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गीता दर्शन भाग-7**
ढंग है, तो वह कभी का अलग छांट दिया जाएगा। वहां तक तो ही पहुंचेगा, जो बिलकुल लकीर का फकीर है। जिसने पच्चीसों वर्ष तक प्रमाण दे दिए हैं, कि न मैं सोचता हूं, न मैं विचारता हूं, मैं सिर्फ दोहराता हूं। मैं सिर्फ एक ग्रामोफोन रिकार्ड हूं। वह आदमी पोप तक पहुंच पाएगा। वह धर्मराज होगा। लेकिन गीता उससे नहीं कही जा सकती।
इसलिए अर्जुन पात्र है, और धर्मराज पात्र नहीं हैं।
दूसरा प्रश्न : युद्ध की पार्श्वभूमि में मृत्यु का क्षण अर्जुन के रूपांतरण में सहायक सिद्ध हुआ । क्या अर्जुन अन्यत्र रूपांतरित न हो पाता ? और क्या हमें भी अनिवार्यतः मृत्यु के क्षण जैसी स्थिति रूपांतरण के लिए आवश्यक है ?
श्चय ही, जब तक किसी व्यक्ति को मृत्यु का ठीक-ठीक बोध नहीं होता, जब तक मृत्यु का तीर |
आपके हृदय में ठीक-ठीक चुभन पैदा नहीं करता, तब तक आप जीवन के संबंध में सोचना शुरू नहीं करेंगे।
मृत्यु ही सवाल उठाती है कि जीवन क्या है। अगर मृत्यु न हो, तो जीवन के संबंध में कोई सवाल न उठेगा। अगर मृत्यु न हो, तो धर्म के जन्म का कोई उपाय नहीं है।
मृत्यु ही हिलाती है। मृत्यु ही जगाती है। मृत्यु ही प्रश्न बनाती है| कि जिस जीवन को तुम जी रहे हो, अगर वह कल मिट ही जाने वाला है, तो उसका मूल्य क्या? उसमें अर्थ क्या है? जिसके लिए तुम आज इतने बेचैन हो और वह कल ऐसे मिट जाएगा, जैसे पानी पर खींची गई लकीर, तो खींचने के लिए इतनी आतुरता क्या है ? जिन हस्ताक्षरों को करने में तुम इतनी पीड़ा उठा रहे हो कि जीवन उन्हें याद रखे, वे रेत पर बनाए गए हस्ताक्षर हैं। तुम पूरे भी न कर पाओगे कि हवा का झोंका उन्हें पोंछ जाएगा। तो जीवन में इतना ज्यादा रस व्यर्थ मालूम होगा।
मृत्यु ही बताएगी कि जिसे तुम जीवन समझ रहे हो, वह जीवन नहीं है। और मृत्यु ही तुम्हें धक्का देगी कि तुम उस जीवन की खोज करो, जिसे मृत्यु न मिटा सके। क्योंकि वही जीवन है, जो अमृत है और जहां कोई मृत्यु न होगी, कोई अंत न होगा।
अगर ऐसा कोई जीवन नहीं है, तो जिसे हम जीवन कह रहे हैं, यह नितांत मूढ़ता है। यह नितांत असंगत, एक दुखस्वप्न, एक | नाइटमेयर है। अगर कोई ऐसा जीवन हो सकता हो, जिसका अंत न हो, तो ही इस जीवन में भी कोई सार हो सकता है। क्योंकि तब हम इस जीवन को उस जीवन में जाने की परिस्थिति बना सकते हैं। तब हम इस जीवन को उस जीवन में प्रवेश की साधना बना सकते हैं। तब हम इस जीवन को एक द्वार की तरह, एक शिक्षण की तरह उपयोग कर सकते हैं और परम जीवन में प्रवेश कर सकते हैं।
इस जीवन का एक ही उपयोग हो सकता है कि यह किसी महत्तर जीवन में जाने का साधन बन जाए।
मृत्यु ही बताती है कि यह अंत नहीं है। अंत कहीं और खोजना | होगा। मृत्यु ही बताती है कि यह यात्रा - पथ भला हो, मंजिल नहीं है। मंजिल कहीं और खोजनी होगी।
अर्जुन को ही नहीं, किसी को भी मृत्यु ही जगाती है। अगर कोई समझदार हो अर्जुन जैसा, तो दूसरे की मृत्यु भी जगाने वाली बन | जाती है। अगर कोई मूढ़ हो, तो दूसरे की मृत्यु का उससे कोई संबंध नहीं जुड़ता ।
हेनरिक हेन, एक जर्मन कवि ने लिखा .1
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जिस गांव में हेनरिक हेन था, उस गांव की परंपरा थी कि जब भी कोई गांव में मर जाए, तो चर्च की घंटी बजे । चर्च का घंटा बजे, ताकि पूरे गांव को खबर हो जाए कि कोई मर गया है। और लोग पूछने भेज दें चर्च में कि कौन मर गया है।
हेनरिक ने अपनी डायरी में लिखा है, डोंट सेंड एनीबडी टु आस्क, फार हम दि बेल टाल्स, इट टाल्स फार दी ! मत भेजो किसी को पूछने कि चर्च का घंटा किसके लिए बज रहा है। यह घंटा तुम्हारे लिए बज रहा है। कोई भी मरे, तुम्हारी मौत का ही इशारा है।
हर मौत खबर है कि तुम भी मरोगे। हर मौत किसी अंश में | तुम्हारी मौत है। जब भी कोई मरता है, कुछ हिस्सा तुम्हारा मर जाता | है । और तुम्हारी मौत तुम्हें घेर लेती है क्षणभर को।
अर्जुन को दूसरे की मृत्यु भी प्रतीक हुई जा रही है। वह सिर्फ यही | नहीं पूछ रहा है कि इनको मैं क्यों मारूं; वह यह पूछ रहा है कि अगर | यह मारना ही सब कुछ है, तो जीवन का मूल्य क्या है? अगर इस मृत्यु से जीवन मिलता हो, तो ऐसे जीवन का मैं त्याग करता हूं। वह | यह कह रहा है कि अगर मृत्यु के माध्यम से जीवन मिलता हो, तो मैं ऐसे जीवन का त्याग करता हूं। इससे तो बेहतर है, मैं भाग जाऊं