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गीता दर्शन भाग-7*
भी नहीं जाएगा।
क्योंकि जिसको कहीं जाना नहीं, वह ट्रेन में किसलिए सवार हो! सृष्टि में हम जाते इसीलिए हैं, पैदा हम इसीलिए होते हैं, कि | | वह किसलिए टिकट खरीदेगा जाकर क्यू में खड़े होकर! किसलिए हमें कहीं पहुंचना है। यह हमारा पैदा होना भी वाहन है। यह शरीर | धक्के खाएगा! कोई कारण नहीं है। उसे कहीं जाना नहीं है। भी हमारी यात्रा का वाहन है। इसे हमने चुना है किन्हीं वासनाओं के शरीर एक यात्रा-वाहन है। और गर्भ के द्वार पर वैसा ही क्यू है, कारण। कुछ हम करना चाहते हैं, बिना शरीर के वह न हो सकेगा। | जैसा किसी भी यात्रा-वाहन पर लगा हो। वहां भी उतनी ही
जो लोग प्रेतात्माओं का अध्ययन करते हैं, वे कहते हैं कि | धक्का-मुक्की है। वहां भी गर्भ में प्रवेश करने के लिए उतना ही प्रेतात्माओं की एक ही पीड़ा है कि उनके पास वासनाएं तो वही हैं, | संघर्ष है। जो आपके पास हैं, लेकिन वासनाओं को पूरा करवा सके, ऐसा | क्या आपको पता है, एक संभोग में कोई एक करोड़ जीव-कोष कोई उपकरण नहीं है। क्रोध उनको भी आता है, लेकिन चांटा गर्भ में प्रवेश करते हैं। उनमें से एक, वह भी कभी-कभी, शरीर मारना मुश्किल है, क्योंकि हाथ नहीं हैं। कामवासना उनको भी ग्रहण कर पाता है। बायोलाजिस्ट कहते हैं कि दौड़ संघर्ष की वहीं जगती है, लेकिन कामवासना का कोई यंत्र उनके पास नहीं है कि शुरू हो जाती है, संभोग के क्षण में। जैसे ही पुरुष का वीर्य प्रवेश संभोग कर सकें।
करता है स्त्री में, एक करोड़ कम से कम, ज्यादा से ज्यादा दस इसलिए प्रेतात्मविद कहते हैं कि ऐसी आत्माएं निरंतर कोशिश करोड़, एक संभोग के क्षण में इतने जीव-कण स्त्री में छिपे हुए अंडे में होती हैं कि किसी घर में मेहमान हो जाएं, किसी व्यक्ति के शरीर की तरफ दौडना शरू करते हैं। में मेहमान हो जाएं। और अगर आप थोड़े कमजोर हैं, संकल्प से | यह दौड़ बड़ी लंबी है; उनके हिसाब से बहुत लंबी है। क्योंकि थोड़े हीन हैं...।
| जीव-कण बहुत छोटा है; खाली आंख से दिखाई नहीं पड़ सकता। संकल्पहीन आदमी का मतलब होता है, जो सिकुड़ा हुआ है, उतने छोटे जीव-कण के लिए कोई थोड़े से इंचों की दौड़ उतनी ही जिसके भीतर खाली जगह है। संकल्पवान आदमी का अर्थ होता है कि अगर जीव को आपके बराबर कर दिया जाए अनुपात में, है, जो फैला हुआ है, जिसके भीतर कोई जगह नहीं है। सच में जो तो दो मील का फासला है। उस अनुपात में वीर्य-कण को अपने शरीर से बाहर भी जी रहा है। भीतर की तो बात ही अलग। करीब-करीब दो मील का फासला पार करना पड़ रहा है, स्त्री के जो फैलकर जी रहा है। ऐसे व्यक्ति में प्रेतात्माएं प्रवेश नहीं कर | अंडे तक पहुंचने में। अगर वीर्य-कण आपके बराबर हों, तो पाती हैं।
फासला दो मील के बराबर होगा। लेकिन जो सिकड़कर जी रहा है, डरा हआ। डरे हुए का मतलब, छः घंटे के बीच उस छोटे-से जीवाणु को...। और सिकुड़ा हुआ। जो अपने ही घर में एक कोने में छिपा है; बाकी घर | संघर्ष है, क्योंकि एक करोड़ जीवाणु भी भाग रहे हैं। आपकी सड़क जिसने खाली छोड़ रखा है। जिसका शरीर भी बहुत-सा खाली पड़ा | पर ट्रैफिक में वैसा जाम नहीं है। वे सभी एक करोड़ जीव-कोष है। उसमें कोई प्रेतात्मा प्रवेश कर जाएगी। क्योंकि प्रेतात्मा कोशिश | उतनी ही कोशिश कर रहे हैं कि अंडे तक पहुंच जाएं। क्योंकि उस में है, शरीर मिल जाए, तो वासनाएं पूरी हो सकें।
अंडे में छिपा है शरीर, जहां से व्यक्ति पैदा होगा और यंत्र उपलब्ध आप भी शरीर में इसीलिए प्रविष्ट हुए हैं, गर्भ में इसीलिए हो जाएगा। प्रविष्ट हुए हैं कि कुछ वासनाएं हैं, जो अधूरी रह गई हैं। पिछले बायोलाजिस्ट कहते हैं कि इस दुनिया में जो प्रतियोगिता दिखाई मरते क्षण में कुछ वासनाएं थीं, जो आपके मन में अधूरी रह गई हैं, पड़ रही है, वह कुछ भी नहीं है। जिसको बाजार में गलाघोंट वे आपको खींच लाई हैं। मरते क्षण में आदमी की जो वासना होती प्रतियोगिता कहते हैं, थ्रोट कट कांपिटीशन, वह कुछ भी नहीं है। है, वही वासना उसके नए जन्म का कारण बनती है। या मरते क्षण | क्योंकि एक करोड़ में से एक पहुंच पाएगा अंडे तक। जो पहले में उसके जीवनभर का जो सार-निचोड होता है उसकी आकांक्षाओं पहंच जाएगा. वह प्रवेश कर लेगा। और अंडा कछ इस भांति का का, वही उसे धक्का देता है नए गर्भ में प्रविष्ट हो जाने का। है कि जैसे ही एक जीव-कोष प्रवेश करता है, अंडे के द्वार बंद हो
कृष्ण कहते हैं, जो सिद्ध पुरुष है, वह साधारण जन्म-मरण में जाते हैं। फिर दूसरा प्रवेश नहीं कर सकता। तो फंसेगा ही नहीं, साधारण गर्भ में तो प्रवेश ही नहीं करेगा। इसीलिए कभी-कभी दो बच्चे एक साथ पैदा हो जाते हैं, अगर