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________________ * त्रिगुणात्मक जीवन के पार * जंगल। इससे तो बेहतर है, मैं मर जाऊं मारने की बजाए। असल में जिससे भी भय हो, उसकी तरफ आंख गड़ाकर ही जब भी आप किसी और की मृत्यु देख रहे हैं, तब अगर आप | देख लेना उपाय है। क्योंकि तब कुछ किया जा सकता है। थोड़े भी विचारपूर्ण हैं, तो आप तत्क्षण सजग हो जाएंगे कि आपकी ___ मौत के प्रति ध्यान जरूरी है। हम उससे भाग न सकेंगे। हम मौत भी करीब है। और जिस क्य में यह आदमी गिर गया है. उसी | कहीं भी भागे, हम उसी में पहुंच जाएंगे। हमारी सब भाग-दौड़ क्यू में आप भी खड़े हैं। थोड़े फासले पर खड़े होंगे। यह नंबर एक | | मृत्यु में ले जाएगी। उससे बचने का कोई भी उपाय नहीं है। सिर्फ था; इसका वक्त आ गया। लेकिन इसके आने से एक नंबर आप | एक ही उपाय है कि हम मृत्यु को देखें, समझें, और अपने भीतर भी आगे सरक गए हैं। क्यू में आप थोड़े आगे आ गए हैं। जहां किसी ऐसे तत्व को खोज लें, जो नहीं मर सकता है। फिर मृत्यु मौत घटने वाली है, उस बिंदु के आप करीब सरक रहे हैं। हर क्यू व्यर्थ हो जाती है। फिर कोई हंस सकता है। फिर कोई मृत्यु के में गिरने वाला आदमी आपको करीब ला रहा है। हर रास्ते से साथ खेल सकता है। निकलती लाश आपकी मौत को करीब ला रही है। हर लाश एक कृष्ण भी अर्जुन को यही इशारा दे रहे हैं। वे यही समझाने की सीढ़ी है, जो आपको मौत तक पहुंचा देगी। | कोशिश कर रहे हैं कि मृत्यु वास्तविक नहीं है! क्योंकि जो भीतर __ मृत्यु का बोध बुद्ध को संन्यस्थ जीवन में ले गया। मृत्यु का बोध | | छिपा है, वह कभी भी नहीं मरता। न उसे हम जला सकते हैं जलाने ही किसी भी मनुष्य को कभी भी धार्मिक होने की प्रेरणा दिया है। सेन उसे डबा सकते हैं, न गला सकते हैं: न उसमें छिद्र किए जा मृत्यु का परम वरदान है। मृत्यु है, इसलिए आप सोचते हैं। | सकते हैं शस्त्रों से; न उसे आग जलाती है। जब कोई मार भी डाला ___ कोई भी जानवर धार्मिक नहीं है। न होने का कारण कुल इतना है जाए, तो भी वह नहीं मरता है। कि कोई भी जानवर अपनी मृत्यु के संबंध में नहीं सोच पाता। मृत्यु ___ अर्जुन मृत्यु के प्रति सचेत हो गया है। कृष्ण उसे अमृत के प्रति उसके लिए कभी भी विचारणीय नहीं बनती। इतना भविष्य में पशु सचेत करने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन ध्यान रहे, अमृत के का मन नहीं सोच सकता। और अगर कोई मर भी जाए, तो पशु यह | | प्रति उसी की आंखें उठ सकती हैं, जो मृत्यु को देखने में ठीक-ठीक नहीं सोच सकता कि मैं मरूंगा। यह एक दुर्घटना है। इस पर कोई सफल हो गया। क्योंकि मृत्यु के पार अमृत है। सोच-विचार भी नहीं होता। अगर पशुओं को भी खयाल आ जाए । पहले तो मृत्यु को देखना ही पड़ेगा। और आंख इतनी गहरी कि उनकी मृत्यु करीब है, तो वे भी अपना धर्म निर्मित कर लें। | चाहिए कि मृत्यु के आर-पार प्रवेश कर जाए और छिपे हुए अमृत धर्म वस्तुतः मृत्यु के पार जाने का उपाय है। इसलिए जिस को खोज ले। व्यक्ति को भी वस्तुतः धार्मिक रूपांतरण से गुजरना हो, उसे अपनी जो मृत्यु से बचेगा, वह आत्मा से भी बच जाएगा। जो मृत्यु से मृत्यु के प्रति बहुत सघन रूप से सचेत हो जाना चाहिए। आंख चुराएगा, अमृत से भी उसके संबंध जुड़ नहीं पाएंगे। यह __ मृत्यु के प्रति सचेत होने का अर्थ मृत्यु से भयभीत होना नहीं है। उलटा मालूम होगा, पैराडाक्सिकल लगेगा, विरोधाभासी, कि जो सच तो यह है, जो सचेत नहीं होते, वे ही भयभीत होते हैं। जो | मृत्यु से बचता है, वही मरता है। और जो मृत्यु का साक्षात कर लेता सचेत होते हैं, वे तो उसके पार जाने का उपाय करने लगते हैं। है, उसकी कोई मृत्यु नहीं है। उनका मृत्यु का भय नष्ट हो जाता है। धर्म मृत्यु के साक्षात्कार की प्रक्रिया है। मृत्यु का बोध, कांशसनेस आफ डेथ चाहिए, कि मृत्यु है, और उससे हम आंख न चुराएं। और हमारे आंख चुराने से हम बचेंगे नहीं। आंख चुराना शुतुरमुर्गी है। शुतुरमुर्ग छिपा लेता है अपनी तीसरा प्रश्नः ज्ञानों में भी अति उत्तम परम ज्ञान, ऐसा गर्दन को रेत में, कोई दुश्मन को देखता है तो। आंख बंद हो जाती कृष्ण ने कहा। क्या ज्ञान में भी श्रेणी-क्रम है? है, रेत में गर्दन छिप जाती है; शुतुरमुर्ग सोचता है, जो दुश्मन दिखाई नहीं पड़ता, वह नहीं है। यह तर्क शुतुरमुर्गी है। हम भी यही तर्क का उपयोग करते हैं। जिस चीज से हम डरते हैं, उसको हम ला न में तो कोई श्रेणी-क्रम नहीं है, लेकिन व्यक्ति देखते नहीं हैं। और सोचते हैं, न दिखाई पड़ने से हम बच जाएंगे। II भिन्न-भिन्न हैं, इसलिए एक ज्ञान आपके लिए परम 123|
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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