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* चाह है संसार और अचाह है परम सिद्धि
आखिर बैरा उसे मैनेजर के पास ले आया। उसने कहा, धन्य दिखाई पड़ा, जो उसके गांव का रहने वाला है, जिसने बहुत साल मेरे भाग। न केवल महल के नौकर-चाकर सेवा करते हैं, मालिक | पहले गांव को छोड़ दिया था। उसे देखकर उसकी छाती फूल गई। खुद! वह झुक-झुककर नमस्कार करता, बहुत-बहुत धन्यवाद | उसने कहा, देखो, मेरे भाई...। देता। और मैनेजर ने कहा कि या तो आदमी पागल है और या हद | ___ लेकिन वह आदमी नीचे सिर झुकाकर भीड़ में सरक गया। दर्जे का धूर्त है। इसे अदालत ले जाओ।
क्योंकि वह भाषा समझता था। वह अनेक दिन से वहां था। उसने ___ उसे एक गाड़ी में बैठाकर अदालत ले जाने लगे। उसने सोचा | | देखा कि यह कैसा अपमान हो रहा है। लेकिन गधे पर बैठे हुए कि ऐसा लगता है कि ये सब इतने प्रसन्न हो गए हैं कि मुझे नगर | | आदमी ने सोचा, आश्चर्य; ईर्ष्या की भी सीमा होती है! ईर्ष्यावश, का जो सम्राट है, उसके पास ले जा रहे हैं। और अदालत बड़ा | | कि उसका स्वागत नहीं हुआ और मेरा स्वागत हुआ। तो यह सिर भवन था, और मजिस्ट्रेट सजा-धजा बैठा हुआ था। बड़ी शानदार | झुकाकर भीड़ में नदारद हो गया। रौनक थी। तो वह जाकर झुक-झुककर नमस्कार किया। उसने ___ वह आदमी आनंदित ही घर लौटा। उसने यह कहानी अपने गांव बहुत धन्यवाद दिए।
में सब लोगों को कही। जहां तक इसके भीतर के सोचने का संबंध मजिस्ट्रेट ने कहा कि यह आदमी कुछ समझ में नहीं आता। है, सभी कुछ सही जैसा है। लेकिन जहां तक सत्य से संबंध है, इसको कुछ भी कहो, सुनता भी नहीं। वह अपनी ही लगाए हुए है। कोई भी संबंध नहीं है। क्या कह रहा है, इसका भी कुछ पता नहीं चलता। लेकिन इस तरह | आप जिस जगत में रह रहे हैं, कृष्ण उसको माया कहते हैं। और की घटना दुबारा नहीं घटनी चाहिए। तो उस गांव का रिवाज था; | वे कहते हैं, सारा जन्म इस माया से होता है। माया को वे कहते हैं तो उस आदमी को दंड दिया गया कि उसे गधे पर उलटा बैठा दिया | कि प्रकृति अर्थात त्रिगुणमयी माया संपूर्ण भूतों की योनि है, समस्त जाए और उसकी छाती पर एक तख्ती लटका दी जाए कि यह भूतों का गर्भस्थल है। वहां से सब पैदा होते हैं। उसी स्वप्न में, उसी
आदमी धूर्त है। इससे सावधान! नगर में कोई इसका भरोसा न करे। | वासना में, उसी इच्छा में, कुछ होने, कुछ पाने की दौड़ में एक ___ जब वह गधे पर बैठाया गया उलटा और उसके गले में तख्ती | | विराट स्वप्न का जन्म होता है। टांगी गई, तब तो उसकी प्रसन्नता की कोई सीमा न रही। उसने | - मैं उस योनि में चेतनरूप बीज को स्थापन करता हूं। उस कहा, न केवल वे प्रसन्न हैं, बल्कि पूरे गांव में घुमाकर लोगों को | जड़-चेतन के संयोग से सब भूतों की उत्पत्ति होती है। दिखाना चाहते हैं कि देखो, कैसा अतिथि हमारे गांव में आया है। माया तो जड़ है, वासना का जगत तो जड़ है। वह पदार्थ है। मेरा अभी तक पता भी नहीं था।
अंश उसमें चेतन रूप से प्रविष्ट होता है और जीवन की उत्पत्ति वह बड़ा प्रसन्न था। वह बिलकुल अकड़कर बैठा हुआ था। होती है। उसकी अकड. उसकी प्रसन्नता में जरा भी असत्य नहीं है। जो हो इसे हम विस्तार से धीरे-धीरे समझेंगे। रहा है, उसका उसे कुछ पता नहीं है। लेकिन जो वह सोच रहा है, इसमें दो बातें खयाल में ले लेनी चाहिए। हमारा शरीर दो तत्वों उसका उसे पक्का भरोसा है। वह बहुत खुश है। और उसकी खुशी | | का जोड़ है। एक माया, जिसको हम पदार्थ कहें। और एक चेतन, का कोई अंत नहीं था।
जिसको हम परमात्मा कहें। मनुष्य दो चीजों का जोड़ है। मनुष्य लेकिन एक ही पीड़ा थी कि काश, उसके गांव के लोग भी | | एक संयोग है, पदार्थ का और परमात्मा का। उसकी यह शान-शौकत-एक भी आदमी देख लेता, उसके घर मृत्यु में पदार्थ और परमात्मा अलग होते हैं। न तो कोई मरता, तक खबर पहुंच जाती कि किस तरह...। जिसके गांव के लोगों ने | न कोई विनष्ट होता। क्योंकि पदार्थ मरा ही हुआ है, उसके मरने कभी चिंता न की जिसकी, आज उसका कैसा विराट भव्य | का कोई उपाय नहीं। परमात्मा अमृत है, उसके मरने का कोई उपाय स्वागत-समारंभ हो रहा है।
नहीं। सिर्फ संयोग टूटता है। तभी उसे भीड़ में...। बच्चे दौड़ रहे हैं, लोग चल रहे हैं; | | कृष्ण यह कह रहे हैं, वासना के माध्यम से पदार्थ और चेतना आस-पास भीड़ इकट्ठी हो गई है; लोग मजा ले रहे हैं। लोग खुश | में संयोग जुड़ता है-माया के माध्यम से। और ज्ञान के माध्यम से हैं। वह भी बड़ा खुश है और बड़ा प्रसन्न है। तभी उसे एक आदमी | संयोग स्पष्ट हो जाता है कि संयोग है। मृत्यु में संयोग टूटता है।