठ जाता है, तुम्हारे हृदय में कौन-सी उसकी अदालत में आया। पक्ष के वकील ने कुछ कहा; अपना चीज अनुगूंज पैदा करती है, तुम्हारी धड़कनें किस बात के साथ वक्तव्य दिया। नसरुद्दीन ने कहा, बिलकुल ठीक। जो कोर्ट का नाचने लगती हैं, तुम किससे अपना तारतम्य पाते हो, वही तुम्हारे क्लर्क था, जो नीचे ही नसरुद्दीन के बैठा था, वह थोड़ा घबड़ाया। | लिए श्रेष्ठ है। जज को ऐसा निर्णय नहीं देना चाहिए। अभी दूसरे पक्ष की बात सुनी ___ इसे खयाल रखें, अन्यथा कृष्ण बहुत असंगत मालूम होंगे। ही नहीं गई। सभी महापुरुष असंगत होते हैं, सिर्फ क्षुद्र व्यक्तित्व असंगत नहीं उसने झुककर नसरुद्दीन को कहा कि शायद आपको पता नहीं | होते। क्योंकि उनमें विपरीत समाया होता है। वे अपने से भिन्न को अदालत के नियम। आप चुप रहें। निर्णय आखिर में। और अगर | भी अपने भीतर समा लेते हैं। आप अभी कह देते हैं कि बिलकुल ठीक, तो फिर दूसरे विपक्षी को कहने का क्या मौका रहा! नसरुद्दीन ने कहा, बिलकुल ठीक। उस क्लर्क से कहा। चौथा प्रश्नः कृष्ण, बुद्ध, महावीर जानते हैं कि संसार फिर विपक्षी की बात सुनी। और जब विपक्षी अपना पूरा वक्तव्य माया है, एक स्वप्न है, तो भी वे अपने शिष्यों के दे चुका, तो नसरुद्दीन ने कहा, बिलकुल ठीक। क्लर्क झुका और साथ इतना श्रम क्यों करते हैं? क्या उनका श्रम भी, उसने कहा, अब हद हो गई। पक्ष भी ठीक; मैंने विरोध किया, वह शिष्यों को साधना करवाना भी माया के ही अंतर्गत भी ठीक; अब यह विरोधी जो कह रहे हैं, यह भी ठीक! आपका नहीं है? मतलब क्या है ? ये सब ठीक नहीं हो सकते! नसरुद्दीन ने कहा कि बिलकुल ठीक। इस भाव-दशा को समझना थोड़ा कठिन है। या तो मूढ़ में हो +नश्चित ही माया के अंतर्गत है। जैसे कोई सोया हो, सकती है यह भाव-दशा. या परम ज्ञानी में। या तो मढ ऐसी मढता IUI स्वप्न देख रहा हो कि उसके घर में आग लग गई है। कर सकता है कि सभी को ठीक कह दे। और या फिर परम ज्ञानी और तड़फ रहा हो, नींद में हाथ-पैर मार रहा हो, ऐसे ज्ञान की बात कर सकता है कि सभी को ठीक कहे। मध्य में चिल्ला रहा हो, आग! आग! आप जागे हुए बैठे हैं। और आप तो हमें सदा ऐसा लगेगा कि कुछ ठीक और कुछ गलत। अगर एक | जानते हैं, कहीं आग नहीं लगी है। आप जानते हैं कि वह स्वप्न • पक्ष ठीक है, तो विपक्ष गलत होगा ही। देख रहा है। उसके माथे पर जो पसीना बह रहा है, वह स्वप्न की हम सब अरस्तू के तर्क से जीते हैं। जहां विपरीत बातें, दोनों सही | आग से पैदा हुआ है। उसके मुंह से जो चिल्लाहट निकल रही है, नहीं हो सकतीं। दोनों गलत हो भी सकती हैं, लेकिन दोनों सही नहीं | आग; मर गए; लुट गए; वह स्वप्न की आग से निकल रही है। हो सकतीं। सही तो एक ही हो सकती है। आप उसको जगाने की कोशिश करेंगे, जाग जाओ। हिलाएंगे; लेकिन कृष्ण जैसे व्यक्ति अरस्तू के तर्क से नहीं जीते हैं। कृष्ण | उससे कहेंगे, यह स्वप्न है। जैसे व्यक्ति विराट हैं। उनमें सब समाया हुआ है। और जब भी वे __ स्वप्न को तोड़ने की क्या जरूरत? स्वप्न स्वप्न है ही। स्वप्न को किसी एक बात की चर्चा करते हैं, तो पूरे उसमें तल्लीन हो जाते हैं। | तोड़ने के लिए आप परेशान क्यों हो रहे हैं? अगर स्वप्न स्वप्न ही उस तल्लीनता के कारण वे जगह-जगह कभी भक्ति को श्रेष्ठ कहते | | है, तो इतनी परेशानी आपको क्या है! इसको चिल्लाने दो, रोने दो, हैं, कभी ज्ञान को श्रेष्ठ कहते हैं, कभी कर्म को श्रेष्ठ कहते हैं। चीखने दो। स्वप्न ही है। लेकिन फिर भी आप कोशिश करेंगे। माना __आप क्या करें? आप उलझन में पड़ जाएंगे। क्योंकि अगर वे कि जो यह देख रहा है, वह तो स्वप्न है; लेकिन जो यह भोग रहा एक को श्रेष्ठ कह दें, तो आप आंख बंद करके चल पड़ें। लेकिन | | है, वह सत्य है। शायद उचित ही है कि वे आपको आंख बंद करने का मौका नहीं इस फर्क को ठीक से समझ लें।
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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