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* गीता दर्शन भाग-7 3
ज्ञान हो सकता है और दूसरा ज्ञान आपके लिए परम ज्ञान न हो। | कि मैं तुझसे परम ज्ञान कहता हूं। तो शंकर क्या करेंगे जहां भक्ति
परम ज्ञान से प्रयोजन है. जिस ज्ञान से आपकी मक्ति हो जाए। श्रेष्ठ है? शंकर करेंगे कि भक्ति भी ज्ञान तक पहुंचने का एक मार्ग जिस साधना-विधि से आप सिद्ध हो जाएंगे, वह आपके लिए है। लेकिन ज्ञान ही है अंत। भक्ति भी एक मार्ग है ज्ञान तक पहुंचने परम है।
का। लेकिन वह मार्ग कमजोरों के लिए है। जो सबल हैं, वे सीधा हजार साधना-विधियां हैं। उनमें कोई श्रेणी-क्रम नहीं है। वे | ज्ञान का मार्ग ले लेते हैं। जो भावाविष्ट हैं, भावुक हैं, स्त्रैण हैं, वे सभी श्रेष्ठ हैं। लेकिन वे सभी आपके लिए श्रेष्ठ नहीं हैं। कोई और | भक्ति का मार्ग लेंगे। वह भी एक मार्ग है। उसको भी बरदाश्त उनसे पहुंच सकता है।
किया जा सकता है। व्यक्ति भिन्न-भिन्न हैं। सभी रास्ते वहां पहुंचा देते हैं। जो रास्ता कृष्ण कहीं कर्म को श्रेष्ठ कहते हैं। कहते हैं, कर्मयोगी ही श्रेष्ठ आपको पहुंचा देता है, वह परम है आपके लिए। जो रास्ता मुझे |
| है। तो तिलक उसको पकड़ लेते हैं, और गीता की पूरी व्याख्या पहुंचा देता है, वह परम है मेरे लिए। आपका रास्ता मेरे लिए दो कर्मयोग कर देते हैं। तब ज्ञान भी तभी सार्थक है, जब कर्म में उतरे। कौड़ी का है। मेरा रास्ता आपके लिए दो कौड़ी का है। उसका कोई | और भक्ति भी तभी सार्थक है, जब वह तम्हारा कर्म और सेवा बन भी मूल्य नहीं।
जाए। फिर तिलक के पीछे चलकर गांधी और विनोबा कर्म का यह जो परम शब्द का कृष्ण उपयोग कर रहे हैं, यह दो रास्तों में | विस्तार किए चले जाते हैं। तौलने के कारण नहीं है। हजार रास्ते हैं। लेकिन एक व्यक्ति को | गीता की हजार व्याख्याएं संभव हैं। हजार व्याख्याएं हुई हैं। होने एक ही रास्ता पहुंचाएगा। और अपने रास्ते को खोज लेना परम को का कारण यह है कि कृष्ण पांथिक नहीं हैं। वे किसी एक पंथ की खोज लेना है।
बात नहीं कह रहे हैं। वे सभी दृष्टियों की बात कर रहे हैं। और सभी इसे थोड़ा ठीक से समझ लें। यह तुलना रास्तों को नीचा-ऊंचा | दृष्टियों में जब वे जिस दृष्टि की बात करते हैं, उसमें जो श्रेष्ठतम करने की नहीं है। इसलिए कृष्ण को समझने में कई बार कठिनाई है, उसको खींचकर ऊपर लाते हैं। और जब वे उस दृष्टि की बात होती है। जब वे भक्ति की बात करते हैं, तब वे कहते हैं, परम। करते हैं, तो उसके साथ तत्सम हो जाते हैं, एक हो जाते हैं। फिर जब वे ज्ञान की बात करते हैं, तब वे कहते हैं, परम। इसलिए इतनी | | वे भूल जाते हैं कि और भी दृष्टियां हैं। और तभी ऐसा हो सकता टीकाएं कृष्ण की गीता पर हो सकीं। और सभी टीकाकार गलती | है, नहीं तो उस दृष्टि का पूरा गहन विश्लेषण भी नहीं हो सकता। करते हुए भी ऐसा नहीं मालूम पड़ते कि गलती करते हैं। क्योंकि कृष्ण दूर खड़े होकर विश्लेषण नहीं करते हैं। जब वे भक्ति की उनके मन की बात भी कृष्ण ने कहीं कही है। वे उसको ऊपर उठा बात अर्जुन से कह रहे हैं, तब वे भक्त ही हो जाते हैं। और तब वे लेते हैं।
उसका गणगान करते हैं जितना हो सकता है। उस गणगान में वे जैसे रामानुज, भक्त हैं और मानते हैं कि भक्ति ही मार्ग है। तो कंजूसी नहीं करते। और उस गुणगान में यह खयाल नहीं रखते कि कृष्ण के वचन हैं, जिसमें उन्होंने कहा है कि भक्ति परम है; पहले मैंने क्या कहा है। क्योंकि वह तो सिर्फ चालाक आदमियों सर्वश्रेष्ठ भक्त है। तो बस, उसको रामानुज चुन लेंगे, उसको बिंदु | का हिसाब है कि पहले मैंने क्या कहा था। वे इसका भी हिसाब नहीं बना लेंगे, आधार। और उसके आधार पर पूरी गीता की व्याख्या | रखते कि कल मैं क्या कहूंगा। क्योंकि वे कोई दुकानदार नहीं हैं। कर देंगे। जो गलत है। क्योंकि कई जगह कृष्ण ज्ञान को परम कह | कल, कल देखा जाएगा। रहे हैं कि ज्ञानी परम श्रेष्ठ है। तब रामानुज उसकी ऐसी व्याख्या | | और जब वे गुलाब के फूल की प्रशंसा करेंगे, तो सब फूल भूल करेंगे कि जिससे वह भक्ति श्रेष्ठ रहे और यह ज्ञान नंबर दो का हो | | जाएंगे। और जब वे कमल के फूल की प्रशंसा करेंगे, तो सब फूल जाए। कैसे वे व्याख्या करेंगे?
| भूल जाएंगे। तब कमल का फूल ही सारे फूलों का सार हो जाएगा। आदमी शब्दों के साथ खेल कर सकता है। खेल यह है कि वे लेकिन यह दृष्टि समझनी कठिन है, क्योंकि तब कृष्ण बेबूझ हो कहते हैं, परम ज्ञानी वही है, जिसको भक्ति का ज्ञान है। हल हो | | जाते हैं। और संप्रदाय वाले लोग फिर उनसे अपना-अपना मतलब गया। अड़चन हल हो गई।
| निकालते हैं। शंकर ज्ञान को श्रेष्ठ मानते हैं। वचन हैं गीता में, यही वचन है । इसलिए सभी ने कृष्ण के साथ ज्यादती की है। ज्यादती करनी ही