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* चाह है संसार और अचाह है परम सिद्धि *
दो जीव-कोष बिलकुल एक साथ पहुंच जाएं अंडे के द्वार पर, तो | नहीं हिला सकता। दोनों प्रवेश कर जाते हैं। लेकिन ऐसा मुश्किल से होता है। दोनों | | और जब पूरी सृष्टि भी नष्ट होगी, प्रलय होगा और भयंकर बिलकुल एक साथ, युगपत—एक क्षण के हजारवें हिस्से का भी पीड़ा होगी...। क्योंकि एक-एक व्यक्ति के मरने पर हम समझते फासला न हो-तो दो; या तीन भी कभी हो जाते हैं; चार भी कभी | | हैं, कितनी पीड़ा और कितना दुख और कितना संताप है। जब पूरी हो जाते हैं।
सृष्टि अंतिम क्षण में प्रलय में लीन होती है, भयंकर हाहाकार; एक व्यक्ति जीवन में कोई चार हजार संभोग करता है। चार उससे बड़े हाहाकार की हम कोई कल्पना नहीं कर सकते। दुख हजार संभोग में, कोई अगर पुराने ढंग का भारतीय हो, तो ज्यादा अपनी चरम अवस्था पर होगा। उस क्षण में भी, कृष्ण कहते हैं, से ज्यादा बीस बच्चे पैदा कर सकता है। चार हजार संभोग में बीस प्रलयकाल में भी सिद्ध पुरुष व्याकुल नहीं होता है। मौके हैं कुल; और प्रत्येक संभोग में कोई एक करोड़ से दस करोड़ जिसकी कोई वासना नहीं है, उसकी कोई पीड़ा भी नहीं है। तक जीवाणु यात्रा करेंगे।
जिसकी कोई वासना नहीं है, दूसरे की भी पीड़ा देखकर उसको दया जितने लोग इस समय पृथ्वी पर हैं, कोई चार अरब, एक-एक आ सकती है, व्याकुलता नहीं होती। इस फर्क को समझ लेना व्यक्ति के भीतर चार अरब जीव-कोष हैं। एक व्यक्ति इतनी पूरी चाहिए। पृथ्वी को पैदा कर सकता है। लेकिन पैदा होंगे दस बच्चे, बीस अगर बुद्ध के सामने आप मर रहे हों, तो बुद्ध व्याकुल नहीं बच्चे ज्यादा से ज्यादा। दो-चार बच्चे सामान्यतया।
होते। दया आ सकती है। दया आपकी मूढ़ता पर आती है। क्योंकि इतना भयंकर संघर्ष है। इतना भयंकर युद्ध है। वहां भी क्यू है! दुख आपका सृजित किया हुआ है। ऐसे जैसे एक बच्चा रो रहा है, इतनी आत्माएं दौड़प्ती हैं, एक शरीर को पकड़ने को। बड़ी वासना क्योंकि उसकी गुड़िया की टांग टूट गई है। रोने में कोई भेद नहीं होगी।
है। रोना वास्तविक है। टांग चाहे गुड़िया की हो, चाहे पत्नी की हो। बायोलाजिस्ट चकित हैं कि छोटा-सा जीव-कण इतनी स्पर्धा से टांग असली हो कि नकली हो, यह दूसरी बात है, लेकिन बच्चे के दौड़ता है, इतनी त्वरा से दौड़ता है, इतनी तेजी से दौड़ता है। सब आंसुओं में तो कोई झूठ नहीं है। तरह से कोशिश करता है कि दूसरों को पीछे छोड़ दे और आगे एक बच्चे की गुड़िया की टांग टूट गई है, बच्चा रो रहा है आपके निकल जाए। उससे पता लगता है कि आत्माएं कितने जोर से शरीर सामने। आप दुखी होते हैं या दया से भरते हैं? आप व्याकुल होते को पकड़ने की चेष्टाएं कर रही होंगी। कितनी विराट वासना भीतर हैं या करुणा से भरते हैं? या आपको बच्चे पर दया आती है कि धक्के नहीं दे रही होगी!
बेचारा! इसे कुछ पता नहीं है कि यह गुड़िया मरी ही हुई है। इसमें साधारणतः सिद्ध पुरुष इस गर्भ में पैदा होना, जन्म को लेना और | कुछ टूटने का मामला नहीं है। यह टांग टूटी ही हुई थी। मृत्यु से तो छूट ही जाता है।
इस बच्चे को आप खिलाते हैं, हंसाते हैं; डुलाते हैं; दूसरी लेकिन जब पूरी सृष्टि भी इसी भांति विलीन होती है, जैसे हर | गुड़िया पकड़ाते हैं। लेकिन आप गंभीर नहीं हैं। यह एक खेल था, व्यक्ति मरता है...। हर वस्तु मरती है, ऐसा पूरी सृष्टि भी मरती | जिसको बच्चे ने ज्यादा गंभीरता से ले लिया, इसलिए दुखी हो रहा है। क्योंकि पूरी सृष्टि का प्रारंभ होता है, तो अंत भी होता है। पूरी | है। बच्चा गुड़िया के कारण दुखी नहीं हो रहा है, अपनी गंभीरता सृष्टि के प्रारंभ में और अंत के क्षण में भी, जब सब जन्मता है फिर | और मूढ़ता के कारण दुखी हो रहा है। से, सब ताजा होता है फिर से, तब भी सिद्ध पुरुष डांवाडोल नहीं बुद्ध जब आपको पीड़ा में देखते हैं, तब वे जानते हैं कि आपकी होता। क्योंकि यहां भी कुछ पाने को नहीं है।
| पीड़ा भी बचकानी है। पूरी सृष्टि फिर से बन रही है, फिर से जीवन जग रहा है; फिर किसी का घर जल गया है, जो उसका था ही नहीं। किसी की सूरज और चांद-तारे पैदा हो रहे हैं; फिर पृथ्वियां बसेंगी; फिर सारे | पत्नी मर गई है। कौन किसका हो सकता है ? किसी का पति खो खेल का विस्तार होगा। इस विराट सृष्टि के क्रम में भी वह दूर खड़ा | गया है। जो कभी अपना नहीं था. वह खो कैसे सकता है? किसी रह जाता है, अपनी जगह तृप्त। यह विराट आयोजन भी उसे बुला | | का धन चोरी चला गया है। इस जगत में कोई मालकियत सच नहीं नहीं सकता; इसका भी कोई निमंत्रण कारगर नहीं है। उसे अब कोई | है, चोरी कैसे हो सकती है? यहां मालिक झूठे हैं; चोर झूठे हैं। चोर