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________________ * गीता दर्शन भाग-7 * का सवाल ही नहीं है। लेकिन तब हमें जीवन की गहरी व्यवस्था क्यों है कि इस जगत में आसुरी संपदा ही अधिक का कोई अनुभव नहीं है। भले के पीछे बुरा तो छिपा ही रहेगा। फलती-फलती नजर आती है? दैवी संपदा की फसल ___ अगर आप कहते हैं कि मैं सत्य ही बोलता हूं, सदा सत्य ही इतनी दुर्लभ क्यों है? बोलूंगा, और सदा सत्य को पकड़े रहूंगा! तो एक बात पक्की है, आपके भीतर झूठ भी उठता है। नहीं तो आपको सत्य का पता कैसे चलेगा! सत्य को आप बचाएंगे कैसे! सत्य को सम्हालेंगे कैसे! मसुरी संपदा फूलती-फलती नजर आती है, क्योंकि वही झूठ भीतर मौजूद है, उसके विरोध में ही सत्य उठता है। हमारी कामना है। एक चोर सफल होता हमें दिखाई अगर आप कहते हैं, मैं ब्रह्मचर्य का साधक हूं, मैं ब्रह्मचर्य को पड़ता है। एक चोर धन को इकट्ठा कर लेता है, प्रतिष्ठा पकड़े रहूंगा, मैं कभी ब्रह्मचर्य को छोडूंगा नहीं! तो उसका अर्थ है, बना लेता है। हमारे मन में कांटा चुभता है इससे। चाहते तो हम भी कामवासना आपके भीतर लहरें लेती है। जिसके भीतर कामवासना इसी तरह का महल, इसी तरह का धन, इसी तरह की पद-प्रतिष्ठा समाप्त हो गई, उसको ब्रह्मचर्य का पता भी नहीं चलेगा। हैं। चोरी करने की भी हिम्मत नहीं जुटा पाते हैं और चोर ने जो जुटा जिसकी बीमारी बिलकुल मिट गई, उसे स्वास्थ्य का भी पता लिया है, उसकी भी आकांक्षा मन में है; उससे मन को चोट लगती नहीं चलेगा। इसलिए जब आप बीमार पड़ते हैं और स्वस्थ होते हैं, है। उससे मन कहता है कि चोर फल-फूल रहा है। हम साधु हैं और तब आपको स्वास्थ्य की थोड़ी-सी झलक मिलती है। बीमारी में | फल-फूल नहीं रहे हैं। गिरने के बाद जब आप पहली दफे स्वस्थ होना शुरू होते हैं, तब अगर आप साधु हैं, तो आपको दिखाई पड़ेगा कि-चोर दुख पा आपको पता चलता है, स्वास्थ्य क्या है। अगर आप सदा ही स्वस्थ रहा है। अगर आप असाधु हैं, तो दिखाई पड़ेगा कि चोर सफल हो रहें, आपको स्वास्थ्य भूल जाएगा; उसका आपको कोई स्मरण ही रहा है। नहीं रहेगा। दुनिया में दो तरह के चोर हैं बड़ी मात्रा में। एक वे, जो चोरी की दुख के कारण सुख का पता चलता है: बरे के कारण भले का | हिम्मत कर लेते हैं; और एक वे, जो चोरी की हिम्मत नहीं करते, पता चलता है। सिर्फ विचार करते हैं। मोक्ष का अर्थ है, अब मेरे दोनों ही बंधन न रहे; अब मैं मुक्त मेरे पास लोग आते हैं। वे कहते हैं, हम अपना जीवन संतोष से इं; मेरा कोई चुनाव नहीं। न यह संपदा मेरी है, न वह संपदा मेरी | बिताते हैं, बुरा काम नहीं करते, किसी को चोट नहीं पहुंचाते, फिर है। संपदाएं ही मैंने छोड़ दी हैं। यह परम दशा है। यह परमहंस की भी असफलता हाथ लगती है। और देखें, फलां आदमी ब्लैक अवस्था है। मार्केटिंग कर रहा है, कि स्मगलिंग कर रहा है, कि चोर है, बेईमान अभी जहां आप खड़े हैं, अगर जगत आपको बुरा लगे, तो है, धोखाधड़ी कर रहा है, और सफल हो रहा है! समझना कि आसुरी संपदा आपकी आंखों पर छाई है। अगर जगत उसकी सफलता आपको सफलता दिखाई पड़ती है, क्योंकि अच्छा लगे. तो समझना कि दैवी संपदा ने आपको घेरा है। जगत | आप भी वैसी ही सफलता चाहते हैं। अगर सच में ही आपका दोनों लगे और दोनों में संतुलन दिखाई पड़े, तो समझना कि साक्षी साधु-चित्त होता, तो आपको उस आदमी की पीड़ा भी दिखाई के स्वर का जन्म हुआ है। पड़ती। भला उसने महल खड़ा कर लिया हो, लेकिन महल के उस तीसरे की खोज जारी रखनी है। जब तक वह न हो जाए, | भीतर वह जिस संताप से गुजर रहा है, वह आपको दिखाई पड़ता। तब तक समझना कि अभी हम धर्म के मंदिर के बाहर ही भटकते __उस संताप से आपको कोई प्रयोजन नहीं है। उसकी भीतरी पीड़ा हैं, अभी हमारा भीतर प्रवेश नहीं हुआ है। से आपको कोई प्रयोजन नहीं है। उसका बाहर जो ठाठ है, वह आपको दिखाई पड़ रहा है, क्योंकि बाहर का ठाठ आप भी चाहते हैं! जो उसने पा लिया है, वह आप नहीं पा सके, इससे मन में कांटा दसरा प्रश्नः आपने कहा कि मनष्य दैवी और आसरीचभता है। इसलिए वह सफल लगता है और स्वयं आप असफल संपदा बराबर मात्रा में लेकर पैदा होता है। तब ऐसा लगते हैं। 370
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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