________________ ओशो के साहित्य को पढ़ने के बाद ऐसा ही लगता है जैसे हम उस गंगा में स्नान कर रहे हैं जिसके नीचे रेती तो है लेकिन जल में भीगी हुई है। फिर चाहे वह दर्शन हो, फिर चाहे वह इतिहास हो, फिर चाहे वह कविता हो, फिर चाहे वह कुछ भी क्यों न हो—वह सब की सब ऐसी लगती है जैसे हम उसे अपने हाथों से छू लें, अपने माथे से लगाएं, अपनी आंखों को तृप्ति दें। डा. कुंवर बेचैन साहित्यकार एवं लेखक A REGEL BOOK 1220 ISBN 81-7261-096-8